झुळुक

Submitted by manogat on 11 November, 2008 - 06:16

एक शब्द नवा एक सुर नवा
सुर्योदयात शोधावा रोज एक राग नवा
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शब्दांनि द्यावी ग्वाहि माझीया गीताची
अर्थहिन जगायचि नाही तय्यारी माझी
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तिन शब्दात समावेल, जीवन काय इतके सोपे आहे
जितके जखडाल तितके त्याचे आवरण मोठे आहे
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आरश्यातल प्रतिबिंब विचारत रोज प्रश्न जुने
आपलीच ओळख पटवायची धाडस करत मन
पण असतात रोज नवे बहाणे
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गुलमोहर: