मी आणि इरा.

Submitted by एविता on 20 March, 2021 - 09:08

मी आणि इरा.

"अरे हे काय इरा, तू दुधाचं पातेलं फ्रीज मध्ये ठेवलं नाहीस की.." आम्ही स्वैपाकघरात शिरताच माई म्हणाल्या. "
" ओ माई, भूल गयी मै... सॉरी सॉरी..." असं म्हणत इरा पातेले उचलू लागली तसं, " इसमें सॉरी क्यों? भूल हो जाती है इन्सान से कभी कभी,.." असं बोलत माईंनी पातेल्यावर झाकण ठेऊन ते फ्रीज मध्ये ठेवलं. " अच्छा, " त्या पुढं बोलल्या, " तू काहीतरी खास करणार आहेस असं म्हणालीस सकाळी."
"येस माई,कच्चे केले के कोफ्ते."
" व्वा छान, आता काय आणि कसं ते सांग."माईंनी पदर खोचला.
" माई, आप वो सब हम दोनो पर छोड़ दीजिए, आप बाहर जाकर अप्पा के साथ बैठ जाइए आराम से।"
" हो माई, तुम्ही बसा बाहेर हॉलमध्ये गप्पा मारत, आज तुम्ही किचनच्या रणांगणावर येऊ नका. आम्ही ही खिंड लढवतो."
"हो हो लढवा," माई हसत हसत हॉल कडे वळत म्हणाल्या," चांगल्या रंगरूट आहात तुम्ही दोघी...! लढा."
माई बाहेर गेल्या तसं, "चल एवी,पोजीशन ले ले और हमले के लिए तैयार हो जा..." इरा हसत म्हणाली." येस मेजर साहिबा,"मी कपाळाला उजवीकडे उलटा हात लावत तिला सलाम करत बोलले,"आपके हुक्म की तामील होगी, अभी और इसी वक्त." आम्हा दोघींना खिदळायला कसलंही कारण चालतं.
" फिलहाल तू वो कच्चे केले है ना, सवेरे ईशान लेकर आया था, उसको धो ले और तीन तीन टुकडो मे काट ले, और हां उनका छिलका मत उतार।"
" सवेरे लाए हुए केले, इरा, अभी तो शाम में पक गए होंगे ना.... मी केळीचा घड हातात घेत गंभीर स्वरात बोलले," सुबह का भूला हुआ शामको वापस आ जाएं तो उसको भूला नहीं कहते या केला नही कहते, कुछ तो नही कहते, है ना...?
" ठीक है, अभी तुझे ही भेजती हूं बाहर केले लानेके लिए वो अगर पक गए है तो।" ती धमकावणीच्या सुरात म्हणाली.
"नही नही मेजर साहिबा, आपको देखकर वापस कच्चे बन गए है। डोंट वरी।" इरा हसली.
मी केळी कापायला सुरुवात केली तो पर्यंत इराने कुकर साफ करून घेतला.
" अब इनको कुकर मे उबाल लेती हूं । ये कच्चे केले गलने मे वक्त लेते हैं सो थोड़ा ज्यादा प्रेशर कुक करना पड़ेगा।" तिने केळ्याचे तुकडे कुकरमधे टाकून कुकर गॅस वर चढवला.

"अब मुझे क्या करना है मैडम?" मी विचारलं.
"तू प्लीज प्याज पीस ले, मै टमाटर और मिर्च काटती हूं।" तिने मिरच्या चिरायला सुरुवात केली.
मी कांदे कापू लागले. " माई की स्टोरी सुनकर तुझे क्या लगता है इरा?" मी तिला विचारलं.
"माई ने बहुत सहा है। मैं कहती हूं के आदमी के पास हुनर होना चाहिए तो ही वो ऊंचाइको छू सकता है, जैसे कि माई। एड़ी ऊपर लेनेसे सिर्फ कद बढ़ता है, ऊंचाई नही।" ती मिरचीचे कापलेले छोटे तुकडे बाजूला सारत बोलली.
" मैंने तो ऊंची एड़ी वाले शूज पहननाही बंद कर दिया है।" मी कांदा बारीक करताना डोळ्यात आलेले पाणी पुसत म्हणाले.
" जोक मत सुना, अब देख ना, इंसान का पतन उस समय शुरू होता है जब वह अपनों को गिराने की सलाह गैरोंसे लेता है, जैसे माई के काकाजी। भाई का इस्टेट वापस देना पड़ा ना...देख रिश्ते को है ना, दोनों तरफसे निभाना पड़ता है, एक तरफसे सेंक कर रोटी भी नही बनती।" ती टोमॅटो पुसत बोलली.
"सही कहती है आप."
" साजिश तो वो रचते हैं जिन्हे जंग जितनी हो, जैसे के काकाजी, माई की मां तो बेचारी दिल जितनेकी कोशिश में लगी हुई थी, ताकि रिश्ता बना रहे। जिंदगी का क्या है एवी, वह थम तो नही जाती किसी के बिना, पर गुजरती भी नही अपनोंके बिना, है ना?" टोमॅटो चिरत तिने विचारले.
"पते की बात कर रही है आप इरा।" मी उत्तरले.
तेवढयात कुकरची शिट्टी वाजली. मी गॅस बंद करू लागले." वेट, चार पांच सीटियां बजने दे, फिर बंद करेंगे। उबाल लेने के बाद छिलका अपने आप उतर जाता हैं और यही पहचान होती हैं कि केला उबल गया।" ती गॅस जवळ जात म्हणाली.
" बुरा चाहनेवाला अपना है तो भी वो पराया है और भलाई चाहनेवाला, पराया भी हो तो भी वो अपना हैं, रोग अपने ही शरीर में पैदा होता है पर बाहरवाली औषधियां अपनेको ठीक बनाती हैं। तुझे पता है," पाच शिट्ट्या झाल्यावर ती गॅसचे बटन बंद करत म्हणाली, "एक अच्छी किताब कितनी भी पुरानी हो, उसके शब्द नही बदलते। अच्छे रिश्तोंकी यही तो खासियत है भई, घमंड किसिका भी नही रहता एवी, टूटनेसे पहले गुल्लक को भी यही लगता है की सारे पैसे उसीके है।" ती कुकरचे झाकण उघडत बोलली.
" सच है इरा, बरसात आती है तो कानों में हल्के से कह जाती है, गर्मी चली गई, राईट?"
" करेक्ट, हंड्रेड परसेंट करेक्ट," ती हसली.
" अच्छा, लो ये देख, कैसे आराम से छिलके निकल गए, " कुकर मधून बाहेर काढलेल्या केळ्यांकडे पाहात ती म्हणाली, " अब ये छिलका अलग कर के केलो को मैश कर ले और इसमे बेसन मिला ले, और नमक और पीसी लालमिर्च डालकर इनके गोल कोफ्ते बना। बादमे इन को डीप फ्राई करेंगे। संभाल कर,वो टुकड़े गरम है।

" ठीक है, धीरे से निकालती हूं। आपको नही लगता की काकिकी हालत ठीक नहीं हुई? जिंदगीसे बेचारी हार गई ना?"मी केळ्यांची सालं काढत म्हणाले
"नही एवी, हारी होती तो खुदकुशी कर लेती। जिंदगीसे दो हाथ किए उसने। इस तरह हारने वालों का भी अपना एक रूतबा होता है एवी, मलाल वो करें जो दौड़ में शामिल ही ना हुए।" असं म्हणत तिनं लसणाच्या पाकळ्या सोलायला घेतल्या.
" लेकिन ग्रैनी ने ठीक किया क्या काकाकी शादी उनसे बनाकर? गलत नही किया क्या?" मी बेसन मध्ये केळ्यांचे तुकडे कालवत बोलले.
" देख एवी, ग्रैनी का कोई दोष नही। अपना बच्चा तो अपनी कोखसे पैदा होता है, उसकी भलाई के लिए एक मां आसमान के तारे भी तोड़कर लाएगी। उसे लगा होगा ना की रामन्ना सुधर जायेगा। एक औरत के बिना घर सुना सुना हो जाता है और दूसरा, ग्रेनी अगर भगवान को प्यारी हो जाती है तो रामन्ना को देखनेवाला कौन था? यही सोचकर उस बेचारी ने उनकी शादी बना दी। अब देख, भविष्य कौन जानता है? उनको क्या पता की इसका अंजाम इस तरहसे होगा?"
" हां इरा, ये बात भी सही है। पर तुझे नही लगता ग्रेनी थोड़ी नास्तिक थी, जैसे उन्होंने भगवान के बारेमे कुछ अलग कहा था?"
इरा हसली." तूने भगवान को देखा है एवी?"
" नही तो, आपने देखा है?"
इरा परत हसली." इन सबका खाना हो जाने दे, मैं तुझे कहती हूं आस्तिक, नास्तिक और राम के भक्त और रहिमके बंदोंके बारेमे।
" पक्का सुनुंगी मैं आपसे, मज़ा आयेगा।" मी म्हणाले.
" देख , नास्तिक बनना या ऐसी सोच रखना मुश्किल काम है. आस्तिक तो आदमी जन्मसे ही होता है. उसके पेरेंट्स उसको जन्मसे ही इंडॉक्ट्रिनेट करते है. उसमे तीर मारने जैसी कोई बात नहीं. नास्तिक सोच रखनेके लिए जिगर चाहिए या सायंटिफिक सोच, तार्किक दृष्टिकोण. या इंटेलेक्चुअल व्यू पॉइंट. ये पॉइंट था ग्रैंडमा के पास और वो भी उस जमानेमे...
" और बहुत पढ़ी लिखी ना होनेके बावजूद, है ना?"
" करेक्ट, यार तू वो रिचर्ड डॉकिन्स की द गॉड डेल्युजन क्यों नहीं पढ़ती?",इराने सुचविले.
" मैं तो समझती थी आप सिर्फ फिक्शन पढ़ती है।" .
"कोई भी पढ़ा लिखा लॉजिकल सोच रखनेवाला आदमी रिचर्ड डॉकिन्स को पहचानता ही होगा। उसकी और एक बढ़िया किताब है,
आउटग्रोइंग गॉड. एकदम मस्त. द सेल्फिश जीन,ये भी पढ़ ले उसकी ही है।"

