ग़ज़ल : छटा वेगळ्या

Submitted by Meghvalli on 5 September, 2025 - 10:33

ग़ज़ल : छटा वेगळ्या

मतला:
मजकूर तोच, छटा वेगळ्या।
साध्य तेच, तर्‍हा वेगळ्या।।
शेर २:
गुलाब सारे सुवास भरती।
पाकळ्यांच्या रचना वेगळ्या।।
शेर ३:
जिवनाच्या लाटांमधुनी।
सुख-दु:खांच्या कथा वेगळ्या।।
शेर ४:
आभाळ तेच, तारे तेचि।
चांदण्यांच्या दिशा वेगळ्या।।
शेर ५:
धर्म एक, जगी आदर तो।
धर्माचरणी कथा वेगळ्या।।
मकता:
‘मेघ’ जाणतो सत्य एकच।
पाहणाऱ्यांच्या दृष्टीं वेगळ्या।।

शुक्रवार,५/९/२५ , २:५२ PM
अजय सरदेसाई -मेघ

Group content visibility: 
Public - accessible to all site users