मयुरपुच्छ

कृष्णसंग

Submitted by पुरंदरे शशांक on 20 August, 2022 - 03:37

कृष्णसंग

धेनुसंग वनी विहरत, मयूरपुच्छ शिरी धरत, श्रीरंगे मधुर स्मित, अधरी बासरी

पुष्पमाळ घवघवीत, अंगकांति लखलखित, नेत्रद्वय उत्फुल्लित, शोभला हरी

गोप सखे खेळत नित, कृष्णसंग सुख विहरत, प्रेमशर ह्रदी वेधत, एक श्रीहरी

यमुनाजल थरथरत, हरिचरण प्रक्षालत, थुईथुईचि नृत्य सतत, सुख परोपरी

शुकमुनिजन वृत्त कथित, देशकाल जन विसरत, कृष्णरंगी वृत्ती विरत, कृष्ण अंतरी

कृष्ण कथा रम्य बहुत, इहसुख ते विरत विरत , शब्दमात्र सरत सरत, जाणिवे हरी

Subscribe to RSS - मयुरपुच्छ