"आप कहती है तो मुझे पढनाही पड़ेगा इरा।"
" तुझे पता है, मुझे आर्किटेक्चर क्या होता है मालूम ही नहीं था। बारवीमे थी और सोच रही थी क्या करना है तभी अयान रैंड कि किताब 'द फाउंटेनहेड' हाथ लगी और वही मेरा टर्निंग पॉइंट बन गया। उसमे जो ओब्जेक्टिविज़्म है वह एक नास्तिक फलसफा ही है।"
"ओ माय गॉड, इरा, मैंने वो खरगपुर में पढ़ी थी।मैं विनोद गुप्ता में एमबीए कर रही थी तब हमारी एक कॉमन फ्रेंड जो मास्टर्स इन सिटी प्लानिंग कर रही थी उसने दिया था मुझे वो पढनेके लिए I वॉव, वो होवार्ड रोअर्क का कोर्टरूम स्पीच पढ़कर मैं भी डोमिनिक कि तरह उससे प्यार करने लगी थी। हाहाहा....।"
"अरे मैं तो वो जो बोलता है न, जैसे I don’t build in order to have clients, I have clients in order to build, या फिर I came here to say that I do not recognize anyone's right to one minute of my life. Nor to any part of my energy. Nor to any achievement of mine. No matter who makes the claim, how large their number or how great their need. I wished to come here and say that I am a man who does not exist for others. और दूसरा, To sell your soul is the easiest thing in the world. That's what everybody does every hour of his life. If I asked you to keep your soul - would you understand why that's much harder?" मुझे तो ये सब पढ़ते वक़्त गुजबंप्स आते थे। मैने ये सब बाय हार्ट किया था। तभी मैंने ठान लिया, बनना है तो सिर्फ आर्किटेक्ट!
" व्वा इरा व्वा, और वो डोमिनिक कहती है न .... My real soul...? It’s real only when it’s independent... या फिर
I can do nothing halfway. Those who can, have a fissure somewhere inside. Most people have many. They lie to themselves—not to know that. I’ve never lied to myself. मुझे भी याद है।" मी सांगितलं.
" वॉव एवी, तू भी उस्ताद निकली।"
"नही, मैं आपकी शागिर्द हूं और शागिर्द ही रहूंगी, हमेशा।" मी हसत म्हणाले.
" ये लो, तूने टिकियां भी बना डाली गपशप में। चल मैं अभी इनको फ्राई करती हूं। तू ग्रेवी बनाएगी क्या?"
"अरे आप हुक्म करे और हम ना माने?"
" देख मैं फ्राई करती हूं क्यों के ये ज्यादा लाल नहीं होगे, इसलिये ध्यान देना होगा कि गोल्डन होना ही इनका फ्राई हो जाना हैं। ठीक है?"
"येस, अब आप बताइए ग्रेवी के लिए क्या करू?"
" ग्रेवी के लिये कढ़ाईमे २-३ चम्मच वो धारा तेल डाल दे। उसमे पीसा हुआ प्याज, मिर्च और लहसून डाल कर भून लें।"
" ओके," मी तिने सांगितले तसे करायला घेतले.

