कोजाग्रती

Submitted by विकास सोहोनी on 17 October, 2019 - 00:57

शरदातील पूनवशशी भासतो कसा।
कोजाग्रती तरी पहात हासतो कसा।।१।।
पिठूर शांत चांदणे धरणीवरी कसे।
वर्षवी तो संजीवनी जागतो कसा।।२।।
रमले की मीत्रसखे नृत्य गायनी ते।
न्याहाळीत प्रियतम सजण पाहतो कसा।।३।।
एकाकी कुणी ललना खिन्न का ऊभी।
तीज प्रियतम विरह अशात दाहतो कसा।।४।।
पूनवअवस परिपाठा जाणतो'विकास'।
नियतीचा खेळ कुणासी ग्रासतो कसा।।५।।
- विकास सोहोनी

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