मोरोपतांनी रचलेल्या केकावली (उदा. "सुसंगती सदा घडो सुजनवाक्य कानी पडो") या १७ अक्षरी "पृथ्वी" वृत्तात रचल्या आहेत ज्यामुळे त्या एका विशिष्ट चालीत म्हणता येतात. तशाच काही केका रचण्याचा हा प्रयत्न :
असमाधानी मनाविषयी
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जरी उलगडे विराट जग हे मना सारखे
तरी कधीतरी होऊन जावे जना पारखे
मित्र नसणाऱ्या व्यक्तींसाठी
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सवंगडी सखा कुणी न समजे अजातमित्रा
कशी निपजते मनुष्यघाणी प्रजात, मित्रा
विधवा मातेविषयी
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सपुत्र विधवा आई अन कधी पिता भूमिका
करू न शके एक बैल नांगर सकस भूमी का
वर्ण /वस्त्र /बाह्य-स्वरूप विषयक जागरूकता
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शरीर झाकी अनेक रंगी सुती कापडे
सवर्ण की तो अवर्ण असली दरी का पडे
तना आवरणे व आभूषणे जरी शोभती
मना मोहिनी करे हृदय जे खरी शोभा ती
सर्व त्यागिले अलंकार अन् वसन रेशमी,
शस्त्र पांडवे जतन करतसे वृक्ष रे, शमी
राम-लक्ष्मण जरी धारिली वनी वल्कले
क्षात्रसूर्य ना तरी तीळभरी ना नवल कले
मित्रवियोग
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सुदूर जाती मित्र अन् सखे (दे) मनी वेदना
वियोग दुःखा हरण करू शके असा वेद ना
मोहात अडकलेली पत्नी
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न रुष्ट भार्या घरी जेधवां मुळी करमते
ते दुष्ट कांचन-मृग-जळी जनक-लेक रमते
पुस्तके
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©चुन्नाड