केव्हापासून?

Submitted by हर्षल_चव्हाण on 28 March, 2011 - 10:26

खूप वाटतंहो....
अगदी चटका लावणारं लिहावं...
दुसर्‍या कुणालाही आपल्यासारखंच भाजतं का ते पहावं...
पण आपले भोग आपणच भोगायचे असं वाटून,
कविता विरते डोळ्यांतल्या अश्रूंत दाटून...
मग क्षणांत सारे दाह जातात शमून,
जीव जातो त्या चटक्यांच्या आठवणीत रमून...
अशीच येते कधीतरी माझ्या भेटीला, नि
फुंकर घालीत स्वतःलाच म्हणते,
"काय, बर्‍याच दिवसांत आठवण नाही काढलीस?
जगण्यासाठी ही नवीन वाट केव्हापासून निवडलीस?"
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हर्षल (२८ मार्च २०११ - सायं. ७.४५)
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गुलमोहर: 

आई शप्पथ!!! कित्ती सहज!!!
तरीही थेट!!!
मस्त रे!!
तुझी मला सर्वात आवडलेली कविता... Happy

तूफान. नचिकेतला अनुमोदन.
शेवटाला 'गपगार' होणे काय ते अनुभवले.

चला, पावलो म्हणायचं...
मुक्ता, ऋतूवेद, छायाजी: Happy
नचिकेत काल बर्‍याच दिवसांनी एखादी कविता सुचली... तीच ही. खरंच आवडली?
नादखूळा: (तुमच्यासाठी) व्हय महाराजा Happy