एक अनुवाद
Submitted by भारती.. on 4 July, 2012 - 09:35
जावेदजी-हिल स्टेशन-
घुल रहा है सारा मंजर शाम धुंधली हो गयी
चांदनी की चादर ओढे हर पहाडी सो गयी
वादियोंमे पेड हैं अब नीलगूं परछाइयां
उठ रहा है कोहरा जैसे चांदनीका हो धुआं
चांद पिघला तो चटाने भी मुलायम हो गयी
रात की सांसे जो मेहकी और मद्धम हो गयी
नर्म हैं जितनी हवा उतनी फिजा खामोश हैं
टेहनीयोंपर ओस पीके हर कली बेहोश है
मोड पर करवट लिये अब उंघते हैं रास्ते
दूर कोई गा रहा है जाने किसके वास्ते
गुलमोहर:
शब्दखुणा:
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