चीजांचे शब्द आणि अर्थ : धागा क्रमांक - ३

Submitted by गजानन on 1 May, 2012 - 13:10

बर्‍याचदा बंदिशीचे शब्द आणि त्यांचे अर्थ कळत नाहीत म्हणून हा धागा.

याआधीची चर्चा इथे आहे -
चीजांचे शब्द आणि अर्थ : धागा क्रमांक - १
चीजांचे शब्द आणि अर्थ : धागा क्रमांक -२

चीजांच्या पोष्टींचे दुवे :

पान १ :
पं. जसराज : राग सिंधभैरवी सूरदास भजन - ऊधौ जोग सिखावन आए
पं. जसराज : राग अहिर भैरव - वंदना करो, अर्चना करो।
पं. जसराज व पं. मणिप्रसाद : राग जोग धनाश्री - सखी मोहे मीत बता
संजीव अभ्यंकर- सूरदास भजन- मन ना भये दस-बीस - ऊधो, मन ना भये दस-बीस
पं. जसराज : राग दरबारी कानडा लक्षणगीत - ऐसी दरबारी गुनिजन गावे
पं. जसराज : राग अलहैया बिलावल - दैया कहां गये लोग
पं. जसराज : राग जयजयवंती लक्षणगीत - जय जय सिद्धी कराली
पं जसराज : कबीर भजन - उलटि जात कुल दोऊ बिसारी
पं. जसराज : कबीर भजन - रितु फागुन नियरानी हो, कोई पिया से मिलाये
उस्ताद रशीद खान : भजन - प्रभू की प्रीत जगी
बेगम परवीन सुलताना : ठुमरी मिश्र खमाज - रसिया मोहे बुलाये
विदुषी शोभा मुद्गल : रागेश्री - कह न गये सैंया
विदुषी शुभा मुद्गल : रागेश्री - आयो अत मतवारो साँवरो
विदुषी शुभा मुद्गल : राग तिलक कामोद - आवत घर आये
विदुषी गंगूबाई हनगल : राग जयजयवंती - अचल रहो राजा
विदुषी गंगूबाई हनगल : राग हिंडोल - लाल जिन कर हो माई सन बरजोरी
पं. कुमार गंधर्व : राग बागेश्री - सखी मन लागे ना
श्वेता झवेरी : राग यमन - मैं बैरागी तुमरे दरस की प्यासी / सुन सुन प्रिय
पं. तुषार दत्ता : राग बिहाग - कवन ढंग तोरा सजनी तू तो
पं. तुषार दत्त : राग बिहाग - अब हूं लालन मैंका
पं तुषार दत्त : राग जोग - बात बनावत चतुर, कर ले बिचार गुण अवगुणन को
उस्ताद आमीर खान : राग मेघ - बरखा रितु आयी
पं. सी. आर. व्यास : राग गौरी - खबरिया लेवो मोरी
पं. विनायकराव पटवर्धन : राग ललिता गौरी - यार कटारी मानु प्रेम दी

पान २:
उस्ताद आमीर खान : राग ललित - तरपत हूँ जैसे जल बिन मीन
पं. शरच्चंद्र आरोळकर : राग कामोद - जाने ना दूँगी / राग खमाज टप्पा - चाल पैछानी हम दम त्यजे
विदुषी शैला दातार : राग देस - पिय कर धर देखो
पं. काशिनाथ बोडस : राग मारु बिहाग - बेगि तुम आओ सुंदरवा
विदुषी शुभा मुद्गल : राग हमीर - चमेली फूली चंपा गुलाब
पं मल्लिकार्जुन मन्सूर : राग गौड सारंग - सैंयो मै तो रचनी घड़ी वे जमाईयाँ
उस्ताद मुबारक अली खान : राग हमीर - मैं तो लागी रे तोरे चरनवा
पं. जितेंद्र अभिषेकी : राग जोग - जाने ना देहों एरी तोहे / मोरी मधैय्या सूनी लागी री
उस्ताद विलायत हुसैन खान : राग जोग - पिहरवा को बिरमायो / घरी पल छिन कछु न सुहावे
पं. यशवंतबुवा जोशी : राग गौड मल्हार - पियारे आवो जी हो जी महाराजा
पं. के. जी. गिंडे : राग रामदासी मल्हार - माधो मुकुंद गिरिधर गोपाल /कित से आया री
पं के जी गिंडे : राग शुद्ध मल्हार - धूम धूम धूम आये
पं के जी गिंडे : राग गौड मल्हार - दादुरवा बुलाई रे बादरिया
पं. गणपती भट हसनगी : राग मधुवंती - हूँ तो तोरे कारन आये बलमा / ए री आली कोयलिया बोले
उर्मिला श्रीवास्तव : कजरी - हमके सावन में झुलनी गढ़ाई दे पिया
वि. कोयल दासगुप्ता : कजरी - बरसन लागी बदरिया सावनकी
पं परमेश्वर हेगडे (कंठसंगीत) व पं. विश्वमोहन भट्ट (मोहनवीणा) : राग पूरिया धनाश्री - पायलिया झनकार मोरी / मुश्किल करो आसान
विदुषी वीणा सहस्रबुद्धे : राग पूरिया धनाश्री - आजरा दिन डूबा
रसूलनबाई : ठुमरी - अब आँगन में मत सोवो री
रसूलन बाई : दादरा - साँवरो से मेरो मन लागी रहे (ध्वनिमुद्रण : १९६१, लाहोर.)
पं वसंतराव देशपांडे : राग मारु बिहाग - उनहीसे जाय कहूँ मोरे मन की बिथा / मैं पतिया लिख भेजी
पं. वसंतराव देशपांडे : राग बिहाग - री मा धन धन री एरी मेरो लाल
पं. जसराज : राग देस संत तुलसीदास भजन (सुन्दरकाण्ड) - भरतभाई! कपि से उरिन हम नाही
उस्ताद लताफत हुसैन खाँ : राग सूर मल्हार - घननन नननन भोर भोर भोर गरजत आये / बादरवा बरसन
पं. गजाननबुवा जोशी : राग भूप - जब मैं जानी पिया की बात / जबसे तुमिसन लागली
पं. रमेश जुळे : राग अहिरी तोडी - निसदिन ध्यान धरत हूँ / हरी हरी नाम जप ले मनवा
पं. उल्हास कशाळकर : राग बसंत - कान्हा रंगवा न डारो
पं. उल्हास कशाळकर : राग अल्हैया बिलावल - कंथा मोरी जिन जाओ री
पं. उल्हास कशाळकर : राग बसंत बहार - बरजो ना माने एरी / साँवरे सलोने मदभरे नेहा लगाये

