Chyayla
 
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 |  | Wednesday, April 02, 2008 - 9:30 am:    |  
 
 
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 राफ्याची स्फ़ुर्ती व चाफ़्याची प्रेरणा घेउन हा नवीन फ़ळा जन्माला आलाय. यात कोणाला न दुखवता निव्वळ विनोद व निखळ मनोरंजन होइल याची दक्षता घ्यावी. चला तर सुरु करा उ खाणे 
 
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Chyayla
 
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 |  | Wednesday, April 02, 2008 - 9:35 am:    |  
 
 
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 यावर तुम्ही मायबोलिकरांवर तुम्हाला जसे विनोदी उखाणे बनवता येतिल तसे खुशाल बनवा. अगदी मग कोणाचा वाजला नसेल(बॅंड) तरी काल्पनिक राव, अमुकराव, तमुकराव तसेच अमकी, टमकी असे बिंदास जोडुन कोटी करु शकता. याशिवाय मला वाटत मायबोलीवरचे प्रसंग, पोस्ट, नाव, प्रतिमा यांचाही वापर करु शकता. अजुन तुम्हाला सुचल्यास जरुर कळवा.    लो. अ. (लोभ असावा)   नाही तर लोचट असावा समजाल म्हणुन स्पष्टीकरण.   
 
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Chaffa
 
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 |  | Wednesday, April 02, 2008 - 9:41 am:    |  
 
 
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 चला तर मग सुरुवात सम्यपासुन  सम्याची समी ( बोले तो सौ ) म्हणेल    उपवासाच्या दिवशी  दाणे खाते सोलुन  समिर रावांच नाव घेते  आधी 'च्यायला बोलुन    आता श्री झकास भाउ तुम्हाला हा उखाणा शोभेल  घाबरु नका कुणी  सगळ्यांनी दिवे लावा  आपल्या मदतिला आहे  झकास बंब सेवा    लिंब्या भाव आता तुम्ही    गावात आलेय सर्कस  तिचा केवढा मोठा तंबु  दोन- तिन मुले झाली तरी  ....... राव म्हणे लिंबुटिंबु     
 
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Chaffa
 
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 |  | Wednesday, April 02, 2008 - 9:46 am:    |  
 
 
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 आदरणिय स्वाती जी राहील्याच की खरी गरज त्यांना उखाण्यांची      तर स्वाती    लग्नाची खरेदी करुन करुन  मोडला माझा कणा  सुर्यकांत राव आता ट्रक कॅंसल  सामान न्यायला मालगाडीच आणा  
 
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Chaffa
 
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 |  | Wednesday, April 02, 2008 - 10:01 am:    |  
 
 
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 यावर सुर्यकांत म्हणतील    सामान न्यायला मालगाडी कशाला!  विमानच ठेवलय राखुन  पण स्वातीचा कणा मोडायचे खरे कारण!    कायम बेल वहाते शंकराच्या पिंडीवर वाकुन! 
 
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Chyayla
 
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 |  | Wednesday, April 02, 2008 - 10:05 am:    |  
 
 
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 चाफ्या सुरु झालास तर, हे माझ्याकडुनही सुरुवात पण तुझ्यावर मात्र खास उखाणा बनवायचाय, सुचला की लिहेन.    स्वातीनी दिला जेव्हापासुन सुर्याला होकार  कंबरडे मोडले म्हणते घालुन सुर्यनमस्कार  काल मात्र केला हसुन नमस्कार  म्हणे हा झंडु बामचा चमत्कार    फटफटिवर बसुन मिशीवर देतात मोठा ताव  अमुकराव सोडुन केला कोल्हापुरचा झकासराव.    जिलेबीचा घास भरवते च्यायलाSSS  मुकाट्याने थोबाड उघड.. खायलाSSS.  
 
 
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Dakshina
 
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 |  | Wednesday, April 02, 2008 - 10:08 am:    |  
 
 
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 चाफ़्फ़ा...     फ़ारच स्पॉन्टेनियस आहेत तुमचे उखाणे... एकदम मस्त.... आवडले...  
 
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Swa_26
 
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 |  | Wednesday, April 02, 2008 - 10:24 am:    |  
 
 
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 हा उखाणा चाफीसाठि..    सगळेजण भाळतात  मोराच्या नाचावर  चाफ्याच्या भयकथा वाचुन  माझी बसली पाचावर!   
 
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Chaffa
 
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 |  | Wednesday, April 02, 2008 - 10:34 am:    |  
 
 
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 दक्षिणा:   बदलली नाही कधी मैत्रीण  तिने इतके हाल करुन  मात्र तिच्या तक्रारी केल्या दक्षीणाने!   आख्खा एक  BB  भरुन! ह्याचा संदर्भ ह्याच ठीकाणच्या माझ्या मित्रांच्या सवयी............. वर मिळेल   
 
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 वा वा भारी चाललय इथे. येउ दे ये..ये...ये!!!! 
 
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Chyayla
 
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 |  | Wednesday, April 02, 2008 - 10:40 am:    |  
 
 
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 शंकराच्या पिंडीभोवती घालत होते मनोभावे प्रदक्षिणा.  कुत्रा मागे लागल्यागत राव आले ओरडत दक्षिणाSSS दक्षिणाSSS    घोड्याची वाट पहात होती धुळ्याची प्रिन्सेस  राव उतरल्यावर म्हणाले हीच माझी मिसेस. 
 
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Kedar123
 
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 |  | Wednesday, April 02, 2008 - 11:25 am:    |  
 
 
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 सम्या, चाफ्या      मस्तच धमाल   
 
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Meggi
 
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 |  | Wednesday, April 02, 2008 - 11:53 am:    |  
 
 
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 दोन- तिन मुले झाली तरी   ....... राव म्हणे लिंबुटिंबु  >>  हा हा हा... धम्माल उखाणे आहेत     
 
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 >>जिलेबीचा घास भरवते च्यायलाSSS   मुकाट्याने थोबाड उघड.. खायलाSSS      दोन- तिन मुले झाली तरी   ....... राव म्हणे लिंबुटिंबु<<         अशक्य आहात  अगदी ह. ह. पु. वा. झाली      चालु दे    मी इथे चक्कर मारीनच अधुन मधुन    प्रोत्साहन द्यायला     
 
 
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Amruta
 
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 |  | Wednesday, April 02, 2008 - 4:50 pm:    |  
 
 
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 कसले भन्नाट उखाणे आहेत. मजा आली वाचायला.   
 
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Gobu
 
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 |  | Wednesday, April 02, 2008 - 6:28 pm:    |  
 
 
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 ह. ह. पु. वा...    चाफ़ा, ग्रेट आहेस रे...       
 
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Chyayla
 
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 |  | Wednesday, April 02, 2008 - 11:06 pm:    |  
 
 
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 ईकडुन ये तिकडुन ये, अख्खी मायबोली भटकुन ये.  प्रोत्साहन द्यायला, या बीबीवर जरुर ये मनिषा लिमये.      भांडी घासता घासता अचानक थांबले मिस्टर लिमये.  'आयोडेक्स मलिये काम पे चलिये' म्हणाली मनिषा लिमये. 
 
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Runi
 
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 |  | Wednesday, April 02, 2008 - 11:53 pm:    |  
 
 
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 च्यायला आणि चाफ्फा तुम्ही तर एकदम भन्नाट सुटलात   
 
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Dineshvs
 
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 |  | Thursday, April 03, 2008 - 2:49 am:    |  
 
 
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  मस्त उखाणे आहेत इथे.  
 
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Princess
 
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 |  | Thursday, April 03, 2008 - 2:49 am:    |  
 
 
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 च्यायला....  ) हे चार शब्द 
 
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