केका

Submitted by चुन्नाड on 25 July, 2022 - 08:02

मोरोपतांनी रचलेल्या केकावली (उदा. "सुसंगती सदा घडो सुजनवाक्य कानी पडो") या १७ अक्षरी "पृथ्वी" वृत्तात रचल्या आहेत ज्यामुळे त्या एका विशिष्ट चालीत म्हणता येतात. तशाच काही केका रचण्याचा हा प्रयत्न :

असमाधानी मनाविषयी
---------------------------
जरी उलगडे विराट जग हे मना सारखे
तरी कधीतरी होऊन जावे जना पारखे

मित्र नसणाऱ्या व्यक्तींसाठी
------------------------------
सवंगडी सखा कुणी न समजे अजातमित्रा
कशी निपजते मनुष्यघाणी प्रजात, मित्रा

विधवा मातेविषयी
---------------------
सपुत्र विधवा आई अन कधी पिता भूमिका
करू न शके एक बैल नांगर सकस भूमी का

वर्ण /वस्त्र /बाह्य-स्वरूप विषयक जागरूकता
---------------------------------------------------
शरीर झाकी अनेक रंगी सुती कापडे
सवर्ण की तो अवर्ण असली दरी का पडे

तना आवरणे व आभूषणे जरी शोभती
मना मोहिनी करे हृदय जे खरी शोभा ती

सर्व त्यागिले अलंकार अन् वसन रेशमी,
शस्त्र पांडवे जतन करतसे वृक्ष रे, शमी

राम-लक्ष्मण जरी धारिली वनी वल्कले
क्षात्रसूर्य ना तरी तीळभरी ना नवल कले

मित्रवियोग
------------
सुदूर जाती मित्र अन् सखे (दे) मनी वेदना
वियोग दुःखा हरण करू शके असा वेद ना

मोहात अडकलेली पत्नी
----------------------------
न रुष्ट भार्या घरी जेधवां मुळी करमते
ते दुष्ट कांचन-मृग-जळी जनक-लेक रमते

पुस्तके
--------
ग्रंथ पुस्तके, वेदोपनिषदे पुराण सगळे
कथा, शिकवणी, उपदेशांचा सुधारस गळे

©चुन्नाड

Group content visibility: 
Public - accessible to all site users