पान ३:
पं. उल्हास कशाळकर : राग देस - घन गगन घन घुमड कीनू
पं. उल्हास कशाळकर/विदुषी किशोरीताई आमोणकर : राग पट बिहाग - धन धन मंगल गावो
पं. वसंतराव देशपांडे : राग बिहाग : हो मां धन धन रे - री मा धन धन री एरी मेरो लाल
पं रामाश्रेय झा : राग चांदनी बिहाग - आज आनंद मुख चंद्र
पं. जितेंद्र अभिषेकी : राग बिलासखानी तोडी - त्यज रे अभिमान जान गुनिजन को
शबद गुरबानी, राग तोडी - मागउ दानु ठाकुर नाम
पं. ओंकारनाथ ठाकूर : राग सुघराई कानडा - माई मोरा कंथू बिदेसू
रसूलनबाई : दादरा - पनघटवा न जाबै
पं जसराज : राग जयवंती तोडी - आज मोरी अरज सुनो सिरताज
पं जसराज : भजन - युगल वर झूलत, दे गर बाँही
बेगम परवीन सुलताना : राग पहाडी - जा जा रे कगवा
विदुषी डॉ. प्रभा अत्रे : राग भैरवी दादरा - बैरन रतियाँ नींद चुराये
बेगम परवीन सुलताना : राग मलुहा मांड - सोही देत रबसे
उस्ताद आमिर खान : राग बिहाग - कैसे सुख सोवे नीन्दरिया
उस्ताद आमिर खान : राग अडाना - झनक झनक पायल बाजे
उस्ताद मोहम्मद जुमान : ठुमरी - भूल न जाना बलमवा
विदुषी अश्विनी भिडे देशपांडे : राग देस दादरा - छा रही कारी घटा
विदुषी दिपाली नाग : भैरवी ठुमरी - हँस हँस गरवा लगा ले
जोहराबाई आग्रेवाली : राग गौड सारंग - कजरा रे प्यारी तेरे नैन सलोने
पं. शौनक अभिषेकी : राग मधु रंजनी - एरी सखी आज मोहे श्यामसो मिलायके
पं. जसराज : सूरदास भजन - सबसे उंची प्रेम सगाई
पं जसराज : सूरदास भजन - ऐसो पत्र पठायो नृप वसंत
ध्रुपद गायिका पद्मश्री असगरी बाईंवरील - माहितीपट
उस्ताद आमिर खान : राग प्रिया कल्याण - सर्मद गम-ए-इश्क बुल-हवास रा न दिहन्द
उस्ताद आमिर खान : राग भटियार - निसदिन न बिसरत मूरत मुरारी
पं. श्रीकृष्णबुवा रातंजनकर : राग नारायणी - बमना रे बिचार सगुना
पं. रसिकलाल अंधारिया : राग नंद - बारी बारी पुनि-वारी जाऊं

पान ४:
पं. कुमार गंधर्व : राग लगन गंधार - सुध ना रही मोहे, अरी वो जब देखा तोहे
पं कुमार गंधर्व : राग केदार - बैठी हूँ अकेली पिया बिन रतियाँ
पं. कुमार गंधर्व : राग भीम - पार न पायो नाद भेद को, नैंकु गोपालहिं मोकौं दै री
पं कुमार गंधर्व : राग मिश्र कल्याण होरी - बरसाना में खेलत होरी
पं. कुमार गंधर्व : राग शुद्ध मल्हार - रितु बरखाई बरसन लागी
कुमार गंधर्व : राग भैरवी तुलसीदास भजन (रामचरितमानस - बालकाण्ड) - चतुर सखीं लखि कहा बुझाई
पं. कुमार गंधर्व : तुलसीदास भजन - अब लौं नसानी, अब न नसैहों
पं. कुमार गंधर्व : तुलसीदास भजन - सखि नीके कै निरखि कोऊ सुठि सुंदर बटोही
पं. कुमार गंधर्व : तुलसीदास भजन - मुनि पद कमल बंदि दोउ भ्राता। चले लोक लोचन सुख दाता॥
पं. कुमार गंधर्व : राग मारवा - सूझो ना कछु मोहे रे
पं. कुमार गंधर्व : तुलसीदास भजन (बालकाण्ड रामचरितमानस) - थके नयन रघुपति छबि देखें। पलकन्हिहूँ परिहरीं निमेषें॥
पं. कुमार गंधर्व : राग मारवा - मारु कवन काज कवन गत चलियो
पं. शशांक मक्तेदार : राग कोमल रिषभ आसावरी - मिलन को जिया मेरा चाहत है
पं. शशांक मक्तेदार : राग मियाँ की मल्हार, सूरदास भजन - सुमर नाम को मनही के मनमें
पं. शशांक मक्तेदार : राग शुद्ध सारंग - दिन दिन दिन आनंद करत
पं कुमार गंधर्व : राग हिंडोल - सोहे ना येरी
पं. अजय पोहनकर- बागेश्री - सखी मन लागे ना काउ जतन किया/जो हमने तुमसे बात कही
पं. अजय पोहनकर : राग बिलासखानी तोडी - घुंगरिया ठुमकत चाल चलत है/कोयलिया काहे करत पुकार
पं. अजय पोहनकर : राग सिंध भैरवी ठुमरी - सजनवा तुम क्या जानो प्रीत

