काही सुट्या द्वीपदी/शेर

Submitted by UlhasBhide on 2 December, 2013 - 09:10

काही सुट्या द्वीपदी/शेर
(शीर्षकात द्वीपदी हा शब्द कवितेतील २ ओळी या अर्थाने वापरला आहे)

मी कसा आहे, मला सांगू शकेना आरसा
त्यामधेही पाहताना मीपणा डोकावतो
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तोडतो मी बंधने सार्‍या जगाची
मिळवितो अधिकार विद्रोही बनूनी
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जिझियाहुनही महाभयंकर भ्रष्टाचाराचा सारा
कोणीही ना सुटतो यातुन... आलमगीर-दरारा
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प्रमाद डोळ्यांकडून घडतो स्वप्न पाहण्याचा
दंड म्हणूनी संग तयांना सदा आसवांचा
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घरास अवघ्या घरघर लागे, घरपण ना उरले
घरातले कर्तेच रंगले मोजण्यात वासे
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वाजती बेताल वाद्ये अन् सुरांची वानवा
बेसुर्‍याचे भाट म्हणती, “सूर हा तर आठवा”
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"वेदनेचा वेद व्हावा" शब्द जेव्हा ऐकले
जीवनाचे सूत्र म्हणुनी अंतरंगी कोरले
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आरशात जे दिसते त्यावर कधी न भाळावे
समोरच्याच्या नजरेमधुनी रुपास जोखावे

....उल्हास भिडे (२-१२-२०१३)

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वाजती बेताल वाद्ये अन् सुरांची वानवा
बेसुर्‍याचे भाट म्हणती, “सूर हा तर आठवा”
Happy
"वेदनेचा वेद व्हावा" शब्द जेव्हा ऐकले
जीवनाचे सूत्र म्हणुनी अंतरंगी कोरले
सुंदर . द्विपदी गझलांमध्ये परिवर्तित होवोत .ले.शु.

घरास अवघ्या घरघर लागे, घरपण ना उरले
घरातले कर्तेच रंगले मोजण्यात वासे

हा शेर विशेष वाटला.
धन्यवाद.

वाजती बेताल वाद्ये अन् सुरांची वानवा
बेसुर्याचे भाट म्हणती, “सूर हा तर आठवा”

मी कसा आहे, मला सांगू शकेना आरसा
त्यामधेही पाहताना मीपणा डोकावतो

अतिशय आवडल्या या द्वीपदी.