सद्गुरोपनिषद, दत्तात्रेय उपनिषद

Submitted by KATUL१२ on 23 March, 2023 - 00:32

॥ श्री सद्गुरोपनिषद ॥
ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते । पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते |
ॐ शांति: शांति: शांति: ||

ॐ नमस्ते भगवन् श्री सद्गुरुदेव, दत्तात्रेयाय नमोनम: | 1 |
त्वम् ब्रह्ममयोऽसि | त्वम् आनंदमयोऽसि | त्वम् विज्ञानमयोऽसि | त्वम् सत्यमयोऽसि |

त्वम् शांतिमयोऽसि | त्वम् प्रेममयोऽसि |
त्वम् निराकार निरालंब निर्विकल्प निर्विषय निरंजन निरंकुश निरंतर निराशय निरामय निर्धूतकल्मषोऽसि | 2 |

त्वदाज्ञया, तपंति रवी शशी तारामंडला: | त्वदाज्ञया विपुल धनधान्यवती वसुधा |
त्वदाज्ञया वहती वायुस्संदहत्यनल: | त्वदाज्ञयाऽऽकाशं सर्वं व्याप्नोति |
त्वदाज्ञया यथाकालं वर्षति पर्जन्य: | त्वदाज्ञया विकसंति कुसुमानि |
त्वदाज्ञया फलंति पादपा: | त्वदाज्ञया गायंती विहंगम: | त्वदाज्ञया जिवंती चतुर्विध योनय: |
त्वदाज्ञया देहे प्राण: संचरति निर्गच्छति देहात | 3 |

त्वम् मनश्चित्तांत:करण बुद्धी अहंकार प्रेरकोऽसी |
त्वम् शम दम तितिक्षा वैराग्य भक्ति प्रदायकोऽसी |
त्वम् द्वंद दु:ख तिमिर विध्वंसकोऽसी | त्वम् मायापाश निकृंतकोऽसी |
त्वम् संसार बंधनच्छेदकोऽसि |
त्वम् सर्व सद्गुण कर्ताऽसि | त्वम् सर्व दुर्गुण हर्ताऽसि | त्वम् शांति प्रदोऽसि |
त्वम् आनंद प्रदोऽसि | त्वम् प्रेम प्रदोऽसि | त्वम् सकलविघ्न हरोऽसि |
त्वम् भय करोऽसि | त्वम् वरदवरोऽसि | त्वम् निजपदप्रदान करोऽसि | 4 |

ऋते त्वत् कोऽपि नेतरो वदान्य: | ऋते त्वत् कोऽपि नेतर: समर्थ: |
ऋते त्वत् कोऽपि नेतरो दयालु: | ऋते त्वत् कोऽपि नेतर: क्षमाशील: |
ऋते त्वत् कोऽपि नेतरो भक्तपालक: | 5 |

त्वत्त: सकलैश्वर्य भोगक्षमत्वं | त्वत्त: सकलवस्तुरमणीयत्वं |
त्वत्त: कर्मज्ञानेंद्रिय गणसमर्थत्वम् | त्वत्त: सकलयोग शक्तिमत्वम् |
त्वत्त: परमवैराग्य परबुद्धीमत्वम् | 6 |

त्वयी समुपस्थितं ब्रह्मांडोत्पतीस्थितिलयबीजम् | त्वयी सुप्रतिष्ठितं संसृतिनाशनाद्वैत भावनामूलम् |
त्वयी सन्निहितं जन्म मृत्यू भयसंहनन सामर्थ्यम् | | 7 |

कनक कामिनी कमनीयत्वात् त्राहि त्राहि माम् |
काम क्रोध मोह मद मत्सर कोलाहलात् त्राहि त्राहि माम् |
जन्म जरा मरण त्रिदोषात् त्राहि त्राहि माम् |
संसृति दावानल दह्यमानं पाहि पाहि माम् | विषयकर्दम निमज्यमानं पाहि पाहि माम् |
भयकर कालदंड निपीडयमानं पाहि पाहि माम् |
धर्माचरण दिग्मूढं धैर्य देहि देहि माम् | अहंकारमलिन चित्तमभयं वरं देहि देहि माम् |
त्वत पदपंकज शरणागतिं देहि देहि माम् | 8 |

विनात्वया नास्ति कोऽन्य आपत्ति निवारक: | त्वम् प्रियतमा माताऽसि मे |
त्वम् प्रियतम: पिताऽसि मे | त्वम् प्रियतमो बंधुरसि मे | त्वम् प्रियतमं मित्रमसि मे |
त्वम् पूज्यतम: सद्गुरूवर्योऽसि मे |
ते कृपाहस्तं देहि मे शिरसी | ते पदतलकज्जं देही मे मनसि |
ते सुखकरवासोऽस्तु मे वपुषी | अनंतजन्मपर्यन्तं ते स्मरणं मे चित्तेऽस्तु | 9 |

ॐ नमस्ते अत्रिपुत्राय | ॐ नमस्ते अवधूताय | ॐ नमस्ते हंसदेवाय |
ॐ नमस्ते सद्गुरूनाथाय् | ॐ नमस्ते यतीनाथाय | ॐ नमस्ते शक्तिनाथाय |
ॐ नमस्ते सिद्धीनाथाय | ॐ नमस्ते मुक्तीनाथाय | ॐ नमस्ते जगन्नाथाय |
ॐ नमस्ते भगवते दत्तात्रेयाय |
ॐ नमस्ते परब्रह्मणे सद्चिदानंदमूर्तये मुनीवर्याय नमोनम: | 10 |

ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पूर्णमुदच्यते । पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते ।
ॐ शांति: शांति: शांति: ||

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