Submitted by vijaya kelkar on 8 March, 2017 - 04:48
( महिला दिना निमित्त लिहिलेली कविता हिंदीत आहे तरही इथे पोस्ट करते आहे. क्षमस्व ..)
महिला दिन
एक सुशीला महिला
चली अपनी राहपर -कामपर
लपेटे पदर शरीरपर
ओढे चुनर सीरपर
अज्ञात दूषित नजर
बिना किये उसकी कदर
भ्रष्ट की उसकी डगर
शीलकी निशानी उडा दी हवापर
पर-पर- पर
सबला होनेका हुआ साक्षात्कार
सती को दी तिलांजली बनी अंगार
अहिल्या खुद बनी नुकिला पत्थर
सावित्री ने लगाई यम को ललकार
न सुधरी दूषित नजर
तो
अपने पंखोकी ताकद को पहचान
लेगी ऊंची और ऊंची उडान
किसी दिन की ना मोहताज,ये महिला महान
खाना खिलायेगी ,हो जाओगे गुलाम
खिजाओगे करेगी काम तमाम
करना उसे सलाम ,
करना उसे सलाम
विजया केळकर _____
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मस्तच........
मस्तच........
ते सुशीला>>>सुशील आहे ना??
ते सुशीला>>>सुशील आहे ना??
खाना खिलायेगी ,हो जाओगे गुलाम
खाना खिलायेगी ,हो जाओगे गुलाम
खिजाओगे करेगी काम तमाम
करना उसे सलाम ,
करना उसे सलाम >>>> मस्तच अप्रतिम कविता !!
सुंदर विजयाताई
सुंदर विजयाताई
धन्यवाद, कावेरि ---
धन्यवाद, कावेरि ---
महिला शब्दाचे विशेषण म्हणून ' सुशीला महिला 'चालेल
नमस्कार---
नमस्कार---
अक्षय दुधाळ आणि द्वैत __प्रतिसादासाठी अत्यंत आभारी