Devdattag
| |
| Wednesday, December 06, 2006 - 4:03 am: |
| ![Link to this message](/hitguj/icons/ln.gif)
|
हाय रे, आले कुणी का नव्हे, मला तो भास होता ऐकला होताच मीही उष्म माझा श्वास होता
|
R_joshi
| |
| Wednesday, December 06, 2006 - 4:11 am: |
| ![Link to this message](/hitguj/icons/ln.gif)
|
देवा सही आज एकटेपणाचे ही कौतुक वाटते स्वत:ला ओळखण्याचे आता हे साधन वाटते प्रिति
|
Phatrya
| |
| Wednesday, December 06, 2006 - 7:19 am: |
| ![Link to this message](/hitguj/icons/ln.gif)
|
सर्वांचं अगदी मस्त सुरु आहे. लगे रहो. मित्रांनो आणि मैत्रिनींनो. पेनची शाई संपली कि, काहीच सुचत नाही. शेकडो विषय असूनही, डोक्यात काहीच मुरत नाही. श्री
|
Phatrya
| |
| Wednesday, December 06, 2006 - 7:28 am: |
| ![Link to this message](/hitguj/icons/ln.gif)
|
प्रेम आहे ना त्याच्यावरती, मग का छळतेस त्याला. तुझ्यासाठीच तर सोडला त्याने तो एकच प्याला. श्री
|
R_joshi
| |
| Thursday, December 07, 2006 - 12:59 am: |
| ![Link to this message](/hitguj/icons/ln.gif)
|
श्री उत्तम लाजणे हि अवचित घडते जेव्हा तु साद घालतोस तहानलेल्या श्रवणांवर तु स्वरांची बरसात करतोस प्रिति
|
Phatrya
| |
| Thursday, December 07, 2006 - 7:09 am: |
| ![Link to this message](/hitguj/icons/ln.gif)
|
प्रिति सही. चातकासारखी तहान लागली मला पण ती तुझ्या शब्द, सुरांची. तू येशील का राधा होऊनी त्या श्रीकृष्णाच्या गुरांची? श्री
|
Jo_s
| |
| Friday, December 08, 2006 - 3:37 am: |
| ![Link to this message](/hitguj/icons/ln.gif)
|
फत्र्या >>>तू येशील का राधा होऊन त्या मुरलीच्या स्वरांची >>> तरी लिहायचस गुरांची फार खटकतय.
|
R_joshi
| |
| Friday, December 08, 2006 - 4:25 am: |
| ![Link to this message](/hitguj/icons/ln.gif)
|
श्री जोच अगदि बरोबर आहे. ती शेवटची ओळ जरा खटकतेच.
|
R_joshi
| |
| Friday, December 08, 2006 - 4:27 am: |
| ![Link to this message](/hitguj/icons/ln.gif)
|
तुझ्या मुरलिचे सुर माझ्या मनात भरुन राहिले कृष्णाची राधा न होता मी मीरा होऊन जगले प्रिति
|
R_joshi
| |
| Friday, December 08, 2006 - 4:30 am: |
| ![Link to this message](/hitguj/icons/ln.gif)
|
तु छेडिता सुर मन बावरे होऊन जाईल सांग आता तु मला कृष्णाशिवाय राधा कशी राहिल प्रिति
|
Phatrya
| |
| Friday, December 08, 2006 - 5:27 am: |
| ![Link to this message](/hitguj/icons/ln.gif)
|
साॅरी. चातकासारखी तहान लागली मला पण ती तुझ्या शब्द, सुरांची. तू येशील का राधा होऊनी त्या मुरलीच्या स्वरांची? आता कसं वाटतंय?
|
कृष्णाने राधिकेला यमुनातळी छेडीले मुरलीच्या स्वरांनीही तिला जाउन वेढिले रुप श्री आत्ता खरच छान वाटतेय... देवदत्त, आत्ता वाचल्या तुमच्या सगळ्या चारोळ्या सवडीने, मस्त आहेत सगळ्या...
|
राधेच्या मनी फ़क्त कृष्णाचा ध्यास उगाच का सगळे बोलवतात "राधेकृष्ण" त्यांस रुप
|
Devdattag
| |
| Friday, December 08, 2006 - 6:14 am: |
| ![Link to this message](/hitguj/icons/ln.gif)
|
रुपालि, थँक्स.. पण ते तुम्ही जरा जड वाटतय कानाला..
|
देवदत्त, आत्ता सुर्याला सुर्य नाही म्हणणर तर काय म्हणणार??? ते आदराने म्हंटले आहे...
|
Ashwini
| |
| Friday, December 08, 2006 - 10:24 am: |
| ![Link to this message](/hitguj/icons/ln.gif)
|
अरे वा, इथे पण छान चाललय की. कृष्णाचाच ध्यास मीरेच्याही मनात पण राधा बनणं नाही नशिबात
|
Pujarins
| |
| Friday, December 08, 2006 - 10:59 am: |
| ![Link to this message](/hitguj/icons/ln.gif)
|
नाहीच ती राधा का असावे किल्मिष अंतरीच्या कृष्णाने केले अमृतासम विष
|
R_joshi
| |
| Friday, December 08, 2006 - 11:31 pm: |
| ![Link to this message](/hitguj/icons/ln.gif)
|
अरे वा! राधाकृष्णाच प्रेम चांगलच रंगले आहे इथे राधेचा जसा तो मीरेचा ही होता विषाचा पेला त्याने कंठात ल्याला होता प्रिति
|
Phatrya
| |
| Sunday, December 10, 2006 - 11:44 am: |
| ![Link to this message](/hitguj/icons/ln.gif)
|
मस्तं चाललंय. मीराच्या भजनाने मजला केले दंग बेधुंद होऊनी नाचलो राधेसंग श्री
|
Phatrya
| |
| Sunday, December 10, 2006 - 12:04 pm: |
| ![Link to this message](/hitguj/icons/ln.gif)
|
श्रीकृष्ण राधेच्या मनात तर, मीरेच्या होटांवर. ते नाचवतात प्रत्येकाला स्वत:च्या बोटांवर. श्री
|