छोटेसे घरों में सपने...

Submitted by गणक on 2 June, 2021 - 06:15

पहिल्यांदा हिंदीत कविता लिहिली आहे.
व्याकरणात काही चुका असल्यास नक्की सांगा.

छोटेसे घरों में सपने ...
छोटेसे घरों में सपने अक्सर ही बडे होते है !
कुछ करके ही मानेंगे इस जिद पे अडे होते है !

आजादी के दिन झंडे हम उँचे तो रखते है ,
क्यों अगले दिन देखो तो रस्ते पे पडे होते है !

जल्दी में खरीद ना लेना ये दिल भी फलों के जैसा ,
जो उपरसे चमकिले अंदरसे सडे होते है !

अब झूठ के दर पर ही है भीड दिखाई पडती ,
सब सच के रस्ते पर क्यों मुश्किल से खडे होते है !

ऐसा भी नहीं के मांगे बस हात दुआऐं सबके ,
कुछ कटकर भी गिरते जो जंग में लडे़ होते हैं !

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