इरा, काश्मीरी पंडित

Submitted by एविता on 14 March, 2022 - 09:40

माननीय ॲडमीन, इराची कहाणी तिच्याच शब्दात, हिंदीत मांडली आहे. हिंदी आपल्या नियमात बसत नसेल तर ही कथा काढून टाकावी. धन्यवाद.

इरा, काश्मिरी पंडित. द काश्मीर फाईल्स या इंग्रजी शीर्षक असलेल्या हिंदी चित्रपटाच्या निमित्ताने इराची कहाणी तिच्याच शब्दात:

" हां इरा, अब आप सुना दो जो कहानी आप कहने जा रही है।"

" हां तो सुन," तिने सांगायला सुरुवात केली, ,"तूने झेन एंड आर्ट ऑफ़ मोटरसाइकिल मेंटेनंस किताब पढ़ी हो तो जो ऑथर है ना, रॉबर्ट पिरसिग, ये बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट भी थे, ये कहते है, When one person suffers from a delusion, it is called insanity. When many people suffer from a delusion it is called Religion. मैं महज तीन साल की थी जब हम वैली, वादियां से घरबार छोड़कर जम्मू आए। उन दिनों वादियों में " बटा चालीव, मगर बटीने वराय" यह नारा गूंजता था। इसका मतलब है, सब पुरुष चले जाएं, पर औरते पिछे छोड़ दे। कश्मीर में अगर रहना होगा तो अल्ला हु अकबर कहना होगा ये नारा रोज लगता था। देख, ये सब अल्लाह को माननेवाले आस्तिक लोग, थिइस्ट। और कहते थे, दिल में रख अल्लाह का खौफ, हाथ में रख कलाश्निकोव। ये एक गन है शायद एके फोर्टीसेवन बोलते है उसको। ये सब रहीम के बन्दे।बांदीपोरा से रातको हम निकले और जवाहर टनल की तरफ बस चलते रहे. ऐसे ही, घाटियोंको पार करते हुए, जम्मू की तरफI मैं कभी मां की गोद में, कभी बड़े भाई विवेक के कांधोंपर तो कभी बाबूजीकी कांधोंपर I सबकुछ पीछे छोड़ दिया था I सबकी नजर में एक खौफ था, डर था, की कहीं टेररिस्ट हमें घेर न ले, या फिर हमें बंदूकसे भून डाले I आमची मुंबई, माझे पुणे, हमारा इंदौर, नम्मा बैंगलोर, आ मा र बांगला, आपणो गुजरात, इसी तरह, हम भी अपनी कश्मीर से प्यार करते हैं। वह हरी घास, शांत और साफ पानी, मिट्टी के हर एक पत्ते से प्यार । आप कभी नहीं सोच सकते कि कश्मीर घाटी से निकलते समय हमें कितनी मानसिक पीड़ा हुई होगी। चाहे वह प्रेम से पत्नी के गले में पहनाया हुआ मंगलसूत्र हो या पीढ़ियों से घर में पहने जाने वाली जवेलरी।कचरे के भाव से बेचनापड़ा था ... क्यों? बस जान बचाने और भागने के लिए।

" उसके पहले मैं तुम्हे कहानी सुनाती हूं। गिरिजा नामकी एक औरत एक लड़कियों के स्कूल में लैब असिस्टेंट थी। एक दिन..... कश्मीर में हिंसा शुरू हो गई थी। किसी ने गिरिजा को कहा, कश्मीर घाटी छोड़ने से पहले कम से कम अपना सैलरी लेने के लिए तो स्कूल आ जाओ , वह गई, सैलरी लिया और फिर एक मुस्लिम सहकर्मी के घर कुछ काम से चली गई।उसकी हर हरकत, स्कूल जाने से लेकर उसके मुस्लिम फ्रेंड के घर तक, टेररिस्ट वॉच कर रहे थे । जैसे ही वह फ्रेंड के घर गई, टेररिस्ट घर में घुस गए और उसे उठा ले गए। उसके मुस्लिम फ्रेंड ने कोई ऑब्जेक्शन नहीं लिया । क्योंकि वह एक हिंदू थी, काफिर। उसका शरीर उनकी "संपत्ति" थी। फिर उसे नंगा किया। उसके साथ गैंग रेप हुआ । एक बार नहीं, दो बार नहीं, कई दिन। और फिर हवस मिटनेके बाद उसे जिंदा, एक आरी से उसके शरीर को बीचमे से काट दिया और फिर उसके शव को सड़क पर फेंक दिया। एक साधारण सब्जी काटते समय अपनी उंगली कटती हैं, तो कितना दर्द होता है। और फिर कल्पना करें, एक महिला जिसका पहले सामूहिक बलात्कार किया जा चुका है, और फिर एक लकड़ी काटनेकी मशीनसे शरीर के दो टुकड़े । क्यों? क्योंकि वह एक कश्मीरी पंडित, हिंदू थी"।