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पं. कुमार गंधर्व : राग लगन गंधार : सुध ना रही मोहे

सुध ना रही मोहे, अरी वो जब देखा तोहे
सूझे ना कछु तब ते मुख आँखन में |

मेहर मोपे राखो अरज यही तोहे
याद जब जब उठत मन में ||

पं कुमार गंधर्व : राग केदार : बैठी हूँ अकेली पिया बिन रतियाँ

बैठी हूँ अकेली पिया बिन रतियाँ
बिरह तन जरत कैसे कटे रतियाँ |

शोक यह भार कैसे सह जाय
नैन झरझरत पिया नहीं आये ||

पं. कुमार गंधर्व : राग भीम : पार न पायो नाद भेद को, नैंकु गोपालहिं मोकौं दै री

पार न पायो नाद भेद को
बिस्तार घन भयो है |

कहे नायक तानसेन गुणी गोपाल लाल
बलहारी हारी इन गुरू को
नाद भेद को बिस्तार घन भयो है ||

सूरदास भजन

नैंकु गोपालहिं मोकौं दै री ।
देखौं बदन कमल नीकैं करि, ता पाछैं तू कनियाँ लै री ॥
अति कोमल कर-चरन-सरोरुह, अधर-दसन-नासा सोहै री ।
लटकन सीस, कंठ मनि भ्राजत, मनमथ कोटि बारने गै री ॥
बासर-निसा बिचारति हौं सखि, यह सुख कबहुँ न पायौ मै री ।
निगमनि-धन, सनकादिक-सरबस, बड़े भाग्य पायौ है तैं री ।
जाकौ रूप जगत के लोचन, कोटि चंद्र-रबि लाजत भै री ।
सूरदास बलि जाइ जसोदा गोपिनि-प्रान, पूतना-बैरी ॥

(भजनाचा अर्थ : (कोई गोपिका कहती है -यशोदा जी!) `तनिक गोपाल को तुम मुझे दे दो, मैं इसके कमलमुख को एक बार भली प्रकार देख लूँ, इसके बाद तुम गोद में लेना ।' (गोद में लेकर कहती है) `इसके कर तथा चरण कमल के समान अत्यन्त कोमल हैं, अधर, दँतुलियाँ और नासिका बहुत शोभा दे रही है, मस्तक पर यह लटकन (केशों में गूंथे मोती) तथा गले में कौस्तुभमणि ऐसी छटा दे रहे हैं कि इन पर करोड़ों कामदेव भी न्योछावर हो गये। सखी ! मैं रात-दिन सोचती रहती हूँ कि यह सुख (जो कन्हाई के आने पर मिला है) मैंने और कभी नहीं पाया । यह तो वेदों की सम्पत्ति और सनकादि ऋषियों का सर्वस्व है, जिसे तुमने बड़े सौभाग्य से पा लिया है । इसके रूप ही जगत के नेत्र हैं (जगत् के नेत्रों की सफलता इसके रूपका दर्शन करना ही है) करोड़ों सूर्य-चन्द्र (इस रूप को देखकर) लज्जित हो जाते हैं ।' सूरदास जी कहते हैं- माता यशोदा अपने लाल पर बलि-बलि जाती हैं । (उनका लाल) गोपियों का प्राणधन और पूतना का शत्रु है ।)

