मी आणि इरा.

Submitted by एविता on 20 March, 2021 - 09:08

मी आणि इरा.

"अरे हे काय इरा, तू दुधाचं पातेलं फ्रीज मध्ये ठेवलं नाहीस की.." आम्ही स्वैपाकघरात शिरताच माई म्हणाल्या. "
" ओ माई, भूल गयी मै... सॉरी सॉरी..." असं म्हणत इरा पातेले उचलू लागली तसं, " इसमें सॉरी क्यों? भूल हो जाती है इन्सान से कभी कभी,.." असं बोलत माईंनी पातेल्यावर झाकण ठेऊन ते फ्रीज मध्ये ठेवलं. " अच्छा, " त्या पुढं बोलल्या, " तू काहीतरी खास करणार आहेस असं म्हणालीस सकाळी."
"येस माई,कच्चे केले के कोफ्ते."
" व्वा छान, आता काय आणि कसं ते सांग."माईंनी पदर खोचला.
" माई, आप वो सब हम दोनो पर छोड़ दीजिए, आप बाहर जाकर अप्पा के साथ बैठ जाइए आराम से।"
" हो माई, तुम्ही बसा बाहेर हॉलमध्ये गप्पा मारत, आज तुम्ही किचनच्या रणांगणावर येऊ नका. आम्ही ही खिंड लढवतो."
"हो हो लढवा," माई हसत हसत हॉल कडे वळत म्हणाल्या," चांगल्या रंगरूट आहात तुम्ही दोघी...! लढा."
माई बाहेर गेल्या तसं, "चल एवी,पोजीशन ले ले और हमले के लिए तैयार हो जा..." इरा हसत म्हणाली." येस मेजर साहिबा,"मी कपाळाला उजवीकडे उलटा हात लावत तिला सलाम करत बोलले,"आपके हुक्म की तामील होगी, अभी और इसी वक्त." आम्हा दोघींना खिदळायला कसलंही कारण चालतं.
" फिलहाल तू वो कच्चे केले है ना, सवेरे ईशान लेकर आया था, उसको धो ले और तीन तीन टुकडो मे काट ले, और हां उनका छिलका मत उतार।"
" सवेरे लाए हुए केले, इरा, अभी तो शाम में पक गए होंगे ना.... मी केळीचा घड हातात घेत गंभीर स्वरात बोलले," सुबह का भूला हुआ शामको वापस आ जाएं तो उसको भूला नहीं कहते या केला नही कहते, कुछ तो नही कहते, है ना...?
" ठीक है, अभी तुझे ही भेजती हूं बाहर केले लानेके लिए वो अगर पक गए है तो।" ती धमकावणीच्या सुरात म्हणाली.
"नही नही मेजर साहिबा, आपको देखकर वापस कच्चे बन गए है। डोंट वरी।" इरा हसली.
मी केळी कापायला सुरुवात केली तो पर्यंत इराने कुकर साफ करून घेतला.
" अब इनको कुकर मे उबाल लेती हूं । ये कच्चे केले गलने मे वक्त लेते हैं सो थोड़ा ज्यादा प्रेशर कुक करना पड़ेगा।" तिने केळ्याचे तुकडे कुकरमधे टाकून कुकर गॅस वर चढवला.

"अब मुझे क्या करना है मैडम?" मी विचारलं.
"तू प्लीज प्याज पीस ले, मै टमाटर और मिर्च काटती हूं।" तिने मिरच्या चिरायला सुरुवात केली.
मी कांदे कापू लागले. " माई की स्टोरी सुनकर तुझे क्या लगता है इरा?" मी तिला विचारलं.
"माई ने बहुत सहा है। मैं कहती हूं के आदमी के पास हुनर होना चाहिए तो ही वो ऊंचाइको छू सकता है, जैसे कि माई। एड़ी ऊपर लेनेसे सिर्फ कद बढ़ता है, ऊंचाई नही।" ती मिरचीचे कापलेले छोटे तुकडे बाजूला सारत बोलली.
" मैंने तो ऊंची एड़ी वाले शूज पहननाही बंद कर दिया है।" मी कांदा बारीक करताना डोळ्यात आलेले पाणी पुसत म्हणाले.
" जोक मत सुना, अब देख ना, इंसान का पतन उस समय शुरू होता है जब वह अपनों को गिराने की सलाह गैरोंसे लेता है, जैसे माई के काकाजी। भाई का इस्टेट वापस देना पड़ा ना...देख रिश्ते को है ना, दोनों तरफसे निभाना पड़ता है, एक तरफसे सेंक कर रोटी भी नही बनती।" ती टोमॅटो पुसत बोलली.
"सही कहती है आप."
" साजिश तो वो रचते हैं जिन्हे जंग जितनी हो, जैसे के काकाजी, माई की मां तो बेचारी दिल जितनेकी कोशिश में लगी हुई थी, ताकि रिश्ता बना रहे। जिंदगी का क्या है एवी, वह थम तो नही जाती किसी के बिना, पर गुजरती भी नही अपनोंके बिना, है ना?" टोमॅटो चिरत तिने विचारले.
"पते की बात कर रही है आप इरा।" मी उत्तरले.
तेवढयात कुकरची शिट्टी वाजली. मी गॅस बंद करू लागले." वेट, चार पांच सीटियां बजने दे, फिर बंद करेंगे। उबाल लेने के बाद छिलका अपने आप उतर जाता हैं और यही पहचान होती हैं कि केला उबल गया।" ती गॅस जवळ जात म्हणाली.
" बुरा चाहनेवाला अपना है तो भी वो पराया है और भलाई चाहनेवाला, पराया भी हो तो भी वो अपना हैं, रोग अपने ही शरीर में पैदा होता है पर बाहरवाली औषधियां अपनेको ठीक बनाती हैं। तुझे पता है," पाच शिट्ट्या झाल्यावर ती गॅसचे बटन बंद करत म्हणाली, "एक अच्छी किताब कितनी भी पुरानी हो, उसके शब्द नही बदलते। अच्छे रिश्तोंकी यही तो खासियत है भई, घमंड किसिका भी नही रहता एवी, टूटनेसे पहले गुल्लक को भी यही लगता है की सारे पैसे उसीके है।" ती कुकरचे झाकण उघडत बोलली.
" सच है इरा, बरसात आती है तो कानों में हल्के से कह जाती है, गर्मी चली गई, राईट?"
" करेक्ट, हंड्रेड परसेंट करेक्ट," ती हसली.
" अच्छा, लो ये देख, कैसे आराम से छिलके निकल गए, " कुकर मधून बाहेर काढलेल्या केळ्यांकडे पाहात ती म्हणाली, " अब ये छिलका अलग कर के केलो को मैश कर ले और इसमे बेसन मिला ले, और नमक और पीसी लालमिर्च डालकर इनके गोल कोफ्ते बना। बादमे इन को डीप फ्राई करेंगे। संभाल कर,वो टुकड़े गरम है।

