रिमझिम रिमझिम - रुनझुन रुनझुन

रिमझिम रिमझिम - रुनझुन रुनझुन

Submitted by बेफ़िकीर on 11 September, 2014 - 05:55

बजता है जलतरंग, प्रीतकी छतपे जब, मोतियोजैसा जल बरसे
बुंदोंकी ये लडी, लायी है वो घडी, जिसके लिये हम तरसे

बादलकी चादरे ओढें है वादियाँ, सारी दिशाए खोयी है
सपनोंके गाँवमे, भीगीसी छाँवमे, दो आत्माए सोयी है

आयी है देखने, झीलोंके आईने, बालोंको खोले घटायें
राहे धुवां धुवां, जायेंगे हम कहां, आओ यही रहजाये

रिमझिम रिमझिम - रुनझुन रुनझुन - भीगी भीगी रुतमे - तुम हम हम तुम

सावनके सुहाने मौसममे!

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