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Submitted by vilasrao on 24 June, 2015 - 10:22

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होतात आभासही ते पुन्न्हा पुन्हा मृगजळाचे
माझ्या तहानेला किती सांगू तिला का कळेना ?>>>>>व्वा! आवडले.

धन्यवाद!
बेफिकिर सर

गझललेखनास शुभेच्छा! वृत्त, मात्रा, लय, साफसुथरेपणा ह्यांचा कृपया अधिक सराव करावात.>>>
प्रयत्न करतो ! आपले लक्ष ,मार्गदर्शन असू द्यावे ही आशा आहे!