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Athak
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| Thursday, April 19, 2007 - 9:40 pm: |
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आर्च रागावल्याने केस लवकर पांढरे होतात अस म्हणतात त्यामुळे तु पण कुणावर रागावणे सोडुन दे anger management चा काही फायदा ? अजुन येवु दे >> असं तुरळक केसवाले आणि उजडेचमन म्हणतात येरे येरे पावसा सारख रचना , तुला ही सवय नुसती वाचायची आहे की लिहायची पण म्हणजे तुझ लिखाण वाचतांना वाचक काळजी घेतील
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ultimate ... सही जम्या है! मझा आया!
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Srk
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| Friday, April 20, 2007 - 1:29 pm: |
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बडबडी, पूनम, सुदर्शन, धूमशान, बी, अथक, आर्च, रचना, भ्रमर्_विहार सगळ्यांना मनापासून धन्यवाद.
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Chaffa
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| Friday, April 20, 2007 - 6:53 pm: |
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आगदी सुंदर ( कथा म्हणतोय मी पांढरा केस नव्हे) नेमकेपणा आवडला आपल्याला शब्दातला.
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Meenu
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| Saturday, April 21, 2007 - 1:42 pm: |
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हे हे मजा आली .. अथक अजुन येऊ दे .. बडे बी अरे होतात केस पांढरे सगळ्यांचेच .. असं न आवडुन कसं चालेल ..? सगळ्याच सत्यघटना गमतीशीर कशा असणार ..
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Yog
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| Tuesday, April 24, 2007 - 3:53 am: |
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Srk, लघु-कथा आवडली. (कथेपेक्षा प्रतिक्रीयेचा size जास्त होवू नये म्हणून उर्वरीत प्रतिक्रीया आवरती घेतो आहे..)
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Srk
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| Tuesday, April 24, 2007 - 9:19 am: |
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चाफ़्फ़ा, मीनु, योग धन्यवाद. योग हा हा हा. पण कथेबद्दल खरंच काही सांगायचं असलं तर मला आवडेल.
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Saee
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| Friday, April 27, 2007 - 7:32 am: |
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मस्तच कल्पना आली तुझ्या डोक्यात! या कल्पनेचं श्रेयही तु त्या पांढर्या केसालाच दिलं पाहिजेस!!
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