Slarti
 
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 |  | Friday, October 12, 2007 - 8:04 pm:    |  
 
 
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 मुळात अरेरे, अबब इ. उभयान्वयी अव्यये (आणि, व, पण, परंतु) नाहीत, ते भावनाप्रदर्शक उद्गार आहेत. च्यायला ही शिवी. ते 'तुझ्या आयला' चे अपभ्रष्ट रुप असावे. 
 
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 'अबब!', 'अरेरे!' ही केवलप्रयोगी अव्ययं आहेत.  
 
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Badamraja
 
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 |  | Monday, October 15, 2007 - 9:45 am:    |  
 
 
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 मला वाटत "च्यायला" अस आपण वैताग आल्यावर सुद्धा बोलतो आणि त्या वेळेस कुणाच्या तरी आईचा उल्लेख आपण नक्कीच करत नसतो. 
 
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Slarti
 
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 |  | Monday, October 15, 2007 - 9:59 am:    |  
 
 
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 ती मूळ शिवीच, आता त्या शब्दाचा तो संदर्भ नाही राहिला एवढेच. आता हा शब्दही अबब, अरेच्चा यांसारखा झाला आहे. या शब्दाचे 'मायला' असेही एक रुप प्रचलित आहे. 
 
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Badamraja
 
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 |  | Monday, October 15, 2007 - 10:16 am:    |  
 
 
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 च्यायला ही शिवच पण कीती सहज हल्ली वापरली जाते.  अश्याच जर बाकीच्या शिव्या सुद्धा वापरल्या गेल्या तर?  बापरे आपली भाषा किती भयंकर होईल.  कल्पना न केलेलीच बरी. 
 
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Dineshvs
 
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 |  | Monday, October 15, 2007 - 5:02 pm:    |  
 
 
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   Slarti  या शब्दाचे मूळ कोल्हापुर भागात दिल्या जाणार्या एका लांबलचक शिवीमधे आहे.   खरे सांगायचे तर मला हा संदर्भ माहित असल्याने, हा शब्द लिहितानाही मला अवघडल्यासारखे होते.  
 
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Bee
 
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 |  | Tuesday, October 16, 2007 - 1:53 am:    |  
 
 
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 बोलीभाषेत आलेले 'च्यायला' सारखे शब्द मला कधीच घृणास्पद वाटलेले नाहीत. आपल्या भावना मुक्तपणे व्यक्त होतात असे वाटते..  
 
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Badamraja
 
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 |  | Tuesday, October 16, 2007 - 6:47 am:    |  
 
 
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 बी सुसंस्क्रुत मराठीत अजुन तरी च्यायला चा वापर असभ्य मानला जातो.  पण च्यायला म्हटंल्या शिवाय आपला दिवस सपंत नाही.(भावना मुक्तपणे व्यक्त करण्याच स्वातंत्र्य) 
 
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Hkumar
 
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 |  | Wednesday, October 17, 2007 - 6:06 am:    |  
 
 
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 'च्यायला' ही शिवी नाही असे वपुंनी त्यांच्या एका लेखात म्हटले होते. 
 
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Maanus
 
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 |  | Tuesday, January 08, 2008 - 4:15 pm:    |  
 
 
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 शहर हे पुल्लीगी असले तरी काही वेळेस त्याला स्रीलींगी का संभोदतात?    उ.दा.    पुणे हे पुरातनकालीन शहर आहे.    मुंबई ही महाराष्ट्राची राजधानी आहे. 
 
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 Maanus     'ते शहर' हा शब्द आहे..(नपुंसक)  तो पुल्लिंगी नाही (तो शहर)...    आणि 'राजधानी' स्त्रिल्लिंगी म्हणून 'ती राजधानी'....     
 
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Maanus
 
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 |  | Tuesday, January 08, 2008 - 7:24 pm:    |  
 
 
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 हम्म. वेळ लागेल समजायला.    ल ला दुसरी विलांटी दिल्यामुळे विनय ने तिकडे डेस्क वर डोके आपटुन घेतले असनार   
 
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Shraddhak
 
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 |  | Wednesday, January 09, 2008 - 1:47 pm:    |  
 
 
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 शहर हे पुल्लीगी असले तरी काही वेळेस त्याला स्रीलींगी का संभोदतात?>>>  माणसा, योग्य शब्द  ' संबोधतात '  असा आहे रे.  
 
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  'माणूस' च्या बाबतीत बर्यात गोष्टी जरा समजून घ्याव्या लागतात तो'बी' (तो पण) जरा हरवलेला असतो...       
 
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