---रेशीमगाठ---

Submitted by paresh_mahamunkar on 31 August, 2009 - 06:32

------------------------------------------
------------------------------------------

सायंकाळी तळ्याकाठी
त्याच जुन्या वडापाठी
काही जीर्ण रेशीमगाठी
पुन्हा सैलावल्या...

अन सार्‍या चालीरुढि
नातीगोती, रितीभाती
सोडुनी त्याच वडापाठी
मुक्त जाहल्या...

लोचनेहि जड झाली
पापण्याहि रुंदावल्या
हळुहळु क्षितीजावरी
चांदण्याही मंदावल्या...

मनमोर स्वैर झाले
मात्र शब्द गोठलेले
कल्पनांच्या कक्षाही
थोड्या विस्तारल्या...

धुंद, मंद, गंध सारे
क्षितीजावरी अवतरले
इंद्रधनु नभि कसा,
कोणी चितारला?

रेशीमगाठ सैल होता
चालेना कोणाची मात्रा
विधात्याने खेळ हा
कसा मांडला????
------------------------------------
---पारवा---
------------------------------------

गुलमोहर: