न ठहरे किसी मंजिल पर शब होने तक

Submitted by निनाव on 10 July, 2013 - 18:25

उर्दू /हिंदी लिहिल्या बद्दल क्षमस्व. गझल हा विषय अजून शिकतो आहे, तेंव्हा चूक असल्यास माफी असावी!

न ठहरे किसी मंजिल पर शब होने तक
कोई क्या लगाये इल्जाम सहर होने तक

हिसाब है बेमक्सद अब क्यों जीए और कितना
मलाल ये है कि हुए रुखसत जफर होने तक

खंजर भी होगा रोया दिल से गुजरते वक़्त
दोस्त ही क्या वो जो ना लगा हो सीने तक

पत्थरों कि कैफियत भी क्या सदियों से
कोई है कबर कोई रब सदियों तक

क्या हो माल-ए-उमर-ए-मुहब्बत इससे बेहतर
जीते रहे तमन्ना लिये वस्ल-ए-यार होने तक

क्या सोच रहे हो, सोए रहो अब 'बेनाम'
न लौटेगी सांस सफर के खतम होने तक

रुखसत = निघून जाणे
माल-ए-उमर-ए-मुहब्बत = result of love
वस्ल-ए-यार = union /meeting with beloved
जफ़र = विक्टरी
मलाल = दुख
रतीब = हिशोब

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