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Storvi
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| Wednesday, December 07, 2005 - 8:12 pm: |
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केडी ची ढेकर.. 
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Dineshvs
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| Thursday, December 08, 2005 - 3:01 am: |
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अरे बाप रे, एक ईज्जतहि तो होती है गरिब के पास. अब वहि ना रहि तो ...
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h hÊ Ôalauda Cana Jaalaa Aata mastanaI kaÆ
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Bee
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| Tuesday, December 20, 2005 - 4:11 am: |
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काय ग टवळे हाच का तुझा नियमितपणा?
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Sparab
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| Tuesday, April 11, 2006 - 9:10 am: |
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तीची हवा येवढीच ढेकर देउन संपली. नशीब उचकी नाही दीली.
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अरे बाबांनो ते कुजबुज लिहिणे काय जमत नाही हल्ली मला. ते सोडुन दुसरं बोला.
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Bee
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| Wednesday, April 12, 2006 - 3:43 am: |
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हवे, कुजबुक सोड पण इतर काहीच कसे नाही. काहीतरी लिहित जा पाहू
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Dineshvs
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| Thursday, June 08, 2006 - 1:27 am: |
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HH हि ईमारत खुप ओळखीची वाटते. अनेक डॉक्युमेंटरी मधे दिसते ना. ग्लॅडिएटरमधे मात्र प्रेक्षकांसकट सगळेच ग्राफिक्स ने केले होते. त्यातली शस्त्रे पण खोटी म्हणजे स्पंजची वैगरे होती. गुबगुबीत वाघ मात्र खरा होता.
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Abhi_
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| Thursday, June 08, 2006 - 4:03 am: |
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HH छान वर्णन लिहिले आहेस. आता लवकर लवकर अजुन लिही बघू
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Bee
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| Thursday, June 08, 2006 - 5:41 am: |
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हवाहवाई, प्रवास वर्णन आवडले आता भराभर लिही..
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Maitreyee
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| Thursday, June 08, 2006 - 10:48 am: |
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अरे वा, हे आत्ताच पाहिले मी, छान उपक्रम आहे. दहावी ला चित्रकलेला एक पुस्तक होते, 'कलेचा इतिहास'.. फ़ार सुरेख होते ते, जगातल्या सगळ्या वास्तु शिल्प कलांचा इतिहास होता त्यात, ते आठवले. हवा, लिही अजून.
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Champak
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| Thursday, June 08, 2006 - 4:40 pm: |
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Rome ला रोमन सारखे act ली असशील तर ते ही लिही
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Zakki
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| Thursday, June 08, 2006 - 9:56 pm: |
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एकंदरीत तुझा 'रोमन हॉलिडे' छान चालू आहे. पूर्वी ऑड्री हेपबर्न नि ग्रेगरी पेक यांचा या नावाचा एक सिनेमा होता. तुला कुणि ग्रेगरी पेक भेटला का?
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Shonoo
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| Friday, June 09, 2006 - 1:38 am: |
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हवा हवाई फार आढेवेढे न घेता प्रवासवर्णन लिहून टाक बरं. इतकं छान लिहिते आहेस. बाकीच्या प्रवासाकरता शुभेच्छा!
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Bee
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| Friday, June 09, 2006 - 1:55 am: |
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शोनू तू माझ्या अगदी मनातले बोललीस रोमन हाॅलिडे ही चंद्रकोर देताना विरळ गोल कायमचा मधात येतो
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Zakki
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| Friday, June 09, 2006 - 11:34 am: |
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hOliDe बी, असे लिही. capital o , हॉलिडे. बघ प्रयत्न करून.
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Bee
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| Saturday, June 10, 2006 - 2:36 am: |
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झक्की काका धन्यवाद.. ..
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सही ये. एकदा जाईल रोम बघायला. बरीच माहीती मिळाली.
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Moodi
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| Sunday, June 18, 2006 - 12:22 pm: |
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वा सुरेख. नुसता फोटोच नाही तर रोमांचक इतिहासही वाचायला मिळतोय. अजुन लिही ह ह वेळ मिळेल तेव्हा. 
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