"न जाने क्यों होता है ये जिन्दगी के साथ" : स्वैर भावानुवाद

Submitted by चुन्नाड on 5 April, 2021 - 07:40

न जाने क्यों होता है ये जिन्दगी के साथ
अचानक ये मन किसी के जाने के बाद
करे फिर उसकी याद, छोटी छोटी सी बात

का कळेना जीवनी या सोडूनी जाते कुणी
का कळेना या मनी उरतात फक्त आठवणी

जो अन्जान पल, ढल गए कल
आज वो, रंग बदल बदल
मन को मचल मचल रहे है छल
न जाने क्यों वो अन्जान पल..
सजे भी ना मेरे नैनों में, टूटे रे हाय रे सपनों के महल


क्षण सुखाचे हरवले, बेचैन मन आक्रंदले
हर्षनिमिष सारे संचिताचे हरपले
नयनी पाणी उभे राहिले , थांबवेना पापणी
का कळेना जीवनी या सोडूनी जाते कुणी

वोही है डगर, वोही है सफ़र
है नहीं साथ मेरे मगर, अब मेरा हमसफ़र
इधर उधर ढूंढें नजर, वही है डगर..
कहा गयी शामें, मदभरी, वो मेरे मेरे वो दिन गए किधर

पाथ आक्रमित आहे, शोचनीय प्रवासही
वाट आहे भकास ही,नाही तुझा सहवासही
फितुर झाल्या अभिलाषांचे हृदय हे आहे ऋणी
का कळेना जीवनी या सोडूनी जाते कुणी

© चुन्नाड

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चुन्नाड, मित्रा... अप्रतिम भावानुवाद! फक्त शब्दार्थाच्या मागे न जाता, त्याचा भावार्थ, "मायबोलीत", समर्पक शब्दांमध्ये टिपला आहेस!