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Milya
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| Monday, March 26, 2007 - 8:04 am: |
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भारतीय टीमचे प्रदर्शन पाहून तुमचीही काहीशी अशीच प्रतिक्रिया असेल
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Milya
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| Monday, March 26, 2007 - 8:07 am: |
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मूळ कविता साहेब म्हणतो चेपेन चेपेन लंका म्हणते चोपेन चोपेन...... बांगला म्हणतो चोपेन चोपेन काळ मोठा... वेळ खोटी...... पब्लिक म्हणते चोपेन चोपेन खेळले सारे मैदानावर, स्वप्नांची ह्या करुनी राख लंकेच्या सिंहाला पाहून, शेळ्या झाले आमुचे वाघ वाघ म्हणाले 'मास्तर'ला, दात नाहीत आम्हाला शिकार कसली करतो आम्ही, नखे कुरतडत हारेन हारेन बँटींग म्हणजे गमजा नुसत्या मोर्तजा ने काढले माप मुरलीच्या फ़िरकीला पाहून, वाघांचा ह्या हो थरकाप वळता थोडे फ़सती रे, 'दुसरे' पॅडवर बसती रे बॅट म्हणते मारीन मारीन, हात म्हणती सोडेन सोडेन आम्ही जगाला मारून डोळा भरतो आमची तुंबडी रे हरण्याची मुळी पर्वा नाही, गेंड्याची जर कातडी रे मैदानावर फ़ुटतो घाम, तरी वाढतो आमचा दाम अर्थ म्हणतो पैसा पैसा, शब्द म्हणती कँपेन कँपेन भज्जू, झहीर, आगरकरला, पडते का कधी विकेट रे ह्या संघाचे झाले आहे, चेंडूवाचून क्रिकेट रे इतके दारुण हरले रे, शेंबडे पोरही चिडले रे पवार म्हणतो थांबा थांबा, जनता म्हणते बुकलेन बुलकेन लंका म्हणते चोपेन चोपेन...... बांगला म्हणतो चोपेन चोपेन काळ मोठा... वेळ खोटी...... पब्लिक म्हणते चोपेन चोपेन
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Kashi
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| Monday, March 26, 2007 - 8:37 am: |
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tooooo good.!!! ह. ह. पु. वा.
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Badbadi
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| Monday, March 26, 2007 - 9:27 am: |
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खि खि खि.... जबरी आहे.
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>> शिकार कसली करतो आम्ही, नखे कुरतडत हारेन हारेन
मिल्या मूळ कवितेइतकीच जबरी झालीय रे.
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>>> बॅट म्हणते मारीन मारीन, हात म्हणती सोडेन सोडेन >>> अर्थ म्हणतो पैसा पैसा, शब्द म्हणती कँपेन कँपेन
मला मूळ कवितेपेक्षा विडंबनच जास्त आवडल.
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मिल्या,जबरी रे.. टिम इंडिया...
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Sas
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| Monday, March 26, 2007 - 6:26 pm: |
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Milya Good One जबरी आहे
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Disha013
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| Monday, March 26, 2007 - 8:47 pm: |
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ब्द्ज्स ह्फ़्भ्व ह्द्ब्च ज्cज्व्ह
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Zakasrao
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| Tuesday, March 27, 2007 - 4:27 am: |
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मिल्या चांगल चोपलस रे. खुप छान. मी कालच orkut मधे तुला लिहिल होत कि विनोदाचा BB ओस पडलाय आज येवुन बघतोय तर इथे तु आहेस. सुरवात तर केलीस. मस्तच लिहिलयस. ही कविता साहेबाना पाठवावी का? एक CC सगळ्या team ला द्यावी सचिन सर्वाना अनुवाद करुन सांगेलच.
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Krishnag
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| Tuesday, March 27, 2007 - 5:32 am: |
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मिल्या, फारच भन्नाट!! .. ..
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Jo_s
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| Tuesday, March 27, 2007 - 5:47 am: |
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मिल्या नेहमीप्रमाणेच मस्त   सुधीर
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Psg
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| Tuesday, March 27, 2007 - 6:05 am: |
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मिल्या टीम ईंडिया ने नाही तरी तू सिक्सर मारला आहेस! एकूण एक शब्द चपखल बसलेत! मस्त!
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वा मिलिंदराव.. केवळ अप्रतिम..दुसरे शब्द नाही.. केशवसुमार.
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Jayavi
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| Tuesday, March 27, 2007 - 7:14 am: |
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लंका म्हणते चोपेन चोपेन...... बांगला म्हणतो चोपेन चोपेन इतकं कसं लिहितोस रे सगळ्यांच्या मनातलं...! जबरी
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मिलिंदराव ... छानविडंबन! भारतीय टिमच्या खराब खेळा मुळे माझा क्रिकेट मधला Interest निघून गेला आहे!
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मिल्या सही . मूळ कविताही त्या निमित्ताने वाचली पण विडंबन जास्त आवडलं.
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Yog
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| Tuesday, March 27, 2007 - 4:41 pm: |
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अगदी अगदी... विडम्बनच सही आहे 
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Milya
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| Tuesday, March 27, 2007 - 5:56 pm: |
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सर्वांना खूप खूप धन्यवाद
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वळता थोडे फ़सती रे, 'दुसरे' पॅडवर बसती रे जबरी. मस्त आहे विंडबन.
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