असच काही सुचलेलं .........

Submitted by रीया on 27 April, 2012 - 06:02

असच काही सुचलेलं .........

तू जवळ असलास की
शब्द माझे ओठावरच विरून जातात
खरचं.....
स्पर्शालाही भाषा असते
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तुझी आठवण...
नक्की म्हणू काय?
चंद्र म्हणू तर दिवसाचा विरह
सूर्य म्हणू तर रात्रीचा.....
तुझी आठवण म्हणजे माझा श्वास
तो थांबला की मी संपले
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आजकाल डोळे माझे
मलाच दगा द्यायला लागलेत
हृदयामधल्या गोष्टी सरळ
न विचारता सांगू लागलेत
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तू आणि पाऊस,
दोघेही सारखेच.....
सुरुवातीला शांत रिमझिम
अन मला स्पर्श केल्यावर खट्याळ
तरीही...
हवाहवासा ....
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तुला भेटल्यापासून
सारे काही परके झाले
मन फ़क़्त होते माझे
ते ही तुझ्या अधीन झाले
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कविता कधी सुचत नाही रे वेड्या
त्यासाठी घालवाव्या लागतात कित्येक रात्री
झोपेविना......
तुझ्याविना
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एकदा वेडी कविता मलाच म्हणाली
आजकाल बोलावत नाहीस ग मला तुझ्याकडे
तिला म्हणाल तू आलीस की ते पण येतात ग
ज्यांना रोखायल इतके वर्ष...
माझे अश्रू .....
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- प्रियांका विकास उज्ज्वला फडणीस

गुलमोहर: 

आजकाल डोळे माझे
मलाच दगा द्यायला लागलेत
हृदयामधल्या गोष्टी सरळ
न विचारता सांगू लागलेत >>>>>> हे सुरेखच.....

तू आणि पाऊस,
दोघेही सारखेच.....
सुरुवातीला शांत रिमझिम
अन मला स्पर्श केल्यावर खट्याळ
तरीही...
हवाहवासा ....>>>>>>>>>>>>> एकदम मस्त...आवड्या Happy

असे अनेक खयाल वाचनात आल्यामुळे मला नावीन्य वाटले नाही, पण तू आत्तापर्यंत इथे जे काही लिहिलंस त्याहून हे खूप वेगळं आहे

शुभेच्छा

Happy

पहिलीच आवडली म्हणून सगळ्या वाचल्या .... मस्त आहेत...:)

अनलाइक पिरिया पण आवडलं .....नेहमी मी तुझी विडंबनं वाचते नं म्हणून अनलाइक यु...:)