इंकार

वैश्या

Submitted by Happyanand on 4 October, 2019 - 09:31

क्या बाबू बहोत दिनों से आए नहीं कोठे पे,
तेरे हाथों की शरारत को अपने बदन पे ढूंढती हूं।
एक वैश्या को भी हो सकता है इश्क,
इस बात से अब भी इन्कार करती हूं।
फिर भी दिल में थोड़ी
बेचैनी सी होती है।
इन पत्थर जैसे आंखो से
आंसु निकल ही आती है।
यह तो मेरा हर रोज का रोना है,
पेट की भूख के लिए
किसी ना किसी के साथ तो सोना है।
फिर भी दिल है कि मुकद्दर से मुंह मोड ही लेता है
हर रोज किसी एक से प्यार हो ही जाता है।
दिल को समझाने की कोशिशें लाख करती हूं।
एक वैश्या को भी हो सकता है इश्क,

शब्दखुणा: 
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