" यह काकिका किरदारही सबसे अहम है एवी, माईके मां के लिए उनके हसबैंड थे, टूटाफुटा क्यों न हो लेकिन सरपर छत तो था, दो बच्चियां थी जिनको बड़ा करनेमे उनका वक्त गुजरता था। काकिके हसबैंड नही थे, और उस जमानेमे बिना शौहर के रहना कोई सोच भी सकता? चलो समझ लिया के पेट की आग तो बुझ सकती थी पर जवान अरमानों का क्या? उसकी आग का क्या? दिन ढलने के बाद रात तो एक ब्लैक होल की तरह उनको इस तरह दबोच लेती होगी के बाहर आने के लिए केवल आसुओंका सहारा। उन्होंने तो अपनी भावनाओंको, अपनी इच्छाओंको जला डाला, और बाद में बच्चोंकी भी आहुति डाल दी। आज किसीके साथ ऐसा होता तो डिप्रेशन की शिकार हो जाती झट से।" इरा बोलत होती.
"हां इरा, ये भी सोचनेवाली बात है।"
" वॉव, अच्छी खुशबू आ रही है,अब कटा हुआ टमाटर और मसाले डाल, थोड़ा पानी डाल और फिर भूनती रह ।" ती म्हणाली, " उजाले में हर असलियत कहां नजर आती है एवी, अंधेरा ही बताता है की सितारा कौन है। चली गई बेचारी सितारोंसे आगे।"
"बेचारी गिरिजाकाकू," मी उद्गारले.
"और उस के पास था भी क्या जो कोई उसके साथ रिश्ता बनाता, अपने मतलब के अलावा कोई किसको पूछता नही, पेड़ सूख जाता है तो पंछी भी बसेरा नही करते," ती कढईत बघत म्हणाली, " " खूब, ये ठीक हुआ, इस मिक्स मे अब मलाई डाल कर थोड़ा पानी और डालेंगे।"
तिने फ्रीजमध्ये ठेवलेले लोणी एक मोठा चमचाभर घेऊन कढईत घातले आणि थोडेसे पाणी ओतले. " इस पूरे मिक्स को तबतक भुन जबतक ये घी ना छोड़े...और फिर इसमे कोफ्ते और देसी घी एकसाथ डालते है।"
" अच्छा, खुशबू तो बढ़िया आ रही है इरा, ये देखो मलाईका घी बन रहा है।"
"नाईस वर्क, चल मैं इसमें कोफ्तेको डुबोती हूं अभी", असं म्हणत तिने कढईत ते कोफ्ते सोडले.
" कुछ देर धीमी आंच पर उबलने दे इसको कोफ्ते मे ग्रेवी रहने के लिए। हरा धनिया या पोदीना हैं क्या बुरकनेके लिये?" तिने प्रश्न केला.
"हां है ना... फ्रिज में वो पीले प्लास्टिक के डिब्बेमे कैद है, वहांसे लीजिए।"
"हां ठीक है," ती म्हणाली, " मैं चावल बना देती हूं अभी कुकर में, तू डायनिंग टेबल साफ कर लेगी क्या?"
"येस, करती हूं"।
" एवि, उसको रहने दे, मैं साफ कर लेती हूं। तू प्लीज थोडे से कोफ्ते बाजू में मुद्गल आंटी को देके आ ना, " ती बोलली, " सवेरे उन्होंने मैसूर पाक लाके दिया था, उनका डिब्बा खाली कैसे लौटाएं? और आते वक्त इप्सित को लेके आ कान पकड़कर, कबसे जाके बैठा है उनके घर में, न खानेकी सुध है ना पिनेकी।" तिने एका स्टीलच्या डब्यात कोफ्ते भरले आणि माझ्याकडे तो डबा दिला.
मी परत आले तेंव्हा इरा ने विचारले," किधर है वो बदमाश? कान पकड़े की नही उसके?"
"अरे वो उधर था ही नही। वो आराम से बैठा है अपने दादा के गोद में, मैने यहांसे जाते हुए देखा उसे।"
"उफ़, दादा दादी के सामने ममी को पूछेगा ही क्यों? लाडला जो ठहरा उनका। अच्छा, वो चांदी की थालियां कहां रखी है पता है तुझे?"
"हां पता है ना, पर अभी क्यों?"
"अरे माई और अप्पा के लिए चांदी की थाली लगायेंगे ना एवी, अच्छीसी रंगोली बनाएंगे थालीके आजूबाजू। गुलाब की पंखुड़ियां भी बिखेर देंगे, थोडासा इत्र भी उंडेल देंगे हैं ना? मजा आएगा, क्यों? क्या खयाल है?"
" मस्त खयाल है, अभी लाती हूं थालियां और साथ में कटोरी और गिलास भी लाती हूं, पानी पीने दे उनको चांदी के गिलास में।"
"वॉव ये हुई ना बात!"
मी ताट, वाट्या, पेले, घेऊन आले. इराने सांगितलं तसं सगळं सजवताना ती म्हणाली, " देख एवी, हम दोनो बाद में खायेंगे। इनको पहले परोसेंगे प्यारसे। माई अगर कहती है साथ में बैठनेके लिए तो मना कर दे।"
"बिलकुल, ऐसा ही करेंगे। इप्सित भी भूखा होगा। चल, इन सबको बुलाऊं क्या?"
"हां लेकीन थोडा पावडर लगायेंगे ना मुंह पोछकर, पांच मिनिट में थोड़ा साड़ी वाड़ी ठीक करेंगे, तू भी जरा बाल ठीक करले, फिर बुला उन्हें। फ्रेश दिखेंगे जरा, है ना?"
"करेक्ट इरा, चेहरा फ्रेश हो तो माहौल और खूबसूरत बन जाता है।"
पाच सात मिनिटात आम्ही आमचा जामानिमा आट पला आणि मग बाहेर जाऊन सगळ्यांना बोलावले. हात धुऊन सर्व जण टेबलाजवळ आल्यावर माईंच्या हाताला धरून इराने त्यांना, माई आप यहां बैठिये असं म्हणत चांदीच्या ताटासमोर बसवले. मी अप्पांचा हात धरून त्यांना त्यांच्या ताटासमोर बसवले.
" माय गॉड, हा एवढा थाटमाट, चांदीची ताटे, रांगोळी, फुलं, अत्तर, एवढं सगळं? कोण विआयपी आहेत इथे?" माई म्हणाल्या.
"अवर फेअर लेडी, द फियरलेस राधाबाई" ऋषिन बोलला.
"येस, आज की शाम, राधाबाई के नाम," इशान ने पुस्ती जोडली.
"दादी की शादी," इप्सित असं बोलला आणि हास्याचा स्फोट झाला.
इरा म्हणाली होती तसं माईंनी आम्हालाही जेवायला बसायचा आग्रह केलाच पण आम्ही नंतर बसतो म्हणून सांगितलं. माईंना आम्ही आग्रहाने वाढत होतो तेंव्हा त्या जरा भावूक झाल्याचं दिसलं.
कच्चे केलेके कोफ्ते सगळ्यांना इतके आवडले की "व्वा इरा, क्या बात है, बहुत बढिया और टेस्टी बनाया है तुमने," असं तिचं कौतुक झाल्यावर ती म्हणाली," सब काम एविने किया है, मैने सिर्फ डिरेक्शन दिया, सराहना करनी है तो एवी कि की जाय।"
"देखो इरा, आप कुछ भी कहो, सब जानते है कि असलियत क्या है," मी म्हणाले.
" हो, कुणी का बनवेना, आमच्या मुलींनी काम मात्र अगदी सुंदर केलंय," माई म्हणाल्या, " आता तुम्ही दोघी बसा, मी वाढते तुम्हाला."
"नाही माई, आज तुम्ही काहीही काम करायचं नाही", मी सांगितलं, " आम्ही वाढून घेऊ आणि आवरून पण ठेऊ. तुम्ही आराम करा, बाहेर गप्पा रंगवा."
" ओके, तुम्ही म्हणाल तसं". माई हसत बाहेर गेल्या.
आम्ही दोघींनी ताट वाट्या घेतल्या आणि मग वाढून घेतलं.
" चल अब शांती से खा लेंगे।" आम्ही जेवायला सुरुवात केली.
"हां इरा, अब आप सुना दो जो कहानी आप कहने जा रही है।"
" हां तो सुन," तिने सांगायला सुरुवात केली,"तूने झेन एंड आर्ट ऑफ़ मोटरसाइकिल मेंटेनंस किताब पढ़ी हो तो जो ऑथर है ना, रॉबर्ट पिरसिग, ये बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट भी थे, ये कहते है, When one person suffers from a delusion, it is called insanity. When many people suffer from a delusion it is called Religion. मैं महज तीन साल की थी जब हम...
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सो मच हिंदी प्लस इंग्लिश मग पहिले सासुबाईला बाहेर बसायला सांगतात व कच्चे केले काहीतरी तेव्ढे वाचून सोडून दिले. चांगलीच असेल कथा. मला म्हातारीला कमी समजते.

एविता ताई, कथा चांगली आहे. कच्च्या केळयांच्या कोफ्ताची रेसिपी पण छान आहे. कथेतले संवाद मराठी असते तर अजून मजा आली असती... बाकी तुझ्या कथा मस्तच असतात.. खूप दिवसापासून तुझ्या लेखाची वाट पाहत होते...

एक अच्छी किताब कितनी भी पुरानी हो, उसके शब्द नही बदलते। अच्छे रिश्तोंकी यही तो खासियत है भई, घमंड किसिका भी नही रहता एवी, टूटनेसे पहले गुल्लक को भी यही लगता है की सारे पैसे उसीके है।>>>>>> मस्तच!!!

खूप छान लिहिलीए कथा...आवडली !!
इरा आणि एवीचे संवाद, मधेच कुकींग बद्दल बोलणे, छान वाटलं वाचताना.
क्रमशः आहे ना? पुभाप्र !

हिंदी वाचायची सवय नाही त्यामुळे फार वेळ लागला, दुर्दैवाने इंग्रजी मात्र त्यामानाने भराभर वाचता आले. कथा-संवाद आवडला. इराचा द्रुष्टीकोनही आवडला. तिचेही व्हिजन मोठे आहे. काही काही वाक्ये फार आवडली.
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मलाल वो करें जो दौड़ में शामिल ही ना हुए
इंसान का पतन उस समय शुरू होता है जब वह अपनों को गिराने की सलाह गैरोंसे लेता है
When many people suffer from a delusion it is called Religion. 
 If I asked you to keep your soul - would you understand why that's much harder?>>>अगदी समजू शकते.
My real soul...? It’s real only when it’s independent>>>>सहमत.
नास्तिक सोच रखनेके लिए जिगर चाहिए या सायंटिफिक सोच, तार्किक दृष्टिकोण.>>> याच्याही पुढे जाऊन तार्किक दृष्टिकोन असूनही आस्तिक असनं त्यापेक्षाही कठीण असते असं म्हणेन मी , कारण विनाअट/ निरपेक्ष समर्पण फार फार कठीण असतं. हे सहज सांगतेयं. Happy

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लेखन आवडले एवि ! Happy

आवडले...हिंदी संवाद जबरदस्ती मराठीत नाही लिहिले म्हणून जास्त आवडले...
मला शुद्ध मराठी कधीच आवडत नाही त्यामुळे देखील असू शकेल....

<<<<<वाचवलं नाही अगदिच.
इथे हिंदी कथा अपेक्षित नाही. आवरा!>>>>
राषट्रभाषेत नको तर शत्रूराष्ट्राच्या उर्दू भाषेत हवं आहे हा तुम्हाला? शाळेत असताना हिंदीत शून्य मार्क मिळायचे असे दिसते. हिंदी हि देवनागरी लिपीत लिहिली जाते आणि इथे देवनागरी लिपीत लिहू नका असा काही नियम नाही. नको असेल तर ऍडमिन उडवून टाकतील ना. शिवाय आवरा वगैरे भाषा वापरणे योग्य नाही. इथले लेखक आपला अमूल्य वेळ काढून लिहीत असतात. त्यांचा आदर ठेवा. तुम्हाला वाचायची जबरदस्ती कुणी केली नाही.

ह्म्म्म.. खूपच प्रयत्न करावे लागले वाचायला. तीन भाषांमुळे नाही format मुळे. आणि शेवटी काही ठोस हाती आले नाही. भाग अपूर्ण राहील्यागत वाटला. Dawkins, Ayn Rand यांचे उल्लेख का आलेत तेही नाही कळलं. थोडक्यात नाही क्लिक झाला हा भाग.

बिथोवन, शत्रू राष्ट्राची उर्दू भाषा? काळजाला घरं पडली हे वाचून! माऊलींची मराठी जितकी भारतीय, तितकीच गालिबची उर्दू! इतका आंधळा द्वेष बरा नाही हो Sad

@जिज्ञासा, इतका आंधळा द्वेष हिंदीचा ही बरा नाही. आणि केवळ गालिब कशाला? बशीर बद्र, मीर तकी मीर, हसरत मोहानी, कैफी आजमी, निदा फाजली, फिराक गोरखपुरी, मोमीन, दाग देहलवी, फैज अहमद फैज, हसरत जयपुरी,गुलझार, सुदर्शन फकीर, खामोश देहलवी, सरदार अंजुम, अनवर फरूकाबादी, साहीर लुधियानवी, जोश मलीहाबादी, शेख आदम आबूवाला, मुमताज राशीद,अकबर इलाहाबादी. ....हे सगळे दिग्गज आहेतच ना? ह्यातले बरेच जण अखंड हिंदुस्तानचा भाग होते तेही खरे आहे. आपल्या हिंदी चित्रपटात यातल्या बऱ्याच लोकांनी अवीट गोडीची गाणी दिली आहेतच की. यातल्या बऱ्याच कवींच्या गजला जगजीत सिंग यांनी गाऊन अमर करून ठेवल्या आहेत. मला असे म्हणायचे आहे की जेंव्हा राष्ट्रभाषेचा विषय येतो तेंव्हा त्या भाषेचा म्हणजे हिंदीचा एवढा दुस्वास का? स्वराष्ट्र म्हणजे मातृभूमी. मग तिची जी भाषा आहे तिला मातृभाषे समान मानले तर काय बिघडते?
आपण भारतीय असून हिंदी समजत नाही असे म्हणणे ही शरम येण्याची, लज्जास्पद बाब आहे. इंग्रजी चालते पण हिंदी नको म्हणजे गोऱ्यांच्या गुलामीची मानसिकता अजून गेली नाही असे म्हणायला हरकत नाही. मला फक्त इंग्रजी कळते म्हणजे मी फार मोठा शहाणा आहे आणि हिंदी बोलणारे, लिहिणारे सगळे देशी, डाऊन मार्केट आहेत असा अर्थ काढावा काय? इंग्लंड, अमेरिका इथले टॉयलेट साफ करणारे पण इंग्रजी बोलतात त्यात नवल ते काय.

अटल बिहारी वाजपेयी यांनी युनो इथे १९७७ सालात हिन्दी मध्ये भाषण केले तेंव्हा तिथे उपस्थित असलेल्या सर्व जणांनी टाळ्या वाजवून त्याचे स्वागत केले आणि अटलजीनीं हिंदीला आंतरराष्ट्रीय मंच उपलब्ध करून दिला. अर्थात् तिथे उपस्थित असणाऱ्या लोकांनी "आवरा आता" असे काही म्हटल्याचे ऐकिवात नाही कारण तिथे उपस्थित असलेल्या सर्वांच्या बुद्धीचा विकास झाला होता आणि त्यांची विचारसरणी प्रगल्भ होती.

ह्या लेखाच्या प्रतिसादात काही जणींनी हिंदीबाबत मुळीच आक्षेप घेतलेला नाही. उलट कौतुकच केले आहे. लेखात असणारी व्यक्ती इरा यांची काही वाक्ये हिंदीतच चांगली वाटतात. वरील सर्व प्रतिसाद वाचले कि कुणाच्या बुद्धीचा विकास झाला आहे आणि कुणाचा नाही हे सहज लक्षात येते.

खूप छान लिहिलीए कथा...आवडली !!
इरा आणि एवीचे संवाद, मधेच कुकींग बद्दल बोलणे, छान वाटलं वाचताना. > खरचं
लेखन आवडले एविता.

@ धनवंती, वाचेल तो वाचेल या हिशोबाने तुम्ही निदान वाचण्याचा प्रयत्न तरी केलात त्याबद्दल तुमचे आभार.

@ सनव, हो, आवरते. मी असं करते, या कथेचं शीर्षक बदलते आणि हिंदी शीर्षक ठेवते. सुरुवातीला ऍडमिन साठी एक टीप पण लिहिते कि त्यांना हिंदी पसंत नसेल तर डिलिट करावे. महिनाभर वाट पाहते. त्यांनी डिलिट केले नाही तर मग इरा ची पुढील कथा हिंदीतच असेल. पण तुमच्या सूचनेबद्दल आभार.

@ वाचिका, आप का बहोत बहोत शुक्रिया. येस, इराच्या तोंडी असणारी ओरिजिनल हिंदीचं मराठी केलं असतं तर एवढी खुमारी अली नसती.

माई इरा सोबत मराठी बोलतात आणि इराला ते मराठी कळतंय. मग एविला इराशी मराठीत बोलायला काय होतं काही कळत नाही.
पुर्ण लेख वाचला गेला नाही.
ह्या धाग्यावर 'चहा पेक्षा किटली गरम' प्रकारचे प्रतिसाद जास्त मनोरंजन करून गेले.

@ मृणाली समद, अहो, थँक यु सो मच! तुम्ही तिकडे तामिळ नाडू मध्ये असता ना? हिंदी तुम्हाला अगदी लहान बहिणीसारखी वाटत असणार. हो, पुढचा भाग आहे पण तो हिंदीतच असणार आहे कारण इरा तिची कहाणी सांगणार आहे. मी ऍडमिन याना विनंती करते कि हिंदी चालत नसेल तर उडवून टाका. महिनाभर वाट पाहणार आहे आणि हि कथा जर तशीच राहिली तर मग इराची कहाणी सांगेन.

@ अस्मिता, तुम्ही तर माझ्या स्फूर्ती देवता आहात. आणि तुम्हाला आवडलं म्हणजे मला खूप आनंद झाला. इरा खरेच खूप मॅच्युअर आहे. तिचेही लहानपण फार कष्टात गेले. असो. धन्यवाद.

<<<आवडले...हिंदी संवाद जबरदस्ती मराठीत नाही लिहिले म्हणून जास्त आवडले...
मला शुद्ध मराठी कधीच आवडत नाही त्यामुळे देखील असू शकेल...>>>
Wow! So nice of you. Thank you so much. Come, let us join our hands together!

वाचायला सुरुवात केली पण हिंदी संपेचना ! अर्धवट सोडली. >>>> हो मला पण अगदीच कंटाळा आला. हिंदी बोलता ऐकताना सहज वाटते, पण वाचायला मात्र कंटाळा येतो.
आणि मराठी वाचायच्या उद्देशाने आल्यावर तर अगदीचच नको वाटते.

वर कोणी लिहिलं आहे की हिंदी राष्ट्रभाषा आहे, ते बरोबर आहे का? माझ्या माहितीप्रमाणे हिंदी राजभाषा आहे, राष्ट्रभाषा नाही.

एविता, माबोवरच्या रोखठोक प्रतिसादांची सवय करून घ्या!
हिंदी भाषेच्या वापराविषयी लोकांनी लिहिले आहे खरं पण माझ्या मते ते लेखनशैलीचं खटकणं आहे.
कदाचित तुम्ही वाचली असेल तर माहित नाही पण हायझेनबर्ग यांनी कुल्फीच्या बिस्किटचे पापलेट नावाची एक अप्रतिम कथा लिहिली आहे (पहिल्या भागाची लिंक: https://www.maayboli.com/node/66908). या कथेत उर्दूचा भरपूर वापर केला आहे. मात्र त्या धाग्यावर उर्दू वाचायला अडचण येते आहे असे प्रतिसाद दिसत नाहीत. तुमच्या धाग्यावर हे असे प्रतिसाद आले तर ते का याचा विचार करावा. To me, I had to snap in and out of the languages multiple times and that was breaking the thread of conversation while reading. It was annoying more than anything else. हिंदी नको म्हणणारे हिंदी द्वेष्टे असल्याचे लेबल लावून काही होणार नाही. शिवाय ॲडमिनने आपले लेखन उडवावे अशी आकांक्षा बाळगण्यापेक्षा (हाब यांचे लिखाण शाबूत आहे तेव्हा तुमचे लेख काही उडवणार नाहीत ॲडमिन!) आलेला criticism उत्तम प्रकारे घेऊन लेखनात सुधारणा केलीत तर आम्हाला छान काहीतरी वाचायला मिळेल! पुलेशु!

जिज्ञासा यांचा प्रतिसाद पटला. चर्चा चालूच आहे म्हणून सांगते कि मी पण लेख एका झटक्यात नाही वाचला.
एविता तुम्ही छान लिहिता आणि पुढे चांगले कंन्टेन्ट असतील म्हणून नेटाने लेख वाचुन पूर्ण केला. पण फ्लो मध्ये मध्ये जात होता.
पुढचा भाग वाचायला पण नक्कीच आवडेल.
माझ्या मुलीचे नाव इरा आहे सो मी आणि इरा या शीर्षकापासूनच आवडला. Happy

@ जिज्ञासा, कथा लिहिताना फॉरमॅट वापरावा लागतो? सॉरी. मला माहित नाही. मला वाटतं कविता करताना एक फॉरमॅट असतो किंवा एखाद्या वृत्तात तो लिहावा लागतो जसे की शार्दुलविक्रिडीत किंवा वसंत तिलका वगैरे. यमक, गमक जुळवावी लागतात, अलंकार वापरावा लागतो वगैरे.

ही कथा तीन फॉरमॅट मध्ये आहे म्हणजे तीन भाषेत आहे असे तुझे म्हणणे असेल तर ते योग्य आहे. इरा, माझी मोठी जाऊ, तिला मराठी येत नाही, हिंदी भाषिक आहे. मला मराठी आणि हिंदी दोन्ही भाषा समजतात. अशा वेळी आमच्या दोघींची एक कॉमन भाषा हिंदीच असणार हे उघड आहे. आता आपण एकमेकांशी मराठी बोलतो तेंव्हा सहजगत्या इंग्रजी वाक्ये वापरली जातात आणि ते अगदी नैसर्गिक आहे आजच्या काळात, आणि संभाषण करताना ते अगदी कळत नकळत वापरली जातात. अगदी तसेच आमच्या दोघींच्या बाबतीत घडले आणि लिहिताना अगदी तसेच लिहिले गेले.

रिचर्ड डॉकिन्स हा निरीश्वरवाद मानणारा लेखक आहे. इरा आणि मी आम्ही दोघीही नास्तिक आहोत म्हणून त्याचा आणि त्याने लिहिलेल्या पुस्तकांचा उल्लेख आहे.

इरा आणि मी आम्ही दोघी फिक्शन वाचत नाही, जसे की मिल्स ऍण्ड बून, सिडनी शेल्डन किंवा असे काही मनोरंजक लिहिणारे. आयन रँड ह्या लेखिकेने 'द फाऊंटनहेड' नावाची जी कादंबरी लिहिली ती वास्तुविशारद या विषयावर लिहिली आहे. बारावी झाल्यानंतर इराच्या वाचण्यात ती कादंबरी आली आणि ते वाचून तिने आर्किटेक्ट बनण्याचा निर्णय घेतला म्हणून आयन रँड हिचा उल्लेख आहे. तू याच्या अगोदर माझी नो, I Regret Nothing हे वाचलं असशील तर तुला संदर्भ लागेल.

@ मीरा, मी तुमच्या मताशी सहमत आहे. भाषा बहता नीर। भाषा एक प्रवाहमान नदी। भाषा बहता हुआ जल। बात बावन तोले पाव रत्ती सही। कबीर की कही हुई है तो सही होनी ही चाहिए।धन्यवाद

एविता, मी तुमचे लेख आवर्जून वाचत असते. प्रतिसाद देखील देते.
कथालेखनाला देखील format असतोच. आता तो कवितेच्या छंदाइतका काटेकोर नसला तरी कथेची मांडणी, तिचा ओघ, त्यातील संवाद या साऱ्या गोष्टी वाचकांना कथेशी बांधून ठेवतात का हे बघणे आवश्यक असते. तुम्ही जसे बोलता तसे लिहायला गेलात तर त्रयस्थ व्यक्तीला ते संवाद समजणे आणि त्यात रस वाटणे कठीण आहे. विशेषतः छापील माध्यमातून व्यक्त होताना.
I have read almost all the books by Richard Dawkins and Ayn Rand. तुमचे आधीचे लेख वाचल्याशिवाय या संवादांचा अर्थ लागणार नाही हे काही पटले नाही. एखाद्याने आधीचे लेख वाचल्याने जरा जास्त संदर्भ लागेल हे ठीक आहे पण वाचकाला तुमचा लेख स्वतंत्रपणे आवडावा हे अधिक योग्य नाही का? You can't base your dialogs on some previous conversations that the reader is not privy to! हाही कथेच्या लेखनासाठी आवश्यक असा एक नियम आहे. माबोवर एकसे एक कथालेखक आहेत आणि त्यांच्या कथा पण आहेत. तुम्हाला त्यांच्या शैलींचा नक्कीच अभ्यास करता येईल. पुलेशु!

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