विडंबन : मै और मेरी तनहाई

Submitted by आशूडी on 25 June, 2015 - 05:40

(मूळ लेखकाची क्षमा मागून)
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मै और मेरे सपनोंकी बाई
अक्सर ये बाते करते हैं
तुम होती तो कैसा होता
(उशीरा आल्याबद्दल टोकलं तर)
तुम ये कहती, तुम वो कहती
(भांड्यांचा ढिगारा बघून)
तुम इस बात पे हैरान होती
(कुठेत जास्त मी म्हणताच)
तुम इस बात पे कितनी हसती..
तुम होती तो ऐसा होता..तुम होती तो वैसा होता
मै और मेरे सपनोंकी बाई
अक्सर ये बाते करते हैं

(ये रात है या तेरी जुल्फे खुली हुई है)
ही धुतलेली भांडी आहेत की खरकटी राहिलेली
(है चांदनी
या तुम्हारी नजरों से मेरी राते धुली हुई हैं)
ही फरशी
जशी महिन्यापूर्वी पुसलेली दिसते आहे
(ये चांद है या तुम्हारा कंगन)
दुधाच्या पातेल्यात चिकटून बसलेला साबण
(सितारे है या तुम्हारा आंचल)
टप्परच्या डब्याचं हरवलेलं झाकण
(हवा का झोंका है या तुम्हारे बदन की खुशबू)
नळ हळू सोड, नको पाणी वाया घालवू
(ये पत्तीयों की है सरसराहट की तुमने चुपके से कुछ कहा है)
मला माहितीये आता तुला कपभर तरी चहा हवा आहे
ये सोचती हू मैं कबसे गुमसुम
जबकी मुझको भी ये खबर है
की तुम नहीं हो, कहीं नही हो
मगर ये दिल है की कह रहा है
कि तुम यहीं हो, यहीं कही हो
(खालच्या मजल्यावरून तोच ओळखीचा भांडी आपटल्याचा आवाज)

मजबूर ये हालात इधर भी है उधर भी
कामाच्या रगाड्यातली एक दुपार इधर भी है उधर भी
कहने को बहोत कुछ है मगर किससे कहें हम
कब तक यूंही खामोश रहे और सहें हम
दिल कहता है की दुनिया की हर एक रस्म उठा दें
दीवार जो हम दोनो में है आज गिरा दें
क्यूं दिल सुलगते रहें, लोगों को बता दें
(आठ दिवस झाले बाई आली नाही)
हो, मला पण धुणीभांडी करायचीयेत, धुणीभांडी करायचीयेत, धुणीभांडी करायचीयेत!
अब दिल में यहीं बात इधर भी है उधर भी!

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लै भारी आशूडी! वाक्या-वाक्याला टाळ्या!!

Happy Happy

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