" ठीक है, धीरे से निकालती हूं। आपको नही लगता की काकिकी हालत ठीक नहीं हुई? जिंदगीसे बेचारी हार गई ना?"मी केळ्यांची सालं काढत म्हणाले
"नही एवी, हारी होती तो खुदकुशी कर लेती। जिंदगीसे दो हाथ किए उसने। इस तरह हारने वालों का भी अपना एक रूतबा होता है एवी, मलाल वो करें जो दौड़ में शामिल ही ना हुए।" असं म्हणत तिनं लसणाच्या पाकळ्या सोलायला घेतल्या.
" लेकिन ग्रैनी ने ठीक किया क्या काकाकी शादी उनसे बनाकर? गलत नही किया क्या?" मी बेसन मध्ये केळ्यांचे तुकडे कालवत बोलले.
" देख एवी, ग्रैनी का कोई दोष नही। अपना बच्चा तो अपनी कोखसे पैदा होता है, उसकी भलाई के लिए एक मां आसमान के तारे भी तोड़कर लाएगी। उसे लगा होगा ना की रामन्ना सुधर जायेगा। एक औरत के बिना घर सुना सुना हो जाता है और दूसरा, ग्रेनी अगर भगवान को प्यारी हो जाती है तो रामन्ना को देखनेवाला कौन था? यही सोचकर उस बेचारी ने उनकी शादी बना दी। अब देख, भविष्य कौन जानता है? उनको क्या पता की इसका अंजाम इस तरहसे होगा?"
" हां इरा, ये बात भी सही है। पर तुझे नही लगता ग्रेनी थोड़ी नास्तिक थी, जैसे उन्होंने भगवान के बारेमे कुछ अलग कहा था?"
इरा हसली." तूने भगवान को देखा है एवी?"
" नही तो, आपने देखा है?"
इरा परत हसली." इन सबका खाना हो जाने दे, मैं तुझे कहती हूं आस्तिक, नास्तिक और राम के भक्त और रहिमके बंदोंके बारेमे।
" पक्का सुनुंगी मैं आपसे, मज़ा आयेगा।" मी म्हणाले.
" देख , नास्तिक बनना या ऐसी सोच रखना मुश्किल काम है. आस्तिक तो आदमी जन्मसे ही होता है. उसके पेरेंट्स उसको जन्मसे ही इंडॉक्ट्रिनेट करते है. उसमे तीर मारने जैसी कोई बात नहीं. नास्तिक सोच रखनेके लिए जिगर चाहिए या सायंटिफिक सोच, तार्किक दृष्टिकोण. या इंटेलेक्चुअल व्यू पॉइंट. ये पॉइंट था ग्रैंडमा के पास और वो भी उस जमानेमे...
" और बहुत पढ़ी लिखी ना होनेके बावजूद, है ना?"
" करेक्ट, यार तू वो रिचर्ड डॉकिन्स की द गॉड डेल्युजन क्यों नहीं पढ़ती?",इराने सुचविले.
" मैं तो समझती थी आप सिर्फ फिक्शन पढ़ती है।" .
"कोई भी पढ़ा लिखा लॉजिकल सोच रखनेवाला आदमी रिचर्ड डॉकिन्स को पहचानता ही होगा। उसकी और एक बढ़िया किताब है,
आउटग्रोइंग गॉड. एकदम मस्त. द सेल्फिश जीन,ये भी पढ़ ले उसकी ही है।"