पं कुमार गंधर्व : राग मिश्र कल्याण होरी : बरसाना में खेलत होरी

बरसाना में खेलत होरी
श्री ब्रुखभान किशोरी |

कोऊ चंदन, बंदन, अत्तर अरगज
अबीर गुलाल लिये भरजोरी रे ||

~~~

होरी को खेलैया पिया फगवा जा मथुरे

चलो सखी खेलै कन्हैया संग होरी...
अपने अपने भवन से निस्तरी / निकली
कोई साँवर कोई गोरी
भरीये कंचन पिचकारी केसर रंग भगौरी

पं. कुमार गंधर्व : राग शुद्ध मल्हार : रितु बरखाई बरसन लागी

रितु बरखाई बरसन लागी
बौछारन सननन कर बोलाई |

पपिहा मुरला दादुरवा बोले
गरजत घन चहुँ दिसते घेराई ||

कुमार गंधर्व : राग भैरवी तुलसीदास भजन (रामचरितमानस - बालकाण्ड) :चतुर सखीं लखि कहा बुझाई

चतुर सखीं लखि कहा बुझाई। पहिरावहु जयमाल सुहाई॥
सुनत जुगल कर माल उठाई। प्रेम बिबस पहिराइ न जाई॥

भावार्थ : चतुर सखी ने यह दशा देखकर समझाकर कहा- सुहावनी जयमाला पहनाओ। यह सुनकर सीताजी ने दोनों हाथों से माला उठाई, पर प्रेम में विवश होने से पहनाई नहीं जाती |

पं. कुमार गंधर्व : तुलसीदास भजन : अब लौं नसानी, अब न नसैहों

अब लौं नसानी, अब न नसैहों।
रामकृपा भव-निसा सिरानी जागे फिर न डसैहौं॥
पायो नाम चारु चिंतामनि उर करतें न खसैहौं।
स्याम रूप सुचि रुचिर कसौटी चित कंचनहिं कसैहौं॥
परबस जानि हँस्यो इन इंद्रिन निज बस ह्वै न हँसैहौं।
मन मधुपहिं प्रन करि, तुलसी रघुपति पदकमल बसैहौं॥

पं. कुमार गंधर्व : तुलसीदास भजन : सखि नीके कै निरखि कोऊ सुठि सुंदर बटोही

सखि नीके कै निरखि कोऊ सुठि सुंदर बटोही।
मधुर मूरति मदनमोहन जोहन जोग,
बदन सोभासदन देखिहौं मोही॥१॥

साँवरे गोरे किसोर, सुर-मुनि-चित्त-चोर
उभय-अंतर एक नारि सोही।
मनहुँ बारिद-बिधु बीच ललित अति
राजति तड़ित निज सहज बिछोही॥२॥

उर धीरजहि धरि, जन्म सफल करि,
सुनहु सुमुखि! जनि बिकल होही
को जाने कौने सुकृत लह्यो है लोचन लाहु,
ताहि तें बारहि बार कहति तोही॥३॥

सखिहि सुसिख दई प्रेम-मगन भई,
सुरति बिसरि गई आपनी ओही।
तुलसी रही है ठाढ़ी पाहन गढ़ी-सी काढ़ी,
कौन जाने कहा तै आई कौन की को ही॥४॥

पं. कुमार गंधर्व : तुलसीदास भजन : मुनि पद कमल बंदि दोउ भ्राता

मुनि पद कमल बंदि दोउ भ्राता। चले लोक लोचन सुख दाता॥
बालक बृंदि देखि अति सोभा। लगे संग लोचन मनु लोभा॥१॥

पं. कुमार गंधर्व : राग मारवा : सूझो ना कछु मोहे रे

सूझो ना कछु मोहे रे
अबु मैं का करू रे
बेकल जिया होय उखमासे रे |

देखो देखो रे मेरो हालु
बेनिया डोलावो खसिया के रे ||

पं. कुमार गंधर्व : तुलसीदास भजन (बालकाण्ड रामचरितमानस) : थके नयन रघुपति छबि देखें

थके नयन रघुपति छबि देखें। पलकन्हिहूँ परिहरीं निमेषें॥
अधिक सनेहुँ देह भै भोरी। सरद ससिहि जनु चितव चकोरी॥

