काल फेस-बुका वर आमच्या दोस्त ग्यांग पैकी - एका चैतन्य'मय मित्राने हा "फोटू"
खास फेस-बुकी गुडनाइट करायला टाकला..
आणी ते वाचून आंमची "चेतना" काहि केल्या गप बसे ना! मग आंम्हीही त्यावर काहि प्रकाश टाकला...तो असा
-------------------------अंधेरा और हम(मै!)--------------------------
अंधेरा तेरा "अपना" है..
परछाई कैसे साथ छोडेगी?
सवेरा होने तक तो वो...,
"तेरे" ही साथ होलेगी...!!!
परछाई भी तब होती है..
जब सूरज चढ जाता है..
वो हमारी "लंबाई"
नाप ने के लिये ही तो आता है!!!
उसे भी पता है ये इन्सान साले
अपनी "कद" को छुपाते है...
कभी खुद पे "लाइट" मार के
खुद से उंचा दिखाते है।
इसी लिये बारा बजे
सूरज सिर पे होता है...
परछाई पैरो तले कुचला कर
वो पूरा हमको ही धोता है...
मैने भी ठान ली,इस को
अपना रंग दिखांऊंगा...
अपने सर पे छाता लेकर
उसे अपने साथ भगाऊंगा...
तभी दुष्ट उसका साथी
"वायु" जोरों से आ गया..
मेरा छाता उडाकर वो
अपने संग ले गया..
मै भी कुछ कम नही था...
पेड के नीचे छूप गया..
फिर सूरज वायू के साथ आकर
उसके सामने झुक गया..
इतना सब होने तक
अंधेरा सा हो गया...
देखा..तो सूरज अपने घर..
और मै अपने घर खो गया...
छान कविता लिहिलीय. (मात्र
छान कविता लिहिलीय.
(मात्र मराठीत वाचायला अधिक आवडली असती.)