"आप कहती है तो मुझे पढनाही पड़ेगा इरा।"
" तुझे पता है, मुझे आर्किटेक्चर क्या होता है मालूम ही नहीं था। बारवीमे थी और सोच रही थी क्या करना है तभी अयान रैंड कि किताब 'द फाउंटेनहेड' हाथ लगी और वही मेरा टर्निंग पॉइंट बन गया। उसमे जो ओब्जेक्टिविज़्म है वह एक नास्तिक फलसफा ही है।"
"ओ माय गॉड, इरा, मैंने वो खरगपुर में पढ़ी थी।मैं विनोद गुप्ता में एमबीए कर रही थी तब हमारी एक कॉमन फ्रेंड जो मास्टर्स इन सिटी प्लानिंग कर रही थी उसने दिया था मुझे वो पढनेके लिए I वॉव, वो होवार्ड रोअर्क का कोर्टरूम स्पीच पढ़कर मैं भी डोमिनिक कि तरह उससे प्यार करने लगी थी। हाहाहा....।"
"अरे मैं तो वो जो बोलता है न, जैसे I don’t build in order to have clients, I have clients in order to build, या फिर I came here to say that I do not recognize anyone's right to one minute of my life. Nor to any part of my energy. Nor to any achievement of mine. No matter who makes the claim, how large their number or how great their need. I wished to come here and say that I am a man who does not exist for others. और दूसरा, To sell your soul is the easiest thing in the world. That's what everybody does every hour of his life. If I asked you to keep your soul - would you understand why that's much harder?" मुझे तो ये सब पढ़ते वक़्त गुजबंप्स आते थे। मैने ये सब बाय हार्ट किया था। तभी मैंने ठान लिया, बनना है तो सिर्फ आर्किटेक्ट!
" व्वा इरा व्वा, और वो डोमिनिक कहती है न .... My real soul...? It’s real only when it’s independent... या फिर
I can do nothing halfway. Those who can, have a fissure somewhere inside. Most people have many. They lie to themselves—not to know that. I’ve never lied to myself. मुझे भी याद है।" मी सांगितलं.
" वॉव एवी, तू भी उस्ताद निकली।"
"नही, मैं आपकी शागिर्द हूं और शागिर्द ही रहूंगी, हमेशा।" मी हसत म्हणाले.
" ये लो, तूने टिकियां भी बना डाली गपशप में। चल मैं अभी इनको फ्राई करती हूं। तू ग्रेवी बनाएगी क्या?"
"अरे आप हुक्म करे और हम ना माने?"
" देख मैं फ्राई करती हूं क्यों के ये ज्यादा लाल नहीं होगे, इसलिये ध्यान देना होगा कि गोल्डन होना ही इनका फ्राई हो जाना हैं। ठीक है?"
"येस, अब आप बताइए ग्रेवी के लिए क्या करू?"
" ग्रेवी के लिये कढ़ाईमे २-३ चम्मच वो धारा तेल डाल दे। उसमे पीसा हुआ प्याज, मिर्च और लहसून डाल कर भून लें।"
" ओके," मी तिने सांगितले तसे करायला घेतले.