पं. कुमार गंधर्व : राग मारवा : मारु कवन काज कवन गत चलियो, बोलन बिन कबहूँ

मारु कवन काज कवन गत चलियो
मोपे बढाइये गत चलियो |

अनरस तनरस सदारंगीले
मारु देस गईलवा ||

द्रुत

बोलन बिन कबहूँ चैन नहिं परत
पिहरवा जो चाहे रस आवे मा |

औरन से तुम भलाइ प्रीत करो
मनके रंगीले हमे बोल न सुना ||

पं. शशांक मक्तेदार : राग कोमल रिषभ आसावरी : मिलन को जिया मेरा चाहत है

मिलन को जिया मेरा चाहत है
सूरत देख बरछी लग गई
उधो तब ते कल न परत है |

तुम मधुबन जाओ, शाम को समझाओ
तुम बिन अँखियाँ तरसत है ||

पं. शशांक मक्तेदार : राग मियाँ की मल्हार, सूरदास भजन : सुमर नाम को मनही के मनमें

सुमर नाम को मनही के मनमें
इत उत चितवन जनम गँवायो |

भगवत गुणगान कबहुँ न सुनियो
भवनिधि विषयी भटकी गँवायो
सूरदास प्रभु दयाल वरदान को ||

पं. शशांक मक्तेदार : राग शुद्ध सारंग : दिन दिन दिन आनंद करत

दिन दिन दिन आनंद करत नित ललना
लालन सो अंग अंग |

हिलन मिलन तोही सो प्यारे
अधरन रस ले कर रास रंग ||

पं कुमार गंधर्व : राग हिंडोल : सोहे ना येरी

सोहे ना येरी
ये हो रूप जो बन समुझ ना पायो री |

तबुसे ध्यान मेरी
लागे ना का करू का कहूँ सखी री ||

पं. अजय पोहनकर- बागेश्री
अप्रतिम आहे हा बागेश्री.

विलंबित एकताल-
सखी मन लागे ना काउ जतन किया
मानत नाही मोरा समझाय रही |
ना जानू बलम मिले कब
इब्राहिम प्रीत लगाय पछताय रही |

द्रुत तीनताल-
जो हमने तुमसे बात कही (बा-आ-त कही मधल्या 'आ'वर तीनतालाची सम आहे, आहा)
तुम अपने ध्यानन मे रखियो
चतुर सुगर नारी |
जब ही लाल मिलन को देखे
रूठ रही क्यू हम से प्यारी
इतनी करत चतुराई उन के साथ|

वा!! चैतन्य, मस्त रे!
त्याच लिंकवरच्या इतर बंदिशीही ऐकतेय.... मस्त कलेक्शन आहे! Happy

पं. अजय पोहनकर : राग बिलासखानी तोडी : नीके घुंगरिया ठुमकत चाल चलत है

नीके घुंगरिया ठुमकत चाल चलत है |

सुनत साथ जिया बेकल होत
सदारंग लेहो बलैया ||

द्रुत

कोयलिया काहे करत पुकार
अब भयो दिन बीती अंधिया

सब नीशि जागत बीती उमरिया
चंचल चपल मन गयो री हाल

पं. अजय पोहनकर : राग सिंध भैरवी ठुमरी : सजनवा तुम क्या जानो प्रीत

सजनवा तुम क्या जानो प्रीत

नयना लगा के तरसाय रही
ना जाने नेहा की रीत

(मला वाटतंय की ही ठुमरी मी आधी लिहिली आहे, फक्त सर्च मध्ये सापडत नाहीये, म्हणून पुन्हा एकदा! Happy )

नमस्कार गजाभाऊ! खूप दिवसांनी दर्शन झाले! Happy वा, वा, धागा अपडेट झालेला दिसतोय!
आता बंदिशी शोधताना, ऐकताना व लिहिताना 'अर्र, अगोदर लिहिली / ऐकली आहे काय?' असा प्रश्न पडण्याइतपत बंदिशींचा संग्रह झालाय इथे! Happy

हाय गजाभाऊ Happy
मी मस्त. माझंही येणं बरंच अनियमित असतं. हापिसात मा.बो. उघडत नाही आणि घरी आल्यावर पुन्हा पी.सी.समोर बसलं की कौटुंबिक जुगलबंदी सुरू होते आणि त्या चिजांचे शब्द आणि अर्थ ज्याचे तोच जाणे Proud
