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Nkashi
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| Wednesday, April 11, 2007 - 6:48 am: |
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चाफ़्फ़्या, तुझ्या बायकोने नक्की स्वत: च्या कपाळावर हात मारला का?
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Sakhi_d
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| Wednesday, April 11, 2007 - 7:03 am: |
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>>चाफ़्फ़्या, तुझ्या बायकोने नक्की स्वत: च्या कपाळावर हात मारला का? >> चाफ़ी ने तुझ्या कपाळावर हात मारला की तो दगड..... चाफ़्फ़्या दिवे घे
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Sheshhnag
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| Wednesday, April 11, 2007 - 6:15 pm: |
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चाफा.... तू म्हणजे too much
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Ultima
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| Thursday, April 12, 2007 - 1:13 pm: |
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चाफ़्फ़्या, तुझ्या बायकोने नक्की स्वत: च्या कपाळावर हात मारला का? चाफ़ी ने तुझ्या कपाळावर हात मारला की तो दगड..... चाफ़्फ़्या पण तुम्ही मारामारी करायला दगडा ऐवजी ते वाटाणेच का नाही वापरत???
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Bhagya
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| Thursday, April 12, 2007 - 10:11 pm: |
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अरे चाफ़्फ़्या, दगड, लाटणे हे सगळे इतक्यातच? normally नवरा बायको आठ्-दहा वर्षांनी सुरु करतात असल्या गोष्टिंचा वापर.
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Chaffa
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| Friday, April 13, 2007 - 1:35 am: |
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नाही दोस्तलोक, तिने दगडही नाही मारला,आणी (माझ्या ) कपाळावर हातही नाही मारला पण जर माझ्या दुर्दैवाने ती ईथे आलीच तर पुढच्यावेळी हे नक्की आहे. आणी अल्टीमा ते वाटाणे वापरण्याची कल्पना एकदम छान आहे कृपया आपण चाफ़्फ़ीशी संपर्क करु नये ही कळकळीची विनंती सगळ्यांनाच आहे बरं का!
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Meggi
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| Friday, April 13, 2007 - 4:10 am: |
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असं म्हणतोस, मग चाफ्फीशी संपर्क साधन्याचा इब्लिसपणा आम्ही नक्की करु.. तिला कळू तर दे तुझ्या करामती
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Zakasrao
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| Friday, April 13, 2007 - 4:40 am: |
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चाफ़्या वरती ज्या ज्या बायकानी मुलीनी जे जे सल्ले दिले आहेत ते सल्ले ते स्वत:च्या घरच्या अनुभवावरुन दिले आहेत. अनुभव हा सर्वात मोठा गुरु आहे. हो कि नाइ मुलीनो. दीवे घ्या बघु.
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Chaffa
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| Friday, April 13, 2007 - 5:33 am: |
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झकास सही रे सही मेग्गी ईतके दिवस होतिस कुठे दिसली नाहीस मायबोलीवर?
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चाफ़्फ़्या.. इतके दिवस तू उपद्व्याप केलेस,.. आता तुझी इब्लिसपणा सहन करण्याची पाळी.. काय रे.. आज सकाळी परत कुणाला मेसेज केलास?
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Chaffa
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| Friday, April 13, 2007 - 6:26 am: |
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एकाच आयडीयाच्या कल्पनेनी मी परत परत नाही हं फ़सणार! आता तु आधि ठरवलेलाच प्लॅन वापरणार बहुतेक.
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Suvikask
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| Friday, April 13, 2007 - 6:29 am: |
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चाफ़ा बोलेना चाफ़ा चालेना चाफ़ा खंत करी काही केल्या बोलेना अस म्हणण्याची वेळ येईल का कधी?
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Meggi
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| Friday, April 13, 2007 - 6:37 am: |
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चाफ्फ्या, अरे मी client side ला होते. आता भारतात परत आले तर bench वर आहे, त्याचा सदुपयोग करतेय. नंदिनी, इथे इब्लिसपणा करयचा सोडुन कथा लिहायला घे बघु.. ३ दिवस उलटले तरी नवीन भाग लिहिला नाहिस.
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मजा आली असती ना मग.. उगाच मी सज्जनपणा दाखवला इब्लिसाचार्याना मस्त अद्दल घडली असती..
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Chaffa
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| Friday, April 13, 2007 - 6:49 am: |
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नंदिनी आली असती मजा पण जर तु स्वत तसे केले असतेस तर दुसर्याकुणी केले असते म्हणजे तुझ्या कलिगने तर मात्र त्याची खैर नव्हती.मी पोरींना जरा वचकुनच असतो हल्ली अनुभव आहे ना एक
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Meggi
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| Friday, April 13, 2007 - 6:55 am: |
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चाफ्फ्या, तुझं नाव नंदिनी आहे का? मी नंदिनीला कथा पूर्ण करायला सांगितलीये.
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चाफ़्फ़्या... ती माझ्या कथेबद्दल बोलतेय,, आणि खरं तर मला त्या कलीगला पण अद्दल घडवायचीच आहे... तु जर त्याची खैरनार करणार हे माहित असतं तर फ़ोन कट केलाच नसता.. Anyways, I would have enjoyed the show...
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Chaffa
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| Friday, April 13, 2007 - 6:56 am: |
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सुविकासक, आपण का बरे वैतागला आहात माझ्यावर? म्या पामराने काय गुन्हा केला?
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Chaffa
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| Friday, April 13, 2007 - 7:10 am: |
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अरे हो! ते माझ्या नंतर लक्षात आले होते म्हणुनतर पोष्ट एडिटले ना!
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Suvikask
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| Friday, April 13, 2007 - 7:34 am: |
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चाफा, धमाल उडवुन देण्याचा गंभीर गुन्हा आपण केला आहात.. आता हसवत नाही...म्हणुन जरा दम खाण्यासाठी असे म्हटले आहे..
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चोखंदळ ग्राहक |
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महाराष्ट्र धर्म वाढवावा |
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व्यक्तिपासून वल्लीपर्यंत |
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पांढर्यावरचे काळे |
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गावातल्या गावात |
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तंत्रलेल्या मंत्रबनात |
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आरोह अवरोह |
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शुभंकरोती कल्याणम् |
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विखुरलेले मोती |
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हितगुज दिवाळी अंक २००७
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