चलते चलते... किसी अन्जान राह से गुजरते...
हमें वो मिली.. जिसे सब जिंदगी हे केहेते...
हमने पूछा..
ऐ खूबसूरत जवानी.. कहा चली दी इतराते...
हसकर बोली... तुम्हारी ही हु... वही की जहा तुम हो रहते...
हम ने कहा...
अन्जान राह... मंजिल का पता नहीं हे हमें...
किसी और का हात थाम लेना... हमारा पता खुद नहीं हे हमें..
वो चलती रही फिरभी... हमारे साथ.. गिरती - सम्हलती..
जिंदगी हु तुम्हारी.. बोली... किसी और की नहीं...
बेवफा नहीं हु... भले बेजुबां हु में...
प्यार करती हु तुमसे.. तुम्हारे ही साथ हु में...
क्यों नहीं समझते... सम्हालते अपने आप को?...
प्यार करो खुद से... पाओगे अपने में ही जहाँ को...
वो चलती रही साथ हमारे... और हम सम्हलते गए...
इंसान हे... बात समझते हे.. बेदर्दीसे ठुकराया नहीं करते..
जिन्दा हुवे फिर हम... जीने लगे प्यार से...
वो हँसी... बोली... जिंदगी हु... साथ रहूंगी सभी हालात में...
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