सोचता हूँ की वो कितने मासूम थे...क्या से क्या हो गए देखते देखते...
मैंने पत्थर से जिनको बनाया सनम....वो खुदा हो गए देखते देखते...
हश्र है वहशते दिल की आवारगी....हमसे पूछो दिल की दीवानगी..
वो पता पूछते थे किसी का कभी.....लापता हो गए देखते देखते...
हमसे ये सोच कर कोई वादा करो...एक वादे पे उमरें गुजर जायेंगी...
ये है दुनिया यहाँ कितने अहले-वफ़ा...बेवफा हो गए देखते देखते...
दिन छुप गया सूरज का कहीं नाम नहीं है...वादा शिकन अब तेरी अभी शाम नहीं है...
कल से बेकल हूँ जरा सा मुझे कल आये....रोज का इंतज़ार कौन करे...
आपका इंतज़ार कौन करे...
गैर की बात तस्लीम क्या कीजिये...अब तो ख़ुद पे भी हमको भरोसा नहीं...
अपना साया समझते थे जिनको......वो जुदा हो गए देखते देखते...
- निज़ाम रामपुरी .
( वहशत - सन्नाटापन उदासी डरावनापन, अहले वफा- कही हुई बात या दिये हुए वचन को पालना, शिकन - सिकुड़ने से पड़ी हुई, बेकल - व्याकुल बेचैन , तस्लीम - सिपुर्द करना सौंपना कबूल करना स्वीकार करना )
हिंदी सिनेमाच्या रुपेरी पडदयावरची अन रिअल लाईफमधलीही ट्रॅजेडीक्वीन मीनाकुमारीच्या आयुष्याची कथा यात गुंफलीय .....लाजवाब शायरी..