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| | Bee 
 |  |  |  | Wednesday, October 18, 2006 - 2:25 am: |       |  
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 पेशवे अन् पराग दोघेही एकाच माळेचे मणी झालेले आहेत. हल्ली दोघेही काहीच लिहित नाहीत. सांगून सांगून थकला जीव.. देव त्यांना बुद्धी देवो!
 
 
 |  | | Asami 
 |  |  |  | Wednesday, October 18, 2006 - 2:49 pm: |       |  
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 म्हणजे आत्ता ते बिनडोक अहेत का रे  ?
  . सुबुद्धी देवो असे लिहि 
 
 |  | | Bee 
 |  |  |  | Thursday, October 19, 2006 - 2:17 am: |       |  
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 असामी :-)
 देव मला सुबुद्धी देवो :-)
 
 
 |  | | Maku 
 |  |  |  | Thursday, March 01, 2007 - 7:11 am: |       |  
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 पराग, इथे तुज्या बीबीवर मला बरेचसे चौकोन नि उभ्या रेघा दिसताहेत!  पण सगळे जण तुझे अभिनन्दन करताहेत >>>>>>>>>>>>>>>>>>>
 मला  पण लिंब्या असेच दिसत आहे.
 मी पण अभिनंदन करते
  
 
 |  | | Zakasrao 
 |  |  |  | Friday, March 02, 2007 - 6:19 am: |       |  
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 अभिनंदन डॉ. साहेब. आता तुमची  specality  सांगा म्हणजे तुमचा  subject  हो. त्यावर थोडी माहिति लिहा तुमच्या घरात.
 
 
 |  | | Bee 
 |  |  |  | Wednesday, March 07, 2007 - 2:07 am: |       |  
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 पीक्या किती हात आखडून लिहितोस रे बाबा.. जरा लवकर लवकर येत जा इथे..
 तिरळा आवडला.
 
 
 |  | | Bee 
 |  |  |  | Friday, March 09, 2007 - 3:43 am: |       |  
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 पीके दोन्ही तिरळे छान आहेत पण लग्गी, केहरवा, दीपचंदी शब्दांचे अर्थ कळले नाहीत. शब्द मात्र आवडलेत.
 
 
 |  | | Anilbhai 
 |  |  |  | Friday, March 09, 2007 - 12:19 pm: |       |  
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 बी
 ताल से ताल मिला.
  
 
 |  | | Paragkan 
 |  |  |  | Friday, March 09, 2007 - 5:11 pm: |       |  
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 भाई
   
 केहरवा, दीपचंदी हे भारतीय संगीतातले ताल आहेत. हे ताल मला कसे वाटले ते थोडक्यात सांगायचा प्रयत्न केला आहे.
 'लग्गी' चा अर्थ कसा सांगावा हे मलाही माहीत नाही.
 
 
 |  | | Peshawa 
 |  |  |  | Saturday, March 10, 2007 - 2:09 am: |       |  
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 जो लगि वो लग्गि!...
 सध्य कुणिकड हाइसा?
 
 
 
 
 
 |  | | Bee 
 |  |  |  | Saturday, March 10, 2007 - 3:56 am: |       |  
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 मला काय वाटलं भाईंनाही नेमका तोच प्रश्न पडला आहे की काय
   
 पीके, धन्यवाद, पण जरा नियमित लिहित जा रे..
 
 पेशवे हेच सांगणे तुलाही..
 
 
 |  | | Shyamli 
 |  |  |  | Sunday, March 11, 2007 - 4:48 am: |       |  
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 अवखळ लग्गी>> मस्त
 तालांची एवढी मस्त व्याख्या वा
   
 आणि "कवि्ता" आवडलं,
 
 
 |  | | Vaisanty 
 |  |  |  | Monday, May 07, 2007 - 2:21 pm: |       |  
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 पराग,
 व्रण, केहरवा सुन्दर!
 
 लिहीत राहा.....
 
 वैशाली
 
 
 |  | | Bee 
 |  |  |  | Monday, July 02, 2007 - 3:46 am: |       |  
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 मला वाटलं हल्ली तू कविता करणे सोडून दिलेस की काय
   
 छान आहे ही निनावी कविता. पण 'सांजसड्यावर' हा शब्द, अगदी त्या कवितेवरच तिरळा आहे म्हणून शब्द परत येऊन गेल्याचे लगेच कळले.
 
 
 |  | | Naatyaa 
 |  |  |  | Monday, July 02, 2007 - 11:05 pm: |       |  
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 मला वाटलं हल्ली तू कविता करणे सोडून दिलेस की काय >> हा प्रश्ण विचारण्याऎवजी यामागची प्रेरणा कोण याचा शोध घ्यायला हवा...
 
 
 |  | | Bee 
 |  |  |  | Tuesday, July 03, 2007 - 1:33 am: |       |  
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 नात्या, कविता करायला प्रेरणा लागते हे माहिती आहे. कविता करणे सोडायलाही प्रेरणा लागते हे नव्हतं बुवा माहिती.
 
 
 |  | | Paragkan 
 |  |  |  | Tuesday, July 03, 2007 - 1:49 am: |       |  
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 (नातू) दादा, झेपत नाही तर घेतांव कशाला?
 
 
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| चोखंदळ ग्राहक |  |  
| महाराष्ट्र धर्म वाढवावा |  |  
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