" यह काकिका किरदारही सबसे अहम है एवी, माईके मां के लिए उनके हसबैंड थे, टूटाफुटा क्यों न हो लेकिन सरपर छत तो था, दो बच्चियां थी जिनको बड़ा करनेमे उनका वक्त गुजरता था। काकिके हसबैंड नही थे, और उस जमानेमे बिना शौहर के रहना कोई सोच भी सकता? चलो समझ लिया के पेट की आग तो बुझ सकती थी पर जवान अरमानों का क्या? उसकी आग का क्या? दिन ढलने के बाद रात तो एक ब्लैक होल की तरह उनको इस तरह दबोच लेती होगी के बाहर आने के लिए केवल आसुओंका सहारा। उन्होंने तो अपनी भावनाओंको, अपनी इच्छाओंको जला डाला, और बाद में बच्चोंकी भी आहुति डाल दी। आज किसीके साथ ऐसा होता तो डिप्रेशन की शिकार हो जाती झट से।" इरा बोलत होती.
"हां इरा, ये भी सोचनेवाली बात है।"
" वॉव, अच्छी खुशबू आ रही है,अब कटा हुआ टमाटर और मसाले डाल, थोड़ा पानी डाल और फिर भूनती रह ।" ती म्हणाली, " उजाले में हर असलियत कहां नजर आती है एवी, अंधेरा ही बताता है की सितारा कौन है। चली गई बेचारी सितारोंसे आगे।"
"बेचारी गिरिजाकाकू," मी उद्गारले.
"और उस के पास था भी क्या जो कोई उसके साथ रिश्ता बनाता, अपने मतलब के अलावा कोई किसको पूछता नही, पेड़ सूख जाता है तो पंछी भी बसेरा नही करते," ती कढईत बघत म्हणाली, " " खूब, ये ठीक हुआ, इस मिक्स मे अब मलाई डाल कर थोड़ा पानी और डालेंगे।"
तिने फ्रीजमध्ये ठेवलेले लोणी एक मोठा चमचाभर घेऊन कढईत घातले आणि थोडेसे पाणी ओतले. " इस पूरे मिक्स को तबतक भुन जबतक ये घी ना छोड़े...और फिर इसमे कोफ्ते और देसी घी एकसाथ डालते है।"
" अच्छा, खुशबू तो बढ़िया आ रही है इरा, ये देखो मलाईका घी बन रहा है।"
"नाईस वर्क, चल मैं इसमें कोफ्तेको डुबोती हूं अभी", असं म्हणत तिने कढईत ते कोफ्ते सोडले.
" कुछ देर धीमी आंच पर उबलने दे इसको कोफ्ते मे ग्रेवी रहने के लिए। हरा धनिया या पोदीना हैं क्या बुरकनेके लिये?" तिने प्रश्न केला.
"हां है ना... फ्रिज में वो पीले प्लास्टिक के डिब्बेमे कैद है, वहांसे लीजिए।"
"हां ठीक है," ती म्हणाली, " मैं चावल बना देती हूं अभी कुकर में, तू डायनिंग टेबल साफ कर लेगी क्या?"
"येस, करती हूं"।
" एवि, उसको रहने दे, मैं साफ कर लेती हूं। तू प्लीज थोडे से कोफ्ते बाजू में मुद्गल आंटी को देके आ ना, " ती बोलली, " सवेरे उन्होंने मैसूर पाक लाके दिया था, उनका डिब्बा खाली कैसे लौटाएं? और आते वक्त इप्सित को लेके आ कान पकड़कर, कबसे जाके बैठा है उनके घर में, न खानेकी सुध है ना पिनेकी।" तिने एका स्टीलच्या डब्यात कोफ्ते भरले आणि माझ्याकडे तो डबा दिला.
मी परत आले तेंव्हा इरा ने विचारले," किधर है वो बदमाश? कान पकड़े की नही उसके?"
"अरे वो उधर था ही नही। वो आराम से बैठा है अपने दादा के गोद में, मैने यहांसे जाते हुए देखा उसे।"
"उफ़, दादा दादी के सामने ममी को पूछेगा ही क्यों? लाडला जो ठहरा उनका। अच्छा, वो चांदी की थालियां कहां रखी है पता है तुझे?"
"हां पता है ना, पर अभी क्यों?"
"अरे माई और अप्पा के लिए चांदी की थाली लगायेंगे ना एवी, अच्छीसी रंगोली बनाएंगे थालीके आजूबाजू। गुलाब की पंखुड़ियां भी बिखेर देंगे, थोडासा इत्र भी उंडेल देंगे हैं ना? मजा आएगा, क्यों? क्या खयाल है?"
" मस्त खयाल है, अभी लाती हूं थालियां और साथ में कटोरी और गिलास भी लाती हूं, पानी पीने दे उनको चांदी के गिलास में।"
"वॉव ये हुई ना बात!"
मी ताट, वाट्या, पेले, घेऊन आले. इराने सांगितलं तसं सगळं सजवताना ती म्हणाली, " देख एवी, हम दोनो बाद में खायेंगे। इनको पहले परोसेंगे प्यारसे। माई अगर कहती है साथ में बैठनेके लिए तो मना कर दे।"
"बिलकुल, ऐसा ही करेंगे। इप्सित भी भूखा होगा। चल, इन सबको बुलाऊं क्या?"
"हां लेकीन थोडा पावडर लगायेंगे ना मुंह पोछकर, पांच मिनिट में थोड़ा साड़ी वाड़ी ठीक करेंगे, तू भी जरा बाल ठीक करले, फिर बुला उन्हें। फ्रेश दिखेंगे जरा, है ना?"
"करेक्ट इरा, चेहरा फ्रेश हो तो माहौल और खूबसूरत बन जाता है।"
पाच सात मिनिटात आम्ही आमचा जामानिमा आट पला आणि मग बाहेर जाऊन सगळ्यांना बोलावले. हात धुऊन सर्व जण टेबलाजवळ आल्यावर माईंच्या हाताला धरून इराने त्यांना, माई आप यहां बैठिये असं म्हणत चांदीच्या ताटासमोर बसवले. मी अप्पांचा हात धरून त्यांना त्यांच्या ताटासमोर बसवले.
" माय गॉड, हा एवढा थाटमाट, चांदीची ताटे, रांगोळी, फुलं, अत्तर, एवढं सगळं? कोण विआयपी आहेत इथे?" माई म्हणाल्या.
"अवर फेअर लेडी, द फियरलेस राधाबाई" ऋषिन बोलला.
"येस, आज की शाम, राधाबाई के नाम," इशान ने पुस्ती जोडली.
"दादी की शादी," इप्सित असं बोलला आणि हास्याचा स्फोट झाला.
इरा म्हणाली होती तसं माईंनी आम्हालाही जेवायला बसायचा आग्रह केलाच पण आम्ही नंतर बसतो म्हणून सांगितलं. माईंना आम्ही आग्रहाने वाढत होतो तेंव्हा त्या जरा भावूक झाल्याचं दिसलं.
कच्चे केलेके कोफ्ते सगळ्यांना इतके आवडले की "व्वा इरा, क्या बात है, बहुत बढिया और टेस्टी बनाया है तुमने," असं तिचं कौतुक झाल्यावर ती म्हणाली," सब काम एविने किया है, मैने सिर्फ डिरेक्शन दिया, सराहना करनी है तो एवी कि की जाय।"
"देखो इरा, आप कुछ भी कहो, सब जानते है कि असलियत क्या है," मी म्हणाले.
" हो, कुणी का बनवेना, आमच्या मुलींनी काम मात्र अगदी सुंदर केलंय," माई म्हणाल्या, " आता तुम्ही दोघी बसा, मी वाढते तुम्हाला."
"नाही माई, आज तुम्ही काहीही काम करायचं नाही", मी सांगितलं, " आम्ही वाढून घेऊ आणि आवरून पण ठेऊ. तुम्ही आराम करा, बाहेर गप्पा रंगवा."
" ओके, तुम्ही म्हणाल तसं". माई हसत बाहेर गेल्या.
आम्ही दोघींनी ताट वाट्या घेतल्या आणि मग वाढून घेतलं.
" चल अब शांती से खा लेंगे।" आम्ही जेवायला सुरुवात केली.
"हां इरा, अब आप सुना दो जो कहानी आप कहने जा रही है।"
" हां तो सुन," तिने सांगायला सुरुवात केली,"तूने झेन एंड आर्ट ऑफ़ मोटरसाइकिल मेंटेनंस किताब पढ़ी हो तो जो ऑथर है ना, रॉबर्ट पिरसिग, ये बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट भी थे, ये कहते है, When one person suffers from a delusion, it is called insanity. When many people suffer from a delusion it is called Religion. मैं महज तीन साल की थी जब हम...
…………………

