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Shyamli
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| Sunday, February 26, 2006 - 7:09 am: |
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वा! माणुस मिळालि की जागा... या आता लिहा ईकडे all the best 
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Maanus
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| Sunday, February 26, 2006 - 8:29 pm: |
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आभारी आहे. अजुन काय लिहावे कळत नाहीय... विचार सुरु आहे.
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Champak
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| Monday, February 27, 2006 - 4:49 pm: |
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खोली तो मिल गयी! मिली भी मिलेगी क्या देख
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Champak
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| Friday, March 10, 2006 - 3:41 pm: |
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माणुस, अरे तु chemistry चे अणु रेणु Physics मध्ये घुसवले अन हुकवलेस बघ. अन हो, तुझ्या chemistry च्या नादात माझी chemistry हुकवु नकोस. SP नावाचा कुठलाही अणु नसतो कि मुलद्रव्य नसते Sb ( सव्यासाची ची ) , Sm,Sn, Sg, Se, Si, Sc, Sr, अशी मुलद्रव्ये माहीती आहेत आज पावएतो. तु नवे शोधलेस त तुला एक नोबेल देण्या बाबत विचार काउ शकतो! तुला काल मेल केली होती. रेप्लाय दे!!! ...... हा तिकडच्या लिखाणावरला फ़ीडब्याक हे नंतर तु ते इकडे टकशील च!!!
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Nalini
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| Friday, March 10, 2006 - 4:22 pm: |
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चंपक ते SP आणि OC हे कॉमर्स मध्ये असतेय म्हणुन झाले असेल तसे. SP सोड पुड्या, OC ओढ काड्या. ( मोट्ठा दिवा घे रे बाबा)
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Charu_ag
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| Friday, March 10, 2006 - 4:29 pm: |
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माणसा, तुझे तिथले लिखण मस्तच. शेवटचे वाक्य तर लै भारी. आणि हो All the best , पण आता मामा बनु नकोस.
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Maanus
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| Friday, March 10, 2006 - 6:24 pm: |
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अरे इथे लक्षच गेले नाही. भरत, हेच नाव आहे ना तुझे चंपक? अरे मला ऑफीस मधुन मेल access नाही करता येत. घरी गेल्यावर reply टाकतो. chemistry... तेच रे, आता एवढे आठवत नाही. बर झाले पन तु आठवन करुन दिलीस. मला नोबेल नकोय, तो sp काहीतरी पाठांतराचा प्रकार होता... ते पन विसरलोय आता. नलिनी तु पन B.Com. का, काय सुख असते ना वाणिज्य शाखा म्हणजे. हो moodi ने सांगीतलेय, माझे ग्रह चांगले आहेत सध्या, बघु काय होतेय ह्य spring मधे.
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Shyamli
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| Friday, March 10, 2006 - 7:04 pm: |
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सागर हसुन दाखव बर एकदा आता... 
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Dineshvs
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| Saturday, March 11, 2006 - 1:41 pm: |
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कुठे गेले सगळे लिखाण ? कुर्हाडीचा दांडा गोतास काळ. कॉमर्स घेता आणि त्याला नावं ठेवताय का ?
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Moodi
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| Saturday, March 11, 2006 - 3:49 pm: |
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सागर अभिनंदन जागेबद्दल. ग्रह जोरदार आहेत रे, तू आपला कामाला लाग पाहू चटकन. काही फोटो पण टाक, इथे तुला परवानगी आहे. 
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सागर फ़ोटो ची कल्पना ही सुंदर आहे आणि तो आलाय ही सुरेख!
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दिसला नाहीस रे भो central park मध्ये! सुरुवात चांगली आहे, आता जरा मिसळ, भजी येऊ दे..
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Champak
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| Monday, March 13, 2006 - 11:08 am: |
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KD त्यासाठी सकाळी लवकर उठावे लागते माणुस, तुझ्या साठी शोधली ही एक कविता Meri Zindaki ki Chemistry Na Ye Chemistry Hoti , Na Mein Student Hota Na Ye Lab. Hoti Na Ye Accident Hota Abhi Practical Mein Aaye Nazar Ek Ladki Sundar Thi Naak Uski Test Tube Jaisi Baton Mein Uski Glucose Ki Mithas Thi Sanson Mein Ester Ki Khushbu Bhi Sath Thi Aankhon Se Jhalakta Tha Kuch Is Tarah Ka Pyaar Bin Piye Hi Ho Jata Tha Alcohol Ka Khumar Benzene Sa Hota Tha Uski Presence Ka Ehsas Andhere Mein Hota Tha Radium Ka Abhas Nazrein Mileen, Reaction Hua Kuch Is Taranh Love Ka Production Hua Lagne Lage Us Ke Ghar Ke Chakkar Aise Nucleus Ke Charon Taraf Electron Ho Jaise Us Din Hamare Test Ka Confirmation Hua Jab Uske Daddy Se Hamara Introduction Hua Sun Kar Hamari Baat Woh Aise Uchal Pade Ignition Tube Mein Jaise Sodium Bhadak Uthe Woh Bole, Hosh Mein Aao, Pahchano Apni Auqat Iron Mil Nahin Sakta Kabhi Gold Ke Sath Ye Sum Kar Tuta Hamare Armanon Bhara Beaker Aur Hum Chup Rahe Benzaldehyde Ka Kadwa Ghoont Pi Kar Ab Us Ki Yaadon Ke Siwa Hamara Kam Chalta Na Tha Aur Lab Mein Hamare Dil Ke Siva Kuch Aur Jalta Na Tha Zindagi Ho Gayee Unsaturated Hydrocarbon Ki Taranh Aur Hum Phirte Hain Awara Hydrogen Ki Tarhan..........
