वसंत
Submitted by पशुपत on 23 March, 2022 - 06:35
जीव रंगला असा एकांत-चिंबलेल्या वनात |
सूर्य आहे उभा तिन्हीसांज रंगलेल्या नभात ||
सावल्या या अशा जमल्या तळ्यावरी निवांत |
गंध उधळत्या दिशा स्वर छेडती गंध पारिजात ||
चंद्र येता नभी उजळला पुन्हा नील आसमंत |
खेळ मांडुनी असा रानी वनी रमतो वसंत ||
संजीव
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