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@ जिज्ञासा,To me, I had to snap in and out of the languages multiple times and that was breaking the thread of conversation while reading. It was annoying more than anything else

I am sorry dear you had to face lot of difficulties .

एविता, तुमचे लेख मला खरतर खुप खुप आवडतात.
पण माफ करा, राग मानुन घेउन नका..यावेळी पूर्ण नाही वाचु शकले.
कथेची/लिखाणाची गरज असेल कदाचित. पण मला स्वतः ला इतकं हिंदी नाही येत वाचता त्यामुळे नाही वाचलं.
तुम्ही इतकं सुंदर लिहिता, मागे एकदा माईच्या इंग्रजी भाषणाचा इतका सुरेख अनुवाद लिहिला होतात तुम्ही...माझ्या डोळ्यासमोर अस्खलित मराठी बोलणार्‍या माई च आल्या होत्या.....
या हिंदीचा अनुवाद पण छान लिहु शकला असतातच तुम्ही नक्की.
असो...कसं आणि काय लिहायचं हा पूर्ण पणे लेखकाचा निर्णय असतो आणि त्याचा आदर आहेच.
पुढच्या लेखाची वाट पाहतेय

एविता, माफी कसली मागताय अहो! तुम्हाला तुमच्या लेखनात सुधारणा करता याव्यात यासाठी इतक्या तपशीलात जाऊन फिडबॅक दिला आहे. It was my choice to spend time in reading and responding to your article. आणि माझा वेळ सत्कारणीच लागला आहे. You don't need to make the readers awkward for offering you their honest opinion. माफी मागण्यापेक्षा खुल्या दिलाने माझ्या फिडबॅकवर विचार करेन असे म्हणालात तर अधिक आवडेल. पुलेशु!

एविता जी, ज्ये. ना. कहकर आप माफी मांगकर मेरी बात को नजर अंदाज न करें | कृपया इस बातपे ध्यान दीजिए कि जो साइट मराठी भा षा
प्रेमिकोंने खास कर मरा ठी में लि खी हुई कविताएं तथा गद्य पढने के लिये बनाई गयी है. उसी पे आप निरंतर हिंदी तथा अंग्रेजीमें लिख रही है|
जरूर लिखिये और कथा है भी सुंदर किंतु इस जगह पे थोडी दिल्ली का लड्डू - सब मोटा मोटी - ऐसी लग रही है पाठकों को| और पढने - रसास्वाद करने में अडचन हो रही है | आप किसी भी भा षा में लिखें मुझे कोई भी आपत्ति नहीं है| आगे आने वाली कथाओंके लिए हार्दिक रूपसे
शुभ कामनाएं

@ अमा, <<< कृपया इस बातपे ध्यान दीजिए कि जो साइट मराठी भाषा प्रेमिकोंने खास कर मराठी में लिखी हुई कविताएं तथा गद्य पढने के लिये बनाई गयी है. उसीपे आप निरंतर हिंदी तथा अंग्रेजीमें लिख रही है|>>>
नमस्कार, मैंने निरंतर नहीं लिखा है, पहली बार ऐसा हुआ है. नहीं तो इसके पहले सारी कथाएं मराठीमेही लिखी है. च्यूं की अगली तीन चार कथाएं हिंदी में है और आपको ये बात नागवार लगती है, इसलिए मैं आपके इस साइटको अलविदा करती हूँ. मराठी भाषा पर मेरा भी प्रेम है और उतना ही हिन्दीपर भी. आप बुजुर्ग है इसलिए आपकी सलाह मानकर यहांके मराठी भाषा प्रेमियोंकी कदर करते हुए मैं आपसे विदा लेती हूँ. धन्यवाद.

एविता, आपण असा निरोप का घेत आहात? कधी तरी तुम्ही मराठीत लिहिणार आहातच ना? त्या वेळी नक्की इथे लिहा. मला नाही वाटत की तुम्ही यापुढे मराठीत लिहिण्याचेच थांबवाल. तुमचे लिखाण आवडत आलेले आहे. मायबोली तुमच्या मराठी लिखाणाला मुकू नये. पोह्यांतल्या कोथिंबिरीसारखी थोडीशी हिंदी (किंवा कुठलीही सर्वसामान्यपणे ओळखीची भाषा) शिवरलेली असेल तर लिखाणाची लज्जत वाढेलच. कमी नाही होणार.

