बी, मिल्या प्रकरण कसलं रे? ('प्रकरण' म्हटल्यावर कान टवकारणार! )
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पूनम, एकदम क्यूट लिहिलंयंस गं. मस्तच. रचना, लग्नाला आठ वर्षे झाल्यावर समजूतदारच व्हायला लागतं बहुतेक. 
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पूनम, छान ! ही पहिलीच कथा आहे का तुझी ? keep it up !
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Zelam
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| Friday, June 16, 2006 - 11:27 am: |
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छान लिहिलस गं पूनम.
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पूनम मस्तच लिहिल आहेस. नशिब माझे ग, नवरा ईकडच काहि वाचत नाहि.
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Arch
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| Tuesday, June 20, 2006 - 1:42 pm: |
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पूनम, छान उभी केली आहेस कथा. चक्क संवेदनाशील नवरा उभा केला आहेस. त्यावरून कथा सत्यकथा नाही हे जाणवल. 
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चक्क संवेदनाशील नवरा उभा केला आहेस. त्यावरून कथा सत्यकथा नाही हे जाणवल <<<मिल्या वाचतोयेस ना ? 
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Psg
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| Wednesday, June 21, 2006 - 3:05 am: |
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आर्च, आपल्यापाशी जे नाही, किंव जे आपलयापाशी हवं आहे त्याचाच माणूस कल्पनाविलास करतो ना.. डीजे, त्यामुळेच मिल्या हे वाचणार नाहिये!!
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Storvi
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| Wednesday, June 21, 2006 - 4:11 pm: |
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खी खी खी
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कथा सुंदर! पण हे मिल्या काय आहे ते जरा सांगाल का?
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Meggi
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| Thursday, June 22, 2006 - 10:36 am: |
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psg म्हनजे मिल्या चि सौ.
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Shyamli
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| Thursday, June 22, 2006 - 10:45 am: |
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psg म्हनजे मिल्या चि सौ>>>> एवढच सांगुन होणार नाहिये पुढे पण सांगते मिल्या हा पण मायबोलिकर आहे....
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Manuswini
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| Thursday, June 22, 2006 - 12:26 pm: |
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पूनम खरोखर का ग हे फक्त 'कल्पनाविलासात' राहतं लग्नांनतर? हम अभी से घबरा गये हे वाचुन? BTW छान लिहिले आहेस नवरे असेच असतात का ग? ए. भा. प्र.
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Shyamli
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| Thursday, June 22, 2006 - 12:28 pm: |
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मनु परत तेच वाSSSSSS 
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Aj_onnet
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| Friday, June 23, 2006 - 8:13 am: |
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पूनम छान लिहलयस! ओघवते अन सहजसुंदर!
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Sapna
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| Friday, June 23, 2006 - 7:03 pm: |
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पूनम खरच छान कथा.
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पूनम, खुपच छान.. एक वेगळेपण म्हणजे बायकोने काहीही कांगावा न करने. हाच समजुतदारपणा संसार सुरळीत चालण्यासाठी खुप मोलाचा ठरतो. अर्थात तो दोन्ही बाजुने हवा. अमोल
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Jayavi
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| Monday, June 26, 2006 - 3:41 am: |
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पूनम, खूपच सुरेख! एक साधी, सरळ आणि लगेच पटणारी गोष्ट मी पण मैत्रेयी ला अनुमोदन देते. नवरा चांगलाच हुश्शार दिसतोय
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