मजरूह

मजरूह लिख रहें है वो, अहल-ए-वफा़ का नाम...

Submitted by टवाळ - एकमेव on 23 May, 2012 - 06:07

मजरूह लिख रहें है वो, अहल-ए-वफा़ का नाम
हमभी खडे हुवे है, गुनहगार की तरह
हम है मतां-ए-कुचा ओ, बाजार की तरह
उठती है हर निगाह, खरी़दार की तरह

गुलमोहर: 
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