दौड
Submitted by मण - मानसी on 5 July, 2017 - 07:30
कितनी दौड लागएगा इस दुनिया की भिड मे,
दौडते दौडते,तू रुकेगा कहां?
थम जाये दो पल कही,
पर ऐसे दो पल हे कहां?
कैसी ने जान वारी थी प्यार मे,
मगर अब एसी जान भी हे कहां?
दिन थे वो जब किसी पराये को भी आपना बना बैठा थ ए दिल,
पर अब वो दिल भी हे कहां?
किसी ने खुब कहा था " राहतपण की भी खुद्दारी होती हे"
पर अब तो खुद्दारी के लीये भी राहतपण हे कहां?
वक्त देखणे के लीये घडी पायी जाती थी,
पर अब घडी देखणे के लीये भी वक्त हे कहां?
कितनी दौड लागएगा इस दुनिया की भिड मे,
दौडते दौडते,तू जाएगा कहां?
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