मला नाही वाटत की तुम्ही यापुढे मराठीत लिहिण्याचेच थांबवाल >>+1
वाचकांच्या प्रेमळ आग्रहास्तव मराठी मध्ये लिहा ना.

एविता,
मी ऍडमिन याना विनंती करते कि हिंदी चालत नसेल तर उडवून टाका. महिनाभर वाट पाहणार आहे आणि हि कथा जर तशीच राहिली तर मग इराची कहाणी सांगेन.>>>>>>>
मग का अलविदा म्हणताय? महिन्याभरानंतर पुन्हा लिहा.

इसलिए मैं आपके इस साइटको अलविदा करती हूँ>> मेमसाबजी साइट मेरी नहीं है. कोई आपत्ति हो तो मालिकोंसे संपर्क करें .

आम्ही हिंदी चित्रपट पाहतोच पहातो. हिंदीही देवनागरीत असले तरी वाचायला मात्र कंटाळवाणे वाटते, पण चांगले हिंदी पुस्तक असले तर आवर्जून वाचतो.

एक वाक्य हिंदी, एक मराठी असं आलटून पालटून सुरू राहिलं, वर्णन मराठी - संभाषण हिंदी असं चित्रपटात असलं तरी ते कंटाळवाणे वाटेल बहुतेक.

पूर्ण हिंदीत असती कथा तर शेवटपर्यन्त वाचली असली.

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पण मराठी संकेतस्थळावर इतर भाषीय साहित्य नको हे सुद्धा बरोबर आहे, त्याचा आदर करायला हवा.

एकदा नाही तर दोनदा वाचायचा प्रयत्न केला पण जमलं नाही पूर्ण वाचायला. पहिल्यांदा वाटलं कदाचित एखादा पॅरा हिंदीत असेल पण नाही... असो. तेव्हा वर जे जे मराठीत लिहा म्हणतायत त्यांच्याशी सहमत.. शेवटी मायबोलीवर मराठी वाचण्यात इंटरेस्ट आहे, पूर्ण हिंदी किंवा इंग्लिश नाही.

हळुहळु ही माबोवरची प्रथा होत चालली आहे की लेखक/लेखिका सुरुवातीला उत्कृष्ट लिहिणार, स्वतःचे चाहते तयार करणार, नेहमी वाहवा, प्रशंसा, टाळ्या प्रतिसाद मिळवणार, मग एखादा लेख, कथा, कविता चाहत्यांना रुचलं नाही आणि तसं म्हणायचा अवकाश की लगेच ते म्हणणार मी जातो जातो, मग त्यांचे चाहते म्हणणार थांबा थांबा. कौतुक केलेलं आवडतं तर टीका (तीही सौम्य सभ्य भाषेत आहे) का बरं पचवता येऊ नये?
मी तर कितीही आवडता लेखक /लेखिका असेल आणि हा attitude असेल तर म्हणेन बाय !

मला हिंदी वाचायचा प्रॉब्लेम नाही . अर्धी कथा वाचली सुद्धा. पण तुमचं लिखाण हिंदीत देखील धड नाहीये. त्यामुळे अर्धवट सोडून दिलंय.
मी हिंदी लेखक वाचलेत . त्यांची भाषा अत्यंत ओघवती आहे. अस ओढून ताणून आणलेल लिखाण नसतं.

मायबोली ही मराठी वेबसाईट आहे तर मराठीत लिखाण असेल तर बरं पडेल . हिंदि / इंग्रजी वाक्ये अधून मधून असतील तर कोणाचीच हरकत नसेल . त्यामुळे वरील सगळ्यांच्या मराठीत लिखाण करायच्या आग्रहाला अनुमोदन.

प्लस तुम्ही जरा एंटर की मारत जा दोन परिच्छेदात. ते वाचायला बरे पडते.

बाकी मीरा + १

मी फेसबुकवर काही हिंदी भाषिकांना फॉलो करते त्यांचं लिखाण फक्त हिंदीत असलं तरी आवडतं कारण ती ओघवती हिंदी असते. त्यांची हिंदीवर कमांड अर्थात चांगली असते.
इथे इराचे संवाद उगाच हिंदीत लिहिल्यासारखे वाटले(मराठीतून ट्रान्सलेट करून).
तुमची आधीची कथा आवडल्याने तिथे कौतुकच केलं होतं. इथे निगेटिव्ह फीडबॅक दिला तर लगेच आक्रमक झालात, भांडू लागलात हे जरा विचित्र आहे.

