मानवी नातं नातेसंबंध

तू अन् मी

Submitted by भानुप्रिया on 30 November, 2011 - 09:59

माझी ही कविता आज अचानक आठवली..आपल्या देशातली सध्याची एकंदर स्थिती लक्षात घेता किती स्त्रीया हे असं जीणं जगत असतील देव जाणे! काही जणांच्या मते ही अतिशय उद्धट कविता असू शकेल, पण मी प्रामाणिक प्रयत्न केलाय, स्त्रैय मनःस्थिती मांडण्याचा!

भानुप्रिया
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गुलमोहर: 

नातं....दुःखाचं!

Submitted by इंद्रायणी on 17 August, 2011 - 11:10

श्री गणेश

रिश्ता...दर्द का

वॉर्ड P- फीमेल वॉर्ड---
+ कोण गं या तुझ्या?
**मेरी माँ है न।
+ काय झालंय?
**हार्ट को तकलीफ है न। एन्जीओप्लास्टी करने की। कलइच करनेकी।
+ अगंबाई हो का?
**अब क्या करने का? अल्ला ने जिंदगी दी तो परेशानी भी दी ना।
+ हो गं बाई. रहाता कुठे?
**मार्केट यार्ड। सौ रुपए लगते रिक्षा को। अभी मैं रिक्षासेइच आइना माँ को लेके।
+ घरी कोण कोण असतं?
**मैं और माँ। बाप पैलेइच मर गया ना।
+ करतेस काय?
**जाब करती न मैं, साडी की दूकान पे। अभी छुट्टी काढी। पैसा कटेगा। पर क्या करने का?
भाई है पर अलग रहते है। पैसा देते पर मैंईच संभालती न माँ को।

गुलमोहर: 
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