.. के ये साल अच्छा है!

Submitted by sulu on 31 December, 2012 - 14:50

नवीन वर्षाच्या पहाटेस गालिब ची गजल ( स्व. जगजीत सिंह नी अमर केलेली) !

वाचकाना संदर्भ आणि मर्म लक्षात येईल ही अपेक्षा!

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एक बरहामन ने कहा है के ये साल अच्छा है।

ज़ुल्म की रात बहुत जल्द ढलेगी अब तो,
आग चूल्हों मे हर एक रोज़ जलेगी अब तो।

भूख के मारे कोई बच्चा नही रोयेगा,
चैन की नींद हर एक शख्स यहाँ सोयेगा।

आंधी नफरत की चलेगी न कहीं अब के बरस,
प्यार की फ़स्ल उगायेगी ज़मीन अब के बरस।

है यकीन अब न कोई शोर शराबा होगा,
ज़ुल्म होगा न कहीं खून खराबा होगा।

ओंस और धुप के सदमे न सहेगा कोई,
अब मेरे देस मे बेघर न रहेगा कोई।

नए वादों का जो डाला है, वो जाल अच्छा है,
रहनुमाओं ने कहा है के ये साल अच्छा है।

हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन
दिल के खुश रखने को, "ग़ालिब" यह ख़याल अच्छा है॥

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Happy

छान कविता. ही कविता गालिबची नसून साबिर दत्त यांची आहे. गालिबची नाही इतकेच माहीत होते, साबिर दतची असल्याचे येथे समजले.

गालिबचा त्या गझलेचा मतला असा आहे:

हुस्ने-महे-गरचे-ब-हंगामे कमाल अच्छा है
उससे मेरा महे-खुर्शीदो जमाल अच्छा है

(चंद्राचे केवळ - चौदहवी, पौर्णिमा वगैरेसारख्यादिवशी असणारे - हंगामी सौंदर्य ठीक आहे, पण माझ्या प्रेयसीचा चंद्रसूर्यासमान असलेला मुखडा तर त्याहून सुंदर आहे)

त्या गझलेतील हा शेर आहे:

देखे क्या पाते है उश्शाक बुतोंसे ऐ फैझ
इक बिरहमनने कहां है के ये साल अच्छा है

(बघूयात या वर्षी तरी आशिकांना त्यांच्या प्रेयसींकडून काय मिळते, एका ब्राह्मणाने सांगितले आहे की म्हणे हे वर्ष चांगले आहे)

याच गझलेतील सर्वश्रुत व सुपरिचित शेर म्हणजे:

उनके देखेसे जो आ जाती है मुंहपे रौनक
वो समझते है के बीमार का हाल अच्छा है

धन्यवाद!

(नववर्षाच्या शुभेच्छा)

-'बेफिकीर'!

चांगली गजल आहे! आवडली. 'वो सुबह कभी तो आयेगी' हे गाणे ही आठवले.

बेफिकीर - तो तिसरा शेर कोणत्यातरी चित्रपटात्/गाण्यातही ऐकलेला आहे, नक्की आठवत नाही.