अकु,
अगदी असंच होतं एखादी बंदिश इथे द्यायचा विचार आला की. त्यामुळे आधी मी शक्यतो शोधतो, आधीच्या २ धाग्यांत नसेल (किंवा सहज सापडलं नाही) की इथे लिंक देतो.
बाकी ललित तू कसा आहेस?
प्रत्येक घराण्यांच्या गायकीच्या वैशिष्ट्यांबद्दल लिहिणार होतास ना.. लिहिलं असशील तर पोस्ट कर.

असो, आता जरा 'घरातल्यांकडूनच कौतुक करवून घेतो' Happy
मी आता बांबूच्या बासर्‍या तयार करू लागलो आहे. हिंदुस्तानी आणि कर्नाटकी दोन्ही पद्धतीच्या.
काल माझ्या गुरुंचा एक कार्यक्रम झाला तिरुपतीच्या देवळात. कुचिपुडी नृत्याला वाद्यसंगत करत होते.
पूर्ण कार्यक्रमात त्यांनी मी त्यांना तयार करून दिलेली बासरी वापरली आणि बरोबरीच्या व्हायोलीन-वादक आणि मृदुंगवादकांनीही बासरीच्या टोनबद्दल आणि अचूक श्रुतीबद्दल कौतुक केलं. खरं तर गुरुजींनी ती तशी वाजवली म्हणूनच सगळ्यांना आवडली असणार, पण माझाही खारीचा वाटा असल्यानं मला खूप मस्त वाटतंय.

कौटुंबिक जुगलबंदी सुरू होते आणि त्या चिजांचे शब्द आणि अर्थ ज्याचे तोच जाणे >> चैतन्य, भा.पो. Proud

बासरीच्या टोनबद्दल आणि अचूक श्रुतीबद्दल कौतुक केलं. >> मस्त रे!! खूप खूप अभिनंदन तुझं आणि कौतुकही! Happy
जमल्यास कार्यक्रमाबद्दल विस्ताराने लिही, खास तुझ्या शैलीत!

विदुषी पद्मा तळवलकर : राग बिहागडा : निरख छब देखत मन सुख पावे

निरख छब देखत मन सुख पावे
आज मोरे साजन बन ठन आये |

अंग अंग सो रंग छुवत है
दिलरंग प्रीत बढाये मोरे घर आये ||

विदुषी पद्मा तळवलकर : राग अल्हैया बिलावल : जा रे जा रे जा कगवा

जा रे जा रे जा कगवा
इतना संदेसा कह दे बालमवा
कटत न रात तोरे बिन |

तुम बिन मोहे कल ना परत है
बेग आवो दरसन दीजिये ||

पं. मुकुल शिवपुत्र- राग शाम कल्याण

फारच सुंदर आहे हा शाम कल्याण. सोबतीला कुणीतरी सतारही वाजवली आहे. त्यामुळे एकूण 'इंपॅक्ट' अप्रतिम आहे.

जय काली कल्याण करी
जय शामा कल्याण करी |
जय गौरी कल्याण करी
कल्याणी कल्याण करी|

श्रीदशमुखदशकरदशसुपदा
श्रीमरकतमणिकान्तिप्रभा
माँ सदया भवभयहरणा
भक्तमनोवांछितफलदा |

श्रीसुरसर्वसुदेहबला
अरिमहिषासुरभारहरा
माँ सदया सुरमुनिसुखदा
सकललोकतमतापहरा |

श्रीशिवदेहसम्भूतशिवा
श्रीपतिनेत्रप्रभातमसा
माँ सदया परब्रह्मघना
सच्चिदानन्दबोधप्रदा |

वाह!! प्रासादिक.... Happy मला देवीचे शामल रूपच आठवले Happy

त्यावरून एका नवरात्रीत हे देवी भजन स्फुरले होते - चालीसकट, ते आठवले Happy

देवी शामळा मातंगी
कल्याणी कोमलांगी...

वाग्विलासिनी मधुरभाषिणी
मरकतश्यामा हे वरदायिनी
लीलाशुकधरी हे नीलाङ्गी

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