Submitted by Swamini Chougule on 5 March, 2020 - 13:02
ज़ख्म सिलते नहीं
लब्ज़ घुलते नहीं
तिरों के नीशा
कभी धुलते नहीं
नासूर बन जाते हैं
कभी अपनो के दिए
कभी गैरों के दिए
ज़ख्म सिलते नहीं
©swamini chougule
ज़ख्म होते हैं
जिद की वजह
कभी टूट के बिखर
जाने का सबब
ज़ख्म सिलते नहीं
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@सस्मित @shraddha धन्यवाद
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