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Maanus
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| Monday, March 13, 2006 - 2:22 pm: |
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KD काहीतरी problem झालेला ह्या weekend ला, माझ्या camera र्यातुन पुरुष माणस दिसतच नव्हती, त्यामुळे दिसला नसाल. पुढच्या खेपेला camera न आनता येतो, म्हणजे उघड्या डोळ्यांने सगळ काही साफ साफ दिसेल.
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Megha16
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| Tuesday, March 21, 2006 - 5:31 pm: |
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माणुस लेखनाचा श्री गणेशा खुप छान केला आहे. आता पुढच टाक लवकर. संमती मिळाली की नाही अजुन?
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Maanus
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| Tuesday, March 21, 2006 - 10:23 pm: |
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नाही ना, ती तीची मैत्रिण कुठेतरी गायब झालीय...
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Champak
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| Tuesday, April 04, 2006 - 10:56 am: |
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कालपासुन पळायला सुरवात केली>>>> aaj paaweto baraach laamb gelaa ashilaa naahee
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Zakki
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| Tuesday, April 04, 2006 - 12:28 pm: |
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मैत्रिणी बरोबर निरोप! झाले!! त्या मैत्रिणीला वाटले असेल तू तिलाच ते पत्र लिहिले आहेस! आता एकतर तिचे बाबा तुझ्या घरी येऊन तुला मारतील, किंवा ती मैत्रिणच उभी राहील तुझ्यासमोर, करा आत्ताच माझ्याशी लग्न म्हणून. या नाजूक बाबतीत जरा काळजी घ्यावी रे माणसा, असे किती किस्से झाले आहेत पूर्वी.

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Dineshvs
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| Tuesday, April 04, 2006 - 5:00 pm: |
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वा म्हणजे तु पण श्रीरामपुरचा का ? रन लोला रन, नावाचा एक फ़्रेंच सिनेमा होता, त्यात ती सारखी पळतच असते. तो बघ. म्हणजे रोज पळशील तो नाही मिळाला तर ऊर्मिलाचा दौड नाहि तर अंतराचा रोड बघ. मग तु पुढे आणि त्या मागे पळतील. अजुन ऊजवायच्या आहेत त्या.
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Maanus
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| Tuesday, April 04, 2006 - 5:28 pm: |
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हो वडील बॅकेत असल्याने खुप गाव फिरलोय. गोवा, प्रवरानगर, पाचेगाव, श्रीरामपुर, अहमदनगर शेवटी पुण्यात थांबलो. तुम्ही पण श्रीरामपुर ला होते का? काल आणि आज पाउस असल्याने पळण्याला आराम आहे . झक्की काका, तशी चिंता नसावी, ती पुण्यात मी इकडे तुमच्या छत्रछायेखाली. भरत मी काय Forest Gump मधला Tom Hanks आहे का तहान भुक विसरुन पळत सुटायला
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Suyog
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| Wednesday, April 05, 2006 - 12:06 am: |
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Run lola Run, Superb music!!
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Dineshvs
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| Wednesday, April 05, 2006 - 4:32 pm: |
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नाहि रे मी मुंबईचा, पण श्रीरामपुर वरुन हल्लीच गेलो होतो. प्रवरानगरला काहि काळ होतो.
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Tulip
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| Wednesday, April 05, 2006 - 7:30 pm: |
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माझा कुठल्याही गोष्टीतला उत्साह फार दिवस टिकात नाही>>> तुझ्या त्या तिथल्या क्रश n क्रॅश अनुभवांवरुन आलय आमच्या लक्षात ते btw पण पळत रहा. निदान पंधरा दिवस अजिबात गॅप न घेता. सकाळी जमणार नाही त्या दिवशी संध्याकाळी. stamina आपोआप develop होतो. बघ खरच मग तुला इतक आवडायला लागेल की एकही दिवस उशीरा उठून आळस करणार नाहीस तु.
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Champak
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| Thursday, April 06, 2006 - 7:49 am: |
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तिथे सुंदर लोक ही पळत असतील, time match कर!!! वैधानिक ईशारा : असे सुंदर लोक आपल्या पेक्षा चांगले पळु शकतात हे नेहामी ध्यानात ठेवावे.
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Dineshvs
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| Thursday, April 06, 2006 - 1:21 pm: |
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चंपक, आपण ऊलट्या बाजुने पळावे, हा ऊपाय आहे.
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चोखंदळ ग्राहक |
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महाराष्ट्र धर्म वाढवावा |
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व्यक्तिपासून वल्लीपर्यंत |
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पांढर्यावरचे काळे |
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गावातल्या गावात |
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तंत्रलेल्या मंत्रबनात |
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आरोह अवरोह |
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शुभंकरोती कल्याणम् |
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विखुरलेले मोती |
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हितगुज गणेशोत्सव २००६ |
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