मायबोली हे संकेतस्थळच मराठीत संवाद, लेखन यासाठी सुरु केले गेले. त्यामुळे लेखन मराठीत असावे ही अपेक्षा असणारच ना! एक-दोन शब्द, एखादे वाक्य ठीक आहे पण सगळे संवाद असे इंग्रजी -हिंदीत हे नाहीच झेपले. इंग्रजी संस्थळावर आपण मराठी-हिंदीत संवाद आणि मधे मधे इंग्रजीत वर्णन असे लिहू का? तर नाही . मग मराठी संस्थळावरही लेखन करताना तिच काळजी घ्यावी.
मला प्रेमचंदही आवडतात आणि अटलजींचे हिंदीही. उर्दूही आवडते. मात्र प्रत्येक गोष्ठीसाठी योग्य जागा असते. उर्दू साठी मी रेक्तावर जाते आणि मराठीसाठी मायबोलीवर. माझ्यासारखे अनेक वाचक इथे केवळ मायबोली मराठीची ओढ म्हणून येतात. इथे मराठीचा आग्रह म्हणजे इंग्रजी किंवा इतर भाषांवर राग आहे असे नाही. मात्र हिंदी- इंग्रजी लेखनासाठी इतर संस्थळे, ब्लॉग वगैरे माध्यम वापरावे इतकेच म्हणणे.
एवि, अ‍ॅडमिननी आक्षेप घेतला नाही तर पुढील कथा हिंदीत असेल असे म्हणणे हे जाणून बुजूण आक्रमक होणे झाले. जे मला अजिबातच आवडले नाही.

मीराला अनुमोदन.
एविता तुझ्याकडून ही अपेक्षा नव्हती की तू लगेच असा निर्णय घेशील. तुझ्या आतापर्यंतच्या सर्व कथा बेस्टच होत्या. त्यातही इतर भाषा आल्या होत्या पण मराठी जास्त असल्याकारणाने वाचताना काही वेगळेपण जाणवलं नाही. उलट इतर भाषेतील काही शब्द आणि त्यांचे तू सांगितलेले अर्थ वाचून छान वाटले.
पण या कथेत मात्र खूप हिंदी असल्यामुळे मीसुद्धा पूर्ण कथा वाचू शकले नाही.
दहा वाचकांमधील दोघांनी पूर्ण वाचून छान म्हंटले आणि आठ जणांनी मराठीचा आग्रह धरला तर त्यात चुकीचे का वाटावे बरं.
हल्ली बऱ्याच कथेवर पाहायला मिळते जर प्रतिसादात काही सूचना असतील किंवा निगेटिव्ह कमेंट असतील तर लेखक खेळाडू वृत्तीने स्वीकारताना दिसत नाही उलट आपलेच घोडे पुढे दामटवत असतो. नाहीतर माबो सोडून जाण्याची भाषा करतो. म्हणूनच मी हल्ली इथे पडीक असून सुद्धा प्रतिसाद देण्याचे टाळते.
हा प्रतिसाद दिला कारण इथल्या लेखांमधून जी एवीता मला कळली होती आणि जी या धाग्यावरील प्रतिसादातून दिसते त्या दोघी वेगळ्या वाटतात.

जिज्ञासा यांच्या सगळ्या पोस्ट्सना अनुमोदन....
खरंतर मायबोली उघडल्यावर 'एविता' हे नाव दिसल्याबरोबर मी ती कथा वाचायला घ्यायची... पण ही कथा मी सुद्धा पूर्ण वाचू शकली नाही... कोणाच्या कथेचं समीक्षण करावं इतकं माझं वाचन नाही आणि लेखन तर मुळीच नाही... आणि मुळातच मला हिंदी वाचायला आवडत नाही त्यामुळे ही कथा मी वाचू शकली नाही असं मला वाटलं.. पण नंतर बर्‍याच जणांचे तसेच प्रतिसाद बघितले आणि कथेतच काहीतरी त्रुटी असावी असं जाणवलं... खरंतर इतक्या जणांना खटकतेय तर लिखाणात चूक असावी असं मोठ्या मनानी मान्य करायला हरकत नसावी.. असो...
त्यामुळेच मीरा आणि निल्सन यांनाही अनुमोदन...
बाकी यानिमित्ताने हायझेनबर्ग यांच्या सुंदर कथेची लिंक मिळाली त्यासाठी Thank you जिज्ञासा..

कथा एकदम आरामात वाचता आली. कदाचीत विविधभाषिक लोकांमध्ये राहिल्याचा परिणाम असेल. एकाच वेळेस एका मित्राशी हिंदीत तर दुसर्‍या मित्राशी मराठीत बोलणे व्हायचे त्यामुळे हा भाषाबदल अगदी नैसर्गीक वाटला.

कदाचीत सगळे लेखन हे क्रमशः करून टाकले तर संगती नीट लागून ते एकसलग वाटेल.

एविता,
तुम्ही ईथे पुन्हा लिहिणार आहात की कसे हा तुमचा वैयक्तिक निर्णय आहे, पण धाग्याच्या लेखिका म्हणून आणि एक स्त्री म्हणून, I think you have a moral responsibility to condemn what Beethoven has written in your support.

ह्याआधी चाहत्यांकडून भरपूर प्रेम मिळाले ते प्रतिसाद आपले लेखन डीझर्व करत होते हे जसे तुम्ही चटकन अ‍ॅक्सेप्ट करू शकलात तसेच चाहत्यांचे नापसंती दर्शक प्रतिसाद देखील मोठ्या मनाने अ‍ॅक्सेप्ट करणे अवघड असले तरी जरूरी आहे. प्रत्येक वेळी आपण लिहिलेले लोकांना १००% आवडेलच, त्यांना कुठलाही आक्षेप नसेल, हे जमवणे केवळ आणि केवळ अशक्य आहे.

I have been writing on MB for sometime now and I certainly have received my share of praises as well as criticism. Trust me when I say 'I understand it is much harder to deal with criticism than it is to accept love and praise'. But the thing is you have to somehow find a way to deal with negative feelings that criticism tends to fester in our minds. And most importantly not letting this overwhelmed, sad and sometimes angry mind take control of the best of you, so that you can continue with what you started.

वाचकांकडून नापसंती, टीका, आक्षेप मिळाल्यानंतर लेखक म्हणून तुम्ही तुमचे विचार लेखाच्या समर्थनार्थ मांडूच शकता, नव्हे मांडावेच जेणेकरून वाचकांना नवा आयाम मिळेल लेख समजून घेण्यास. पण आपण लिहिलेले आवडून घेण्यास आपण कोणालाही फोर्स करू शकत नाही. ईथे नापसंती दर्शवणारे बहुतांश वाचक तुमचे चाहते आहेत, (तुमचे माबोवर काही बॅगेजही नाही) त्यामुळे कोणी मुद्दाम टीकात्मक सूर काढत आहे असा समज करून घेण्याचेही काही कारण नसावे.

हा सगळा विचार करू जाता तुमच्या लेखावर नापसंती दर्शवणार्‍र्‍याबद्दल एकंदर तुमच्या लेखनाला आणि पर्यायाने तुम्हाला प्रेम देणार्‍या तुमच्याच वाचकांना (खासकरून स्री वाचकांना) बीथोवन ह्यांच्या प्रतिसादाच्या अनुषंगाने, अशा अपमानजनक प्रतिसादांना सामोरे जावे लागत असेल तर हे योग्य आहे की कसे हे ठरवणे तुम्हाला भाग आहे असे मला वाटते, Irrespective of whether you decide to continue writing on MB or not.

तुम्ही ईथे लिहित रहावे ह्यासाठी तुम्हाला शुभेच्छा.

मायबोलीवर एविता यांनी लिहावे की नाही तो त्यांच्या निर्णय आहे. मात्र बिथोवेन प्रतिसादात जी अवमानकारक भाषा वापरत आहेत ते निषेधार्य आहे. एविता यांनी मराठी संकेतस्थळावर लेखन केले याचा अर्थ इथला मराठीवर प्रेम करणारा वाचक वर्ग हवा होता. त्यांनी केलेले कौतुक आवडले, मग आता त्याच वाचकवर्गाने मराठी संस्थळ आहे तेव्हा मराठीत लेखन हवे म्हटले तर लगेच आक्रमक? गेली जवळजवळ २५ वर्षे(?) हे संस्थळ मराठीवरील प्रेमापोटी सुरु आहे. मराठी-हिंदी-इंग्रजी वगैरे भेसळ रोजच्या आयुष्यात चालवून घेतली जाते म्हणून इथेही चालवून घ्यावीच हा आग्रह का? मग मायबोली ही मायबोली राहील का?

एविता - आयडी वय 9 महिने 4 दिवस
बिथोवन- आयडी वय 9 महिने 2 आठवडे

बिथोवन यांचा लास्ट लेखही पूर्णपणे हिंदीमध्ये आहे. पण त्याचा कोणी निषेध केला नाही. मी तरी तेव्हा वाचलाच नव्हता.

तर माबोवर साधारण एकाच वेळी आगमन आणि हिंदीत लेखन करण्याची आवड या समानतेमुळे बिथोवनजी एविताजींच्या बाजूने आक्रमक होऊन लिहीत असल्यास आपण त्यांना माफ करूया.

काही लोकं मनापासून प्रतिसाद देत आहेत तर काही तसा आव आणत काड्या करत आहेत.
धागाकर्ता कोणीही असो, त्याला मायबोलीवर टिकायचे असेल तर यातले खरेखोटे प्रतिसाद वेचता यायला हवेत किंवा सरसकट सगळ्यांनाच शांत डोक्याने गोड बोलत हॅन्डल करता यायला हवे.
.....फक्त चांगले लिहिता येणे ईज नॉट जस्ट ईनफ Happy

असो, माझेही पंचवीस पैसे जोडतो,
- हिंदी मराठी वादात पडायचे नाही मला. कारण आई डोन्ट केअर लेखन कुठल्या भाषेत आहे. पण पॅराग्राफ जास्त हवे होते लेखात. किंबहुना एकापाठोपाठ एक येणार्‍या संवादात ओळ असली तर ते सुटसुटीत दिसतात आणि वाचले जातात.

हायझेनवर्ग यांचा प्रतिसाद पटला होता. पण आता जाऊ दे. प्रतिसादातील प्रशस्ती-वापसी तर आता लेखिका करू शकत नाहीत. पण damage कंट्रोल करता येऊ शकेल त्यांना जर इच्छा असेल तर. अर्थात damage झालेलेच नाही असा त्यांचा क्लेम असू शकतो. तर त्या आता भाषांची कमी सरमिसळ असलेल्या मराठीतून इथे लिहू शकतील. आम्ही त्याचा पूर्वीप्रमाणेच आस्वाद घेऊ. in fact आस्वाद घेण्यास उत्सुक आहोत.
मुद्दाम काही इंग्लिश शब्द वापरले आहेत. इतपतच मिसळ असेल तर रसहानी होत नाही हे सुज्ञास सां.न ल.

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