" सच कह रही है तू . लेकिन ये सब शुरू कैसे हुआ ? ' “

१९७५ में शेख अब्दुल्ला और इंदिरा गांधी के बीच जम्मू और कश्मीर के एकीकरण के लिए समझौता हुआ लेकिन प्रो पाकिस्तान जमात-ए-इस्लामी और जेकेएलएफ उसका विरोध कर रहे थे । उसके पांच साल के बाद अब्दुल्ला ने खुद कश्मीर का इस्लामीकरण शुरू किया । उनकी सरकार ने लगभग २५०० गांवोंके नाम बदलकर नए इस्लामिक नाम रख दिए।शेख अब्दुल्लाह ने अपनी आत्मकथा "आतिश - ए - चिनार" में , कश्मीरी पंडितों को " भारत सरकार के मुखबिर " कहा I

" ये तो सरासर झूट है ।"

“ १९८७ के राज्य विधानसभा चुनावों में धांधली हुई और नई पार्टी आई वो थी एम् यु एफ जो जमात - ए - इस्लामी के कार्यकर्ता थे । इसमें पाकिस्तान की आयएसआय सक्रिय रूप से शामिल हो गई । बाद में हिजबुल - मुजाहिदीन ये टेररिस्ट ग्रुप भी शामिल हो गया । “ जेकेएलएफने आयएसआय के समर्थन से सशस्त्र विद्रोह की शुरुआत की । उन्होंने कलाश्निकोव का इस्तेमाल किया और कश्मीरी मुस्लिम आबादी के बीच हिंदू विरोधी भावनाओं को फैलाया , हिंदू आबादी की घाटी को साफ करने पर जोर दिया । “ सितंबर १ ९ ८ ९ में वकील और भाजपा नेता टीकालाल टप्पू की निर्मम हत्या ने पंडित अल्पसंख्यक समुदाय में भय पैदा कर दिया । बमुश्किल तीन हफ्ते बाद , सेवानिवृत्त न्यायाधीश नीलकंठ गंजू को दिन दहाड़े मार दिया गया । दिसंबर १९ ८ ९ को , वीपी सिंह सरकार में मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रूबैया सईद का जेकेएलएफ ने अपहरण किया और उसे छुडानेके लिए घाटी के जेल में बंद १३ सदस्यों को अब्दुल्ला ने रिहा कर दिया ।

" माय गॉड ! “

" इस बीच , अखबारों , पोस्टरों और मस्जिदों ने कश्मीरी पंडितों को तीन विकल्प देते हुए घोषणाएं जारी कीं - " रालिव , सलिव यि गैलिव " मतलब धर्मपरिवर्तन करें , कश्मीर छोड़ें या मारे जाएं । एक स्थानीय उर्दू दैनिक , आफताब ने हिंदुओं को छोड़ने के लिए धमकी भरे संदेश भी दिए । इस सन्देश में लिखा था , " यदि आप नहीं मानते हैं , तो हम मारनेकी शुरुआत आपके बच्चों के साथ करेंगे । कश्मीर लिबरेशन , ज़िंदाबाद । १९८० के अंत से लेकर अगले दस साल तक कश्मीर में उग्रवाद चलता रहा । जनवरी में नेशनल कॉन्फ्रेंस हार गई । राष्ट्रपति शासन लगाया गया और जगमोहन राज्यपाल के रूप में कार्यभार संभालने के लिए पहुंचे । १९ जनवरी १९९० की रात लगभग ९ बजे , लाउडस्पीकर से पाकिस्तान समर्थक नारे लगा रहे थे," हमने काफीरोंको मारा । युवा , बूढ़े , बच्चों और महिलाओं सहित पंडीतोंको मौत के घाट उतार दिया।"

इराचा गळा दाटून आला.

" नारे सुबह तक लगे रहे , इससे पंडितों को स्पष्ट हो गया कि वे अब अगली कतार में हैं । “ कानून और व्यवस्था चरमरा गई क्योंकि पुलिस ने अपने पदों को छोड़ दिया और पंडितों को अपने खुद के बचाव के लिए छोड़ दिया गया । ब्रिटिश शासन से भारत की आजादी के बाद पहली बार , कश्मीरी पंडितों ने अपने आपको अपने घरों में फंसे हुए पाया । क्या ये है मजहब ? "

" और मैं कहती हूँ की बिना ईश्वर के भी एक अच्छा इन्सान बना जा सकता है । धर्म और ईश्वर दोनों इन्सान पे लादे गए हैं , जबरदस्ती I इन्सान अपने नैचरल रूप में ही बहुत अच्छा है । धार्मिक लोगों की सँख्या ही इस धरती पर सबसे बड़ी है । नास्तिक तो मुश्किल से कुछ हजार ही होंगे फिर भी यहाँ इतनी असमानता क्यों ? क्यों धर्म के नाम पे ही धरतीपर सबसे ज्यादा ब्लडशेड हुआ ? हो सकता है एक ज़माने में धर्म सोसायटी को चलाने के लिए , एक पॉलिसी की तरह या रूल्स और रेगुलेशन की तरह लोगों ने बनाया हो I मगर अब हमारी सोसायटी को चलाने के लिए एक अलग सिस्टिम है I और ऐसे में अब ये धर्म हमारी प्रोग्रेस में लंगड़ी मारने के सिवा और किसी काम के नहीं हैं । इन्हें अब इतिहास की किताबों

में ही रहने देना चाहिए I मैं कहती हूँ के ईश्वर तो इस दुनिया का सबसे झूठा शब्द है , और सबसे ज्यादा विश्वास से बोले जाने वाला झूठ भी " . ....

" फिर जैसे तैसे दिल्ली आकर रैनबसेरा में बस गए। अपने ही देशमे हम रेफ्यूजी बन गए। बाबूजी के एक पहचान की वजहसे भोपाल गए और वहां के ही हो गएI

" अगर धर्म एक अच्छे इन्सान होने का सर्टिफिकेट होता तो इस दुनिया में कोई समस्या ही नहीं होती। एक सिधीसी बात लोगों के दिमाग में जिस दिन आ जाएगी कि ईश्वर ने मनुष्य को नहीं बनाया बल्कि मनुष्य ने ईश्वर को बनाया है , सारे अनसुलझे सवाल सुलझ जाऐंगे । जनम होते ही दिमाग, ब्रेन पहले आता है , विचार बाद में। ईश्वर मात्र एक विचार है , उसका अस्तित्व कहीं , किसी रूप में नहीं है ।"
.......

माननीय ॲडमीन, इराची कहाणी तिच्याच शब्दात, हिंदीत मांडली आहे. हिंदी आपल्या नियमात बसत नसेल तर ही कथा काढून टाकावी. धन्यवाद.

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कहाणी हृदयस्पर्शी.
ईश्वर आणि धर्मविषयक विचारांशी पूर्ण सहमत. खूप खोल आणि प्रगल्भ विचार आहेत.

भयंकर आहे हे सगळं..
ईश्वर आणि धर्मविषयक विचारांशी पूर्ण सहमत>> +१

एविता तुझा लेख इथे पाहुन बरे वाटले! होप ऑल इज वेल!
झेन एंड आर्ट ऑफ़ मोटरसाइकिल मेंटेनंस,
उत्साहाने वाचायला घेतलेली. सुरवातीचा भाग सुंदर आहे पण हळुहळु डोके दुखायला लागते. बरेच कोट्स खुप अंतर्मुख करणारे आहेत.

ईश्वर आणि धर्मविषयक विचारांशी पूर्ण सहमत.
+७८६
बरेच जण सहमत होतात.. तरीही जग धर्मांधच आहे असे वाटते.

अश्या कथा वाचाव्यात, काश्मीर फाईल्स सारखे चित्रपट बघावेत. त्यातून बोध हा घ्यावा की धर्माच्या नावावर आपले कधी असे जनावर होऊ नये. ज्यांचे झालेय त्यांच्यापासून सावध राहावे. ज्यांचे नाही झालेय त्यांच्यासह जातीधर्माच्या पलीकडे विचार करत एक वेगळा समाज बनवावा.

When one person suffers from a delusion, it is called insanity. When many people suffer from a delusion it is called Religion.-----PROFOUND!!

कहाणी भयंकर..मनाला भिडली.हिंदी खटकलं नाही.
कोणताही धर्म, किंवा अन्य कारणांनी जिथे दंगे उसळतात तिथे महिला प्रथम भक्ष्य ठरतात.
अश्या काही,पण इतक्या डिटेल मध्ये नाही, कहाण्या कॉलेज हॉस्टेल मधल्या काश्मिरी मुलींकडून ऐकल्या होत्या.
बिना ईश्वर के वाला पूर्ण परिच्छेद अतिशय पटला(आणि तरीहि जन्मापासून झालेल्या संस्कार आणि कंडिशनिंग ने मी आस्तिक आहे.)

कहाणी हृदयस्पर्शी.
ईश्वर आणि धर्मविषयक विचारांशी पूर्ण सहमत. खूप खोल आणि प्रगल्भ विचार आहेत. >> +१
Thanks for sharing Evita.

अंगावर येते दरवेळी गिरीजा आणि अशा इतरही अनुभवकथा वाचताना. पुर्वीही एकदा गिरीजाची कथा मंदार जोशीच्या ब्लॉगवर वाचली होती तेव्हा टोचल होत तितकच आत्ताही टोचलं. Sad

मंदार विचार ब्लॉग लिंक

या विषयाला धरुनच सिमिलर पोस्ट या लिंकवर आहेत म्हणून लिंक शेअर करतेय गैरसमज नसावा