मन

Submitted by मी कल्याणी on 21 February, 2014 - 22:37

मन घुंघुर घुंघुर
लडिवाळ त्याचा नाद|
सवे दारी-अंगणात
पारिजात पारिजात|

मन खळखळ लाट
मन शंखले-शिंपले|
ओंजळीत साठवले
नभ सूर्य चंद्र तारे|

मन मोगर्‍याचे फूल
मन कस्तुरी दरवळ|
पहाटेच्या नीरवात
मन काकड्याचा स्वर|

मन माथी मोरपीस
मन सुरेल बासरी|
उभ्या 'सावळ्या'च्या संगे
मन चैतन्याच्या सरी|

मन समईची वात
त्यात 'मी'पण जळावे|
मन सोने उजळता
मन 'सावळे'ची व्हावे|

लय जुळता सख्याची
मन होई निराकार|
मागे उरे माझे मन
त्यात 'सावळा' साकार||

Group content visibility: